दिनांक 20 मार्च 2018, स्थान – गढ़ गंगेव रीवा मप्र
(शिवानंद द्विवेदी, रीवा मप्र)
अभी हाल ही मे प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के किसानों को कुछ राहत देते हुये बजट मे कुछ घोषणाएँ की थी जिसमे पिछले साल की व्याज मे अनुदान से लेकर धान और गेहूं की खरीदी मे 200 रुपये प्रति क्विंटल तक बोनस दिये जाने की बात आई थी साथ ही सहकारी बैंकों और समितियों से लिए गए कर्ज की अदायगी की सीमा भी मार्च से बढ़ाकर अप्रैल अंत तक कर दी गई थी। यद्यपि ये काफी घोषनाए मात्र बयानबाजी मे होनी बताई जा रही हैं सहकारिता विभाग का कहना है की हमारे पास कोई भी ऐसा लिखित आदेश सरकार से प्राप्त नहीं हुआ है जिससे हम तो वसूली करेंगे और डेफौल्टर को किसी प्रकार से व्याज मे अनुदान नहीं मिलेगा। साथ ही समय सीमा 28 मार्च के पहले तक है न की अप्रैल की यह कहना है गढ़ सहकारी बैंक सहित कई सहकारी बैंक के बैंक प्रबन्धकों का और साथ ही सभी प्रभारी समिति प्रबन्धकों का। अब समस्या यह है की किसान पहले ही सूखे अकाल की मार झेल रहा है अत्महत्या कर रहा है, अब ऐसे मे वह बैंकों का कर्ज आसानी से कैसे पटा पाएगा। इस पर बांस, हिनौती, कटरा, लौरी-गढ़ सहित गढ़ बैंक अंतर्गत आने वाली सभी नौ समितियों के किसानों ने असमर्थता जाहिर करते हुये बताया की मुख्यमंत्री तो भोपाल से घोषणा कर देते हैं लेकिन यहाँ जिले के सहकारी बैंक और समितियां अपनी मनमानी पर उतारू रहती हैं।
सैकड़ों किसानों के खातों मे अभी तक नहीं पहुचा धान खरीदी का पैसा –
ज़िला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित बैंक शाखा गढ़ अंतर्गत आने वाली समितियों एवं बनाए गए खरीदी केन्द्रों मे पिछले खरीफ 2017 की जो धान बेची गई थी अभी तक कई किसानों के पैसे उनके खातों मे नहीं पहुचे हैं। पुष्परज सिंह निवासी बड़िओर सहित कई ऐसे किसानों ने शिकायत दर्ज करवाते हुये बताया की रोज सहकारी बैंकों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं परंतु कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उधर सहकारी बैंकों के प्रबन्धक और समिति प्रबन्धकों का कहना होता है की ज़्यादातर खरीदी वाले पैसे पहुच चुके हैं। मात्र वही पैसे रुके हो सकते हैं जिनके खातों मे कोई गड़बड़ी रही हो अथवा दूसरे बैंकों के खाते रहे हों जिनके आई एफ एस सी कोड वगैरह मे कोई त्रुटि रही हो।
वहरहाल कारण चाहे जो भी हो पर आए दिन सहकारी बाँकों मे किसानों की भीड़ जमा देखी जा सकती है जिसमे से ज़्यादातर किसान अपने धान बेंची का पैसा लेने के लिए आते हैं और शाम तक बैंकों मे बैठे रहते हैं।
सहकारी बैंकों के साथ एक समस्या और भी बताई जा रही है। बैंक मैनेजर का कहना होता है की हमारे बैंक मे पैसे की लेनदेन की सीमा होती है। हमे केन्द्रीय ज़िला सहकारी बैंक मुख्य-शाखा रीवा से एक सीमित मात्रा मे ही पैसा मिलता है जिससे हम सभी किसानों अथवा हितग्राहियों को पर्याप्त मात्रा मे पैसा नहीं दे सकते हैं। इसीलिए हमने ज़्यादातर किसानों मे 5 से दस हज़ार तक की लिमिट बनाकर रखी हुई है जिससे सभी किसानों को थोड़ा थोड़ा दिया जा सके और सभी का चलता रहे। जबकि कई उपस्थित किसानों द्वारा लगातार बैंक प्रबंधन पर भी आरोप लगाया जाता रहा है की बैंक प्रबंधन पहुच वाले किसानों को तो एक मुस्त लाख तक दे देता है पर हम छोटे और बिना पहुच वाले किसानों को रोज बैंक के चक्कर लगाने पड़ते हैं और बैंक कर्मचारियों की जी हुज़ूरी करनी पड़ती है।
सहकारी बैंकों मे 12 महीने रहता है नोटबन्दी –
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी भले ही उनकी सरकार मे अब तक मात्र एक बार ही हुई है परंतु सहकारी बैंकों के यह हाल हैं की यहाँ पर हमेशा ही नोटबंदी रहती है। जब कभी भी जाया जाये तो पता चलता है की आज कैश की कमी है कल आइए, तो कल जाते हैं तो परसों और इसी प्रकार का रोज़ का सिलसिला चलता रहता है। सबसे बड़ी बात जो बैंक प्रबंधकों द्वारा बताई गई की सहकारी बाँकों मे जमा के नाम पर कहीं कुछ नहीं होता मात्र हमे देना पड़ता है। और चूंकि शाखा मे कैश की कमी निरंतर बनी रहती है अतः जैसा की बताया गया की जो राशि ऊपर की मुख्य शाखा से मिल गई उसी से काम चलाना पड़ता है। अतः जब तक दूसरे राष्ट्रीयकृत बैंकों की तरह सहकारी बैंक को भी विकसित नहीं किया जाएगा तब तक यही हालात बने रहेंगे।
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शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता, रीवा मप्र।
78699992139
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