Saturday, December 29, 2018

छुहिया घाटी, देवलोंद, व्योहारी, जयसिंह नगर, जैतपुर, कोतमा के रास्ते बांग्लादेश तक पशु तस्करी का चल रहा खेल, कोतमा और जैतपुर का पशु मेला है पशु तस्करी और पशु अपराध की मुख्य जड़ (मामला देश में चल रहे पशु तस्करी के खेल का जिसमे पशु तस्करों द्वारा पैदल मवेशियों को ले जाया जा रहा छत्तीशगढ़ के रास्ते बंगाल और बांग्लादेश, शासन प्रशासन सब जानते हुए भी लगाम लगाने में विफल)

दिनांक 29/12/2018, स्थान - शहडोल-कोतमा, मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी)

    देश प्रदेश में पशु तस्करी का खेल किस कदर बढ़ गया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की रीवा जिले में आवारा छोड़े गए पशुओं को समूहों में इकट्ठा कर गांव गांव में रखा जाता है फिर उन्हें पैदल चलकर छुहिया घाटी, मोहनिया घाटी के रास्ते सीधी और शहडोल के रास्ते छतीसगढ़, विहार, आंध्रा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश तक भेज दिया जाता है. 

    आये दिन बांग्लादेश बॉर्डर में बीएसएफ द्वारा हज़ारों की संख्या में ट्रकों से लदे हुए मवेशियों के जत्थे पकड़े जाते हैं. 

   कैसा है यह पशु तस्करी का पूरा खेल

   यह पूरा खेल काफी टेढ़ा मेढ़ा है जिसमे सम्मिलित पशु तस्कर गांव से लेकर हाई प्रोफाइल तक के लोग हैं जिनके पास पैसा और पावर दोनो है. जहां मवेशियों को हांकने के लिए छोटे गरीब किश्म के लेबर लगाए जाते हैं जिन्हें कुछ पैसे देकर मवेशियों को हांका जाता है वहीं इन्हें मॉनिटर करने के लिए कारों, और बाइक में इनके बड़े दलाल पूरे रास्ते भर लगे होते हैं.

   पुलिस के सह से चलता है काला धंधा

  यह पूरा धंधा पुलिश प्रशासन के सह से चलता है. पुलिश प्रशासन की मिलीभगत के चलते आम शिकायतों पर कोई कार्यवाही नही होती. पशु तस्कर सीधे पुलिश से मिले होते हैं जिससे उन्हें इसका शेयर मिल जाता है. इसका खुलासा भी तब हुआ जब रीवा जिले के थाना गढ़ एवं लालगांव चौकी अन्तर्गत पिपरहा एवं क्योटी ग्राम के पास एक इसी तरह से पशु तस्करी का गिरोह पकड़ा गया था जिसमे इस बात का खुलासा हुआ.

  पैदल मार्च से संदेह की कम है गुंजाइश

   इस काले धंधे में सबसे बड़ा पॉइंट यह रहता है की यदि पशु तस्कर ट्रक और वाहनों का इस्तेमाल करते हैं तो मोटर व्हीकल एक्ट, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, मप्र गोवंश वध प्रतिशेष अधिनियम सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज होने का डर रहता है इसलिए ज्यादातर पशु तस्कर लेबरों के सहयोग से गांव गांव अपनी सेटिंग बनाये रहते हैं और इन पशुओं को पैदल मार्च करवाते हैं जिससे आम नागरिकों को इस बात का संदेह नही होता की पशु काटने के लिए ले जाए जा रहे हैं. पर वास्तव में सच्चाई यही है की पशुओं को काटने के लिए भेजा जाता है.

  पूँछने पर बताते हैं कृषि और जुताई के लिए

   जब कोई पूंछता है की यह पैदल मवेशियों को कहां ले जाया जा रहा है तो बताया जाता है की यह सब कृषि कार्य हेतु ले जाए जा रहे हैं जहां शहडोल कोतमा अनूपपुर में इनसे खेती की जाती है लेकिन सवाल यह उठता है की हर रोज हज़ारों की संख्या में जाने वाले बैल आखिर किस खेती के लिए जाते हैं? आखिर इनकी खेती में कितनी डिमांड है? क्या अनूपपुर, शहडोल और कोतमा में मवेशी पैदा नही होते की इनको रीवा सतना के तराई इलाकों से पैदल होते हुए सीधी शहडोल और अनूपपुर से छत्तीशगढ़ रोज ले जाया जाता है? यदि बैलों की कृषि कार्य में आवश्यकता है तो क्या छत्तीशगढ़ में बैल उत्पन्न नही होते? 

   स्टिंग आपरेशन में सच्चाई आई सामने

   इसी बात की पड़ताल करने के लिए एक टीम गठित कर एक स्टिंग आपरेशन के वास्ते और सबूत इकठ्ठा करने के लिए रीवा की छुहिया घाटी से होते हुए सीधी शहडोल, कोतमा अनूपपुर, मलगा-छत्तीसगढ़ तक पहुचा गया. रास्ते में आने वाले ऐसे दर्जनों समूहों को देखा गया जिसमे ज्यादातर समूह रोड में रास्ते में ही मिल गए जो धड़ल्ले से बिना किसी डर के सैकड़ों की संख्या में मवेशियों को हांकते हुए ले जा रहे थे. इनमे से कुछ से पूंछा भी गया तो उन लेबरों ने बताया की कोतमा में बैलों की मंडी लगती है जहां पर इनका व्यापार होता है. इसी प्रकार जैतपुर आदि कुछ अन्य जगहों का भी जिक्र किया गया जहां पर पशु मेला की बात सामने आयी.

    हाई प्रोफाइल लोगों के जुड़े होने के संदेह

   जिस प्रकार से बेरोकटोक यह पशुओं के तथाकथित व्यापार का खेल एक अरसे से चल रहा है इससे साफ पता चलता है की इसमे सम्मिलित लोग कोई छोटे मोटे कैलिबर के नही हो सकते. इसमे ऐसे लोग सम्मिलित हैं जिनकी पंहुच काफी ऊपर तक है. यहां तक की कुछ सूत्रों से यहां तक जानकारी मिली की इसमे कुछ नेता भी सम्मिलित हैं जो कुछ तथाकथित हिंदूवादी पार्टियों से भी तालुक रखते हैं. कई बार जब इस अवैध काले धंधे पर कुछ पशु अधिकारों के लिए और अवैध कार्यों के विरोध में लड़ने वाले लोगों ने आवाज उठाई तो इन नेताओं और संगठनों के लोगों के नाम भी सामने आये जिहोने धमकियां भी दीं. अतः यह कहना बिल्कुल ही अतिशयोक्ति नही है की हाई प्रोफाइल संगठनों और पार्टियों के नेताओं के हाँथ और मिलीभगत से ऐसे धंधे फुल फ्लेज में चल रहे हैं वरना आज इतने ज्यादा हिंदूवादी संगठन सक्रिय हैं तो क्या इस काले धंधे को रोंका नही जा सकता था? 

  कोतमा सरस्वती स्कूल परिसर में लगता है पशु मेला

   रीवा और तराई क्षेत्रों से समेटे गए हज़ारों की संख्या में मवेशियों को रविवार के दिन हांक कर कोतमा की ब्वॉयज सरस्वती स्कूल के परिसर में लेजाकर रखा जाता है जहां से प्रत्येक रविवार के दिन पशुओं की मंडी लगती है और वहीं से इन्हें फिर इधर उधर किया जाता है. रातोंरात यहीं से लोडिंग भी हो जाती है इस वास्ते स्कूल ग्राउंड परिसर में कई संदिग्ध ट्रक भी खड़े देखे जा सकते हैं. बताया तो यह जाता है की यह बैलों की मंडी जुताई और कृषि कार्य के लिए लगती है लेकिन सच्चाई यह है की यह स्कूल परिसर में एक दो दिन पहले से ही मवेशी इकठ्ठे कर लिए जाते हैं और अगले सोमवार मंगलवार तक बाहर ले जाए जाते हैं. यह कहना की मात्र रविवार को ही मंडी लगती है सही नही है क्योंकि ब्यॉयज सरस्वती स्कूल कोतमा के शिक्षकों से बात करने पर बताया की यह जबरन और स्कूल के उच्च प्रबंधन की सांठगांठ से लगभग 15 एकड़ में मंडी लगती है जिसका स्कूल के शिक्षकों ने विरोध भी किया है लेकिन कोई सुनवाई नही हो रही है. स्कूल का कहना है की वह इस मंडी को बन्द करवाना चाहते हैं लेकिन सफलता नही मिली है. बताया गया की नगर पालिका/नगर निगम कोतमा द्वारा किसी बरगाही को इसका ठेका दिया जाता है और उनके स्कूल ग्राउंड का दुरुपयोग किया जा रहा है.

 पशु मेला ही है पशु अपराध की जड़

  जो जानकारी मिली इससे पता चला की आज भी जब पशुओं की उपयोगिता लगभग समाप्त हो चुकी है ऐसे में कोई भी व्यक्ति विश्वास नही करना चाहता की इतनी बड़ी तादाद में पशुओं को मात्र कृषि कार्य के लिए ले जाया जाता है. मानाकि छत्तीशगढ़ एरिया में कुछ हद तक पिछड़े जंगली इलाकों में अभी भी पशुओं से खेती होती है लेकिन फिर भी रोज हज़ारों की संख्या में छुहिया घाटी, मोहनिया घाटी, देवलोंद, बाणसागर, व्योहारी, जयसिंह नगर के रास्ते कोतमा और मलगा आखिर कैसे जा रहे हैं? मानाकि कृषि के लिए कुछ मात्रा में बैलों की आवश्यकता है लेकिन क्या छत्तीशगढ़ के किसानो के घरों में गायें नही हैं? क्या छत्तीशगढ़ में इतने बैल पैदा नही होते की उन लोगों की कृषि सबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हो पाए? क्या इतने बड़े पैमाने में रोज बैलों की आवश्यकता मात्र कृषि और जुताई के लिए है? क्या छत्तीसगढ़ आज इतना पिछड़ा है की वहां ट्रेक्टर बिल्कुल है ही नही? क्या छत्तीसगढ़ में मॉडर्न आधुनिक यंत्रों से खेती-किसानी नही होती? 

    इन प्रश्नों के स्वयमेव जबाब ढूंढने चलें तो पता चलता है की खेती-किसानी के नाम पर कोतमा और जैतपुर के आसपास चलने वाला पशु व्यापार मेला मात्र दिखावा और भ्रम पैदा करने के लिए है. वास्तव में वहां के सैकड़ों लोगों ने ही बताया की यहां यह बात सबको पता है की यह सभी पशु मात्र कटने के लिए जाते हैं., शासन प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है. सबकी रोटी ही पशुओं के कत्लेआम से चल रही है तो भला इसमे कार्यवाही करने की हिम्मत कौन जुटाएगा? सबसे बड़े दुख की बात तो यह है मानाकि पिछले पंद्रह वर्ष पहले सरकार ने गोवंशों की हत्या के संदर्भ में कोई विशेष अधिनियम पारित नही किया था लेकिन कम से कम हिंदूवादी सरकार के मप्र के पंद्रह वर्ष के कार्यकाल में जबकि मप्र गोवंश वध प्रतिषेध अधिनियम पारित हो गया था तब भी इस बात की जांच और इसमे रोकथाम की किसी नेता और हिंदूवादी संगठन को यह बात समझ नही आई. कितना बड़ा दुर्भाग्य है की जिस प्रदेश में गोवंशों के वध और उनके विरुद्ध हो रही क्रूरता को लेकर बड़े बड़े अधिनियम बने हैं फिर भी इतने बड़े और व्यापक पैमाने पर गोवंशों/पशुओं की तस्करी हो रही है.

  अब सवाल यह उठता है की आने वाले समय में इस प्रकार के अवैध अथवा वैध तरीके से संचालित पशुओं के मेले और उनके व्यापार की सही तरीके से पड़ताल और जांच हो पाएगी और क्या शासन प्रशासन और पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाएं इस बात की निगरानी और कार्यवाही करवा पाएंगी की आखिर किस बाबत इतनी बड़ी तादाद में पशुओं को ले जाया जाता है और यह पशु वास्तव में जाते कहां हैं?

संलग्न - रीवा की छुहिया घाटी से होते हुए सीधी, शहडोल, देवलोंद, बाणसागर, जयसिंह नगर, व्योहारी, कोतमा, मलगा, छत्तीशगढ़ तक के रास्ते पशुओं को ले जाते हुए बड़ी संख्या में लोग. आखिर कहां जा रहे हैं इतने पशु? साथ ही कोतमा सरस्वती ब्यॉयज स्कूल का 15 एकड़ का वह परिसर जिसका दुरुपयोग पशुओं की तस्करी के लिए पशु मेले के रूप में हो रहा है.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

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