Tuesday, July 25, 2023

Breaking: जिला पंचायत रीवा बना भ्रष्टाचारियों का पनाहगार// सीईओ स्तर से भ्रष्टाचारियों को बचाने का चल रहा खेल// सेवा समाप्ति से संबंधित कार्यवाहियों की फाइल जिला पंचायत में दफन // नहीं मिल रही चाही गई जानकारियां, मात्र जांच पर जांच का चल रहा खेला// वर्षों के लंबित पड़ी सैकड़ों शिकायतों पर कोई जांच कार्यवाही नही मात्र जिनकी पहले जांच रिकवरी हुई उन पर ही चल रहा लीपापोती का खेल//

*Breaking: जिला पंचायत रीवा बना भ्रष्टाचारियों का पनाहगार// सीईओ स्तर से भ्रष्टाचारियों को बचाने का चल रहा खेल// सेवा समाप्ति से संबंधित कार्यवाहियों की फाइल जिला पंचायत में दफन // नहीं मिल रही चाही गई जानकारियां, मात्र जांच पर जांच का चल रहा खेला// वर्षों के लंबित पड़ी सैकड़ों शिकायतों पर कोई जांच कार्यवाही नही मात्र जिनकी पहले जांच रिकवरी हुई उन पर ही चल रहा लीपापोती का खेल//*
दिनांक 25 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  जिला पंचायत रीवा भ्रष्टाचारियों का पनाहगाह मात्र बन चुका है। जिले की 800 से अधिक ग्राम पंचायतों में व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार पर की गई शिकायतों पर मात्र लीपापोती का खेल चल रहा है। सैकड़ों शिकायतें ऐसी हैं जो पिछले 5 वर्षों से लंबित पड़ी है और जिन पर कोई जांच और कार्यवाही नहीं हुई जबकि मात्र उन शिकायतों पर ही बार-बार जांचें चल रही हैं जिन पर पहले ही वसूली बनाई जा चुकी है। जो हाल पूर्व जिला पंचायत सीईओ स्वप्निल वानखेडे का था कहीं उससे बदतर स्थिति वर्तमान जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे की कार्यप्रणाली की है। हाल यह हैं की वर्तमान जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे तो जिला पंचायत कार्यालय तक में नही बैठते। ऐसा लगता है जैसे इन्हे आम जनता से मिलने में एलर्जी है। 

  *सूरा और पचोखर में पीएम आवास घोटाले की जांच रिपोर्ट दबाकर बैठ गए सीईओ और कलेक्टर*

   तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा स्वप्निल वानखेड़े के कार्यकाल के दौरान 2021-22 में जनपद पंचायत गंगेव की ग्राम पंचायत सूरा एवं पचोखर में प्रधानमंत्री आवास निर्माण में किए गए व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार की जांच करवाई गई थी। जांच के दौरान दोनों ही पंचायतों में दोष सिद्ध पाया गया था और अपात्र नौकरीपेशा और सरकारी पेंशन प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि जारी कर दी गई थी। जांच रिपोर्ट आने के बाद तत्कालीन सीईओ स्वप्निल वानखेडे द्वारा तत्कालीन कलेक्टर डॉक्टर इलैया राजा टी एवं मनोज पुष्प को रोजगार सहायक की सेवा समाप्ति के लिए नोटशीट और प्रस्ताव भेजा था। लेकिन फिर यहां से खेला कर दिया गया और फाइल को इधर-उधर एल भटका दिया गया जिस पर जांच के नाम पर अभी भी फाइल कहां दबी हुई है इसका कोई अता पता नहीं है। मामले की जानकारी के लिए सूचना का अधिकार आवेदन भी जिला कलेक्टर कार्यालय रीवा में लगाया गया लेकिन प्रथम अपील के बावजूद भी उसकी भी जानकारी आज तक मुहैया नहीं करवाई गई है। 
  *चौरी, सेदहा, जिलहड़ी और बांस सहित दर्जनों पंचायतों की धारा 89 की कार्यवाही के नाम पर पेशी दर पेशी*

  मामला यहीं आकर नहीं रुकता बल्कि जहां जिला पंचायत रीवा में पिछले 4 से 5 वर्षों में हजारों की संख्या में शिकायतें लंबित पड़ी हुई हैं और जिन पर मात्र लीपापोती का खेल ही खेला गया है वहीं ऐसी कुछ पंचायतें हैं जिनकी पहले से जांच होकर वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही निर्धारित कर दी गई है परंतु इसके बावजूद भी मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे धारा 89 की सुनवाई के नाम पर पेशी दर पेशी कर रहे हैं और कोई निर्णय पारित नहीं कर रहे हैं जबकि देखा जाए तो धारा 89 पर सुनवाई के लिए आने के बाद से दर्जनों जांचे इन पंचायतों की कराई जा चुकी हैं जिसका कोई औचित्य नहीं बनता है क्योंकि देखा जाए तो इन्हीं कई जांचों के स्थान पर पहले से सैकड़ों पंचायतों की लंबित पड़ी जांच करवाई जा सकती थी जिनकी शिकायतें कई वर्षों से लंबित पड़ी हुई हैं। लेकिन ऐसी लंबित पड़ी जांच न करवाते हुए मात्र ऐसी पंचायतों की जांच बार-बार करवाई जा रही है जिन पर पहले ही जांच पर वसूली निर्धारित की जा चुकी है और मात्र उस पर लीपापोती करने के उद्देश्य से और उन्हें बचाने के नाम पर ऐसा खेल खेला जा रहा है। 
    जाहिर है ऐसे में मध्यप्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश के समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 89, 40 और 92 की जो सुनवाई की शक्ति वापस दे दी गई है उस पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है क्योंकि इनका काम मात्र लेनदेन करना है। और यदि मामला सेटल नहीं होता तो ऐसी स्थिति में बार-बार जांच पर जांच करवाई जा रही है जबकि इन जांचों का कोई औचित्य नहीं बनता। 
 *प्रशासनिक रिसोर्स और जांच एजेंसियों का गलत ढंग से किया जा रहा दुरुपयोग*

  लोकतांत्रिक परंपरा में प्रशासनिक व्यवस्था और नौकरशाही जनता के टैक्स के पैसे से संचालित होती है। जाहिर है जो भी प्रशासनिक रिसोर्स और जांच एजेंसियां हैं उनका यदि सही सदुपयोग नहीं किया गया तो ऐसे में जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी होती है। जाहिर है जिला पंचायत रीवा में जो कारगुजारी एक लंबे अरसे से चल रही हैं उसमें साफ तौर पर स्पष्ट होता है कि जिन पंचायतों की पहले ही जांच कर वसूली निर्धारित की जा चुकी है उन पर सीधे कार्यवाही कर देनी चाहिए थी लेकिन इसी जनता के टैक्स के पैसे और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करते हुए बार-बार उन्हीं पंचायतों की जांच क्यों करवाई जा रही है जिनकी जांच पहले से हो चुकी है और वसूली निर्धारित हो चुकी है? प्रशासनिक रिसोर्स और जांच एजेंसियों का सही सदुपयोग वहां पर कहलाएगा जहां ऐसी पंचायतों की जांच करवाई जाए जिनकी जांच कई वर्षों से लंबित हैं और जिनकी हालिया शिकायतें की जा रही हैं और जिनकी जांचें अब तक एक बार भी नहीं हुई है। ऐसी पंचायतों की बार बार जांच करवाने का क्या मतलब है जिनकी पहले से ही कई जांच हो चुकी हैं। ऐसे में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा की कार्यप्रणाली स्वयं ही संदेह के दायरे में आ जाती हैं और स्पष्ट हो जाता है कि सीईओ मात्र ऐसी पंचायतों के पक्ष में बैटिंग कर रहे हैं जो भ्रष्टाचार की दोषी पाई गई हैं और जो भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं और मात्र उनको बचाने का प्रयास किया जा रहा है। 
  *मध्यप्रदेश में ग्रामीण विकास की स्थिति चिंताजनक, नीचे से लेकर ऊपर तक अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में संलिप्त*

  मध्यप्रदेश में लगभग 24 हजार ग्राम पंचायतों में ग्रामीण विकास के लिए आने वाली राशि का किस कदर बंदरबांट किया जा रहा है उसका जीता जागता उदाहरण रीवा जिले और रीवा संभाग में देखा जा सकता है जहां जनता के टैक्स के पैसे से सार्वजनिक विकास और हितग्राही मूलक योजनाओं के लिए आने वाली राशि को कर्मचारी और अधिकारी अपने निजी हित में उपयोग करते हुए भ्रष्टाचार फैला रहे हैं। चाहे वह 13 वां वित्त आयोग 14 वाँ वित्त आयोग वर्तमान में संचालित 15 वां वित्त आयोग सभी के हालात एक जैसे ही हैं। जहां मनरेगा योजना अंतर्गत राशि का आवंटन और वितरण ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाले गरीब कामकाजी मजदूरो के उत्थान के लिए होना चाहिए वहीं आज मशीनों जेसीबी से पूरा काम औने पौने में करवाते हुए लाखों करोड़ों की राशि अधिकारियों द्वारा मिल बांटकर हजम कर ली जा रही है। ऐसा भी नहीं है कि इसकी शिकायतें नहीं आती अथवा इसके सबूत और प्रमाण नहीं है बल्कि देखा जाए तो हर एक ग्राम पंचायत में इन योजनाओं के काम मशीनों जेसीबी और नियम विरुद्ध करवाए जाकर फोटो वीडियो पेपर पत्रिकाओं में लगभग हर रोज ही आते रहते हैं लेकिन आलम यह है कि वरिष्ठ पदों पर बैठे हुए कमीशनखोर और भ्रष्टाचारी अधिकारी सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखें और कान बंद किए हुए हैं क्योंकि इस कमीशन में इन सभी की बराबर की सहभागिता है।
*संलग्न* - कृपया संलग्न वीडियो वाइट वीडियो फुटेज एवं अन्य दस्तावेज प्राप्त करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

No comments: