Monday, July 31, 2023

Breaking: सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे और ईई गुर्दवान ने मिलकर 6 दोषियों को बचाने की गढ़ डाली कहानी // कहानी भी ऐसी फर्जी की सबके होश उड़ जाएं // सीईओ और कार्यपालन यंत्री की रात 9 बजे तक चलती है जिला पंचायत में गुफ्तगू // सभी भ्रष्टाचारियों की लगती है एकसाथ मीटिंग // धारा 89 की अंधेरे में सुनवाई के नाम पर चल रहा भ्रष्टाचारियों को बचाने का खेल // रात की सुनवाई में कमीशन और बचाने के खेल को समझ पाना हुआ मुश्किल//

*Breaking: सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे और ईई गुर्दवान ने मिलकर 6 दोषियों को बचाने की गढ़ डाली कहानी // कहानी भी ऐसी फर्जी की सबके होश उड़ जाएं // सीईओ और कार्यपालन यंत्री की रात 9 बजे तक चलती है जिला पंचायत में गुफ्तगू // सभी भ्रष्टाचारियों की लगती है एकसाथ मीटिंग // धारा 89 की अंधेरे में सुनवाई के नाम पर चल रहा भ्रष्टाचारियों को बचाने का खेल // रात की सुनवाई में कमीशन और बचाने के खेल को समझ पाना हुआ मुश्किल//*
दिनांक 31 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 तीरथ प्रसाद गुर्दवान मिलकर जिला पंचायत रीवा में मंगलवार रात 9:00 बजे और देर रात्रि तक भ्रष्टाचारियों को बचाने की जुगत में लगे रहते हैं। जानकर ताज्जुब होगा कि मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 89 की जो शक्ति मध्यप्रदेश शासन द्वारा समस्त जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को दी गई है उस सुनवाई का किस कदर बंटाधार किया जा रहा है और कैसे भ्रष्टाचारियों और दोषियों को वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही से विमुक्त किया जा रहा है उसका जीता जागता उदाहरण जिला पंचायत रीवा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय सौरव सोनवणे की कथित कोर्ट में देखा जा सकता है। 
  *स्टॉप डेम निर्माण में पाए गए 6 अधिकारी दोषी फिर भी कैसे हो गए दोषमुक्त जानिए यहां पर*

  ग्राम पंचायत चौरी जनपद पंचायत गंगेव में पीछे के कार्यकाल के दौरान 2016-17 में कुसिअरिया घाट के नाम पर स्टॉप डैम का निर्माण किया जाना बताया गया। जब कुसियरिया घाट में किसी भी प्रकार का स्टॉप डैम का होना नहीं पाया गया तब सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी और चौरी ग्राम पंचायत के गणमान्य नागरिकों ने मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी स्वप्निल वानखेड़े के समक्ष करी जिसके बाद जांच हुई और जांच में तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 आर एस धुर्वे और दो एसडीओ एसआर प्रजापति एवं जितेंद्र अहिरवार की संयुक्त दल ने जांच में पाया कि कुसियरिया घाट में स्टॉप डैम का निर्माण हुआ ही नहीं है और फिर पूरे मामले की लगभग 09 लाख रुपए की वसूली बना दी गई। जो वसूली बनाई गई उसमें 6 दोषियों को चिन्हित किया गया जिसमें प्रमुख रुप से तत्कालीन चौरी सरपंच सविता जायसवाल, तत्कालीन सचिव सुनील गुप्ता, तत्कालीन सहायक यंत्री अनिल सिंह, तत्कालीन और बर्खास्त उपयंत्री अजय तिवारी, कराधान घोटाले के मास्टरमाइंड तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव प्रमोद कुमार ओझा एवं तत्कालीन सहायक लेखा अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव संतोष कुमार शुक्ला के विरुद्ध बराबर बराबर वसूली बनाई गई। जब यह छः दोषी मामले में चिन्हित किए गए तो इनके द्वारा फर्जी कूट रचित कुछ कागज तैयार कर जवाब दिया गया कि कुसियरिया घाट स्टॉप डैम को स्थल परिवर्तित कर ग्राम खमरिया और खरहरी ग्राम के बीच स्थित नाले पर बना दिया गया है। परंतु खमरिया और खरहरी के आसपास स्थित लगभग आधा दर्जन से अधिक स्टॉप डैम पहले से बनाए गए हैं जो वाटरशेड और अन्य योजनाओं के बताए जा रहे हैं। तब यह कैसे सिद्ध होगा की खमरिया ग्राम में बनाया गया स्टॉप डैम वास्तव में कुसियरिया घाट के स्थान पर बनाया जा रहा स्टॉप डैम ही था? इस बात को लेकर शिकायतकर्ता द्वारा प्रश्न भी खड़ा किया गया कि आखिर बिना संशोधित प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृत और बिना सक्षम अधिकारी के आदेश के कैसे कोई सरपंच सचिव अपनी इच्छा से स्थल परिवर्तन कर सकता है। गौरतलब है कि जिस कुसियरिया घाट में स्टॉप डैम का निर्माण होना स्थल परिवर्तित कर बताया जा रहा है उसकी न तो अब तक संशोधित प्रशासनिक स्वीकृत न तकनीकी स्वीकृति न बिल वाउचर न ही मास्टर रोल और न ही मूल्यांकन पुस्तिका उपलब्ध करवाई गई है जिससे यह साबित हो पाए कि आखिर जो स्टॉप डैम बना हुआ बताया जा रहा है वह किसी अन्य योजना और मद का है अथवा स्थल परिवर्तित कर बनाया गया है?
  *स्थल परिवर्तित कर निर्माण कार्य कराए जाने की शक्ति अधिकारिता और इसकी प्रक्रिया पर बड़ा सवाल*

  बड़ा सवाल यह है कि जब किसी कार्य के लिए स्थल परिवर्तन किया जाता है तो उसके लिए विधिवत ग्रामसभा के प्रस्ताव से लेकर पुरानी तकनीकी स्वीकृत को निरस्त करते हुए नई तकनीकी स्वीकृति नए स्थल से संबंधित भूमि के चयन संबंधी दस्तावेज जैसे जमीन का नक्शा खसरा पटवारी प्रतिवेदन एवं संशोधित प्रशासकीय स्वीकृति भी जारी की जाती है। लेकिन जहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा तीरथ प्रसाद गुर्दवान द्वारा सांठगांठ कर फर्जी ग्रामसभा का प्रस्ताव और सहायक यंत्री का पंचनामा बनवा लिया गया है वहीं स्टॉप डैम की माप पुस्तिका कहां किसके पास है और माप पुस्तिका में क्या मेजरमेंट दर्ज है इसका कोई अता पता नहीं है और न ही संशोधित प्रशासकीय स्वीकृति और तकनीकी स्वीकृति उपलब्ध कराई गई है। 

   जानकारों और नियम की मानें तो संशोधित प्रशासकीय और तकनीकी स्वीकृति जारी करने के बाद उसकी एक प्रति समस्त वरिष्ठ कार्यालयों जैसे कलेक्टर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन सहित कार्यपालन यंत्री को तत्समय भेजी जाती है। लेकिन स्टॉप डैम मामले पर फर्जी ग्रामसभा के प्रस्ताव और फर्जी सहायक यंत्री के पत्र के अतिरिक्त कहीं कोई दस्तावेज और अभिलेख उपलब्ध नहीं करवाए गए हैं जिससे कि इस बात की प्रमाणिकता सिद्ध हो कि जो स्टॉप डैम कुसियरिया घाट के स्थल को परिवर्तित करते हुए अन्यत्र बनाया गया है क्या वह वास्तव में वही है अथवा नहीं। 
  *सबसे बड़ा सवाल कि क्या माप पुस्तिका में दर्ज मेजरमेंट के सत्यापन के बिना किसी भी प्रकार की जांच मान्य है?*

  अब यहां पर गौरतलब है कि जिन 6 दोषियों को मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा तीरथ प्रसाद गुर्दवान लेनदेन कर बचाने का प्रयास कर रहे हैं इसमें बड़ा सवाल यह है कि क्या बिना माप पुस्तिका में दर्ज माप के सत्यापन बगैर किसी भी प्रकार से कोई तकनीकी जांच मान्य की जा सकती है? माप पुस्तिका एक ऐसा दस्तावेज होता है जिसमें किसी भी निर्माण कार्य से संबंधित माप दर्ज होती है जिसके मेजरमेंट से यह पता लगाया जा सकता है कि बनाया गया स्ट्रक्चर क्या तकनीकी मापदंडों के अनुसार बनाया गया है अथवा नहीं। परंतु यहां पर कार्य की मापपुस्तिका तक उपलब्ध नहीं करवाई गई है जिससे इस बात की प्रमाणिकता ही नहीं है की मौके पर जो स्ट्रक्चर अन्यत्र ग्राम में बना हुआ बताया जा रहा है आखिर वह किस मद और किस योजना के तहत बनाया गया है।
  *पूर्णता प्रमाण पत्र स्टॉप डैम कुसियरिया घाट के नाम से जारी हुआ तब कैसे हो गया स्थल परिवर्तन?*

  दूसरा बड़ा सवाल यह है की कुसियरिया घाट में 10 लाख 50 हजार की लागत से तकनीकी स्वीकृत अनुसार जो स्टॉप डैम का निर्माण प्रस्तावित किया गया था उसमें जारी पूर्णता प्रमाण पत्र में अभी भी स्टाफ डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी ही दर्ज है। जबकि पूर्णता प्रमाण पत्र किसी भी निर्माण कार्य से संबंधित अंतिम दस्तावेज होते हैं तो यदि किसी भी प्रकार से नियमानुसार स्थल परिवर्तन किया गया होता तो निश्चित तौर पर नए स्थल खमरिया ग्राम के नाम पर पूर्णता अथवा उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी किया जाता न की पुराने स्थल के नाम पर। परंतु जिस प्रकार पुराने स्थल कुसियरिया घाट के नाम पर ही स्टॉप डैम निर्माण का पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया गया है इससे यह सिद्ध होता है की फर्जी तरीके से राशि का आहरण कर लिया गया और स्टाफ डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी बताया गया लेकिन जब मामले की शिकायत हुई और जब सभी छह अधिकारी दोषी पाए गए और वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए प्रस्ताव जिला पंचायत की तरफ भेजा गया तब बचाव में फर्जी तरीके से अभिलेखों को गढ़ने का काम किया गया जिसमें अब इनकी पोल खुल गई है। 
*गबन और फर्जी दस्तावेजों के गढ़ने पर भारतीय दंड  संहिता की इन धाराओं के तहत बनता है अपराध*

  यदि विशेषज्ञों की माने तो जिस प्रकार से स्टॉप डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी के नाम पर फर्जी पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया जाकर पूरी राशि 10.50 लाख रुपए का गबन तत्कालीन सरपंच सचिव उपयंत्री सहायक यंत्री मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव एवं सहायक लेखा अधिकारी के द्वारा किया गया और बाद में मामले को दबाने के लिए फर्जी ग्राम सभा का प्रस्ताव और सहायक यंत्री का फर्जी पत्र बनवाया जाकर फोर्जरी की गई है इससे भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत संज्ञेय और गंभीर धाराओं 467, 468, 471, 409, 420 एवं 34 सहित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) एवं 13(2) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया जाना चाहिए।
*मामले में सीईओ संजय सौरभ सोनवणे और कार्यपालन यंत्री तीरथ प्रसाद गुर्दवान की स्पष्ट भूमिका*

  जिस प्रकार कई बार जांचों में सिद्ध होते हुए इस बात की तस्दीक जांच रिपोर्ट में की गई और स्टॉप डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी में नहीं बनाया गया और सिरमौर तहसीलदार के प्रतिवेदन में भी यह बात सामने आ चुकी है फीर ऐसे में जिस प्रकार संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री गुर्दवान द्वारा मामले में फर्जीवाड़ा करवाते हुए 6 दोषी अधिकारियों को वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही से भी मुक्त किए जाने का गंदा खेल खेला जा रहा है ऐसे में सीईओ संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री तीरथ प्रसाद गुर्दवान दोनों की भूमिका स्पष्ट तौर पर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने और भ्रष्टाचार में संलिप्तता दर्शाती है।

*संलग्न* - मामले से संबंधित जांच प्रतिवेदन और 6 दोषियों को वसूली से विमुक्त किए जाने संबंधी कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा टीपी गुर्दवान का प्रतिवेदन एवं वीडियो बाइट आदि प्राप्त करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Breaking: घोटालों में कैसे हो रही है फर्जी जांचें और कैसे बन रहे हैं फर्जी पंचनामे मिल गए सबूत // ईई आरईएस रीवा टीपी गुर्दवान का कारनामा, गोशाला जांच में करवाए फर्जी हस्ताक्षर बनवाया फर्जी पंचनामा // जांच पर की गई लीपापोती, शिकायतकर्ता पियूष पांडेय ने कहा प्रभारी ईई गुर्दवान ने स्वयं किया है फर्जीवाड़ा // कमिश्नर के पत्र के बाबजूद भी शिकायतकर्ता का नहीं दर्ज कराया बयान // ईई गुर्दवान की भूमिका पर उठ रहे सवाल // उमरी पंचायत सिरमौर की गोशाला निर्माण में हुई धांधली पर उठे सवाल // पूर्व जिला पंचायत सीईओ स्वप्निल वानखेडे के कार्यकाल का है मामला//

*Breaking: घोटालों में कैसे हो रही है फर्जी जांचें और कैसे बन रहे हैं फर्जी पंचनामे मिल गए सबूत // ईई आरईएस रीवा टीपी गुर्दवान का कारनामा, गोशाला जांच में करवाए फर्जी हस्ताक्षर बनवाया फर्जी पंचनामा // जांच पर की गई लीपापोती, शिकायतकर्ता पियूष पांडेय ने कहा प्रभारी ईई गुर्दवान ने स्वयं किया है फर्जीवाड़ा // कमिश्नर के पत्र के बाबजूद भी शिकायतकर्ता का नहीं दर्ज कराया बयान // ईई गुर्दवान की भूमिका पर उठ रहे सवाल // उमरी पंचायत सिरमौर की गोशाला निर्माण में हुई धांधली पर उठे सवाल // पूर्व जिला पंचायत सीईओ स्वप्निल वानखेडे के कार्यकाल का है मामला//*

दिनांक 30 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  पूर्व जिला पंचायत सीईओ स्वप्निल वानखेडे के कार्यकाल के दौरान रीवा जिले में गौशाला निर्माण में हुए व्यापक घोटाले की एक-एक करके परत खुल रही हैं। जहां जिला पंचायत के द्वारा करवाई गई कुछ जांचों में लीपापोती हुई वहीं अब आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ रीवा के द्वारा पंजीबद्ध किए गए प्रकरण में भी नए खुलासे हो रहे हैं। 

  *कमिश्नर के जांच आदेश के बाद कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्दवान बनवाए फर्जी पंचनामे और बनवाए करवाया फर्जी हस्ताक्षर*
  गौरतलब है कि शिकायतकर्ता एवं संविदाकार पियूष पांडेय के द्वारा रीवा जिले में हुए व्यापक स्तर के गौशाला घोटाला को लेकर कई स्तर पर शिकायत की गई थी जिसमें जांचें भी कई स्तर की हुई जिसमें कुछ जांच मामले के आरोपी तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा स्वयं ही करवाई गई जिस पर लीपापोती का मामला सामने आया है। जांच के दौरान स्वयं शिकायतकर्ता द्वारा बनाए गए कुछ वीडियो में यह स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि जब सिरमौर जनपद की उमरी ग्राम पंचायत में निर्माणाधीन गौशाला की जांच हो रही थी तब ग्रामीण यांत्रिकी सेवा जिला रीवा के प्रभारी कार्यपालन यंत्री, जो मूल रुप से एसडीओ के पद पर थे और प्रभार के तौर पर रीवा जिला का कार्यभार दिया गया है, उनके द्वारा जांच में किस कदर फर्जीवाड़ा किया गया उपलब्ध वीडियो में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। यहां पर प्रभारी कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्दवान गाड़ी में बैठे हुए हैं और गाड़ी के गेट के सामने खड़े हुए उमरी सचिव से पंचनामें में हस्ताक्षर करने के लिए कह रहे हैं जिसमें सचिव द्वारा बताया जा रहा है कि उनके द्वारा बाद में उमरी पंचायत का कार्यभार लिया गया है लेकिन अभी गौशाला निर्माण से संबंधित कोई भी अभिलेख बिल बाउचर मूल्यांकन पुस्तिका आय-व्यय का ब्यौरा उन्हें प्राप्त नहीं है इसलिए वह नहीं जानते कहां कितना काम हुआ और कितनी राशि का आहरण हुआ लेकिन स्पष्ट तौर पर टीपी गुर्दवान सचिव पर दबाव देकर पंचनामा में हस्ताक्षर करने के लिए बोल रहे हैं। 
 
  *दूसरे वीडियो में महिला की लड़की स्वयं महिला का बिना पढ़े कर रही हस्ताक्षर, सब कुछ ईई और उपयंत्री के सामने*

  वहीं दूसरे वीडियो में दिखाया जाता है जिसमें उपयंत्री जीपी त्रिपाठी गौशाला के पास स्थित एक मकान में एक औरत और लड़की से बात कर रहे हैं जिसमें उन्हें पंचमाने में हस्ताक्षर करने के लिए कह रहे हैं। यहां पर यह भी देखा जा सकता है कि कैसे न तो उस औरत को कोई जानकारी है और न उस बच्ची को कि किस कागज में हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं और उस कागज में आखिर लिखा क्या है और न ही उन्हें पढ़कर सुनाया गया। मामला तब और भी संदेहास्पद हो गया जब महिला के हस्ताक्षर को स्वयं उसकी बिटिया के द्वारा किया जा रहा है जिसमें शिकायतकर्ता पीयूष पांडेय आपत्ति कर रहे हैं कि बिना कागज को देखे पढ़े कैसे सिग्नेचर कर दिए और अपना सिग्नेचर किसी दूसरे से कैसे करवा दिए। यहां पर यह भी देखा जा सकता है कि उपयंत्री जी पी तिवारी स्वयं कह रहे हैं कि यह गलत हुआ है लेकिन उस पंचनामा को लेकर अपना काम निकाल कर आगे बढ़ जाते हैं। 
*वास्तव में यह वीडियो ही ग्रामीण विकास की वास्तविक सच्चाई*

  जिस प्रकार ग्राम पंचायत उमरी जनपद पंचायत सिरमौर में हुए व्यापक स्तर के गौशाला घोटाले को लेकर रीवा संभाग के कमिश्नर की उच्च स्तरीय जांच में फर्जी पंचनामा बनवाने, फर्जी जांच रिपोर्ट दिए जाने और शिकायतकर्ता पीयूष पांडेय का कथन और बयान शिकायत की जांच प्रतिवेदन में सम्मिलित न किए जाने का मामला सामने आया है इससे स्पष्ट हो जाता है कि न केवल रीवा जिले में बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में ग्रामीण विकास की यही सच्चाई है। जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्स के पैसे से देश के विकास के लिए आने वाले राशि का नीचे से लेकर ऊपर तक बैठे हुए यह अधिकारी किस प्रकार बंदरबांट कर रहे हैं इसका जीता जागता उदाहरण इस प्रकरण से समझा जा सकता है। वहरहाल मामले को लेकर शिकायतकर्ता पीयूष पांडेय के द्वारा कमिश्नर रीवा संभाग को आपत्ति की गई थी जिसके बाद कमिश्नर रीवा संभाग ने एक अन्य पत्र जारी करते हुए तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा स्वप्निल वानखेड़े को आवश्यक तौर पर शिकायतकर्ता के कथन/बयान सम्मिलित किए जाकर जांच प्रतिवेदन देने के लिए निर्देशित किया था लेकिन इसके बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई जिसके कारण शिकायतकर्ता को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।
*संलग्न* - कृपया संलग्न उमरी पंचायत में गौशाला की जांच के दौरान कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 रीवा टीवी गुर्दवान के द्वारा बनवाया गया फर्जी पंचनामा का वीडियो आदि देखने का कष्ट करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Friday, July 28, 2023

Breaking: धारा 89 की सुनवाई का खेल, सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे की सुनवाई का नहीं कोई निश्चित समय// मंगलवार को रात में 9 बजे तक चलती रहती है सुनवाई// कार्यालयीन समय से इतर नही है किसी को सुनवाई का अधिकार// ग्रामीण लोगों को रात में घर वापस जाने में दिक्कत// सीईओ जिला पंचायत कार्यालय समय पर क्यों नहीं करते सुनवाई? // कार्यालयीन समय से हटकर रात में धारा 89 की सुनवाई करने का क्या है औचित्य? // सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे नहीं बैठते कार्यालय में // अक्सर मिलने वाले लोग होते हैं मायूस, वापस लौट जाते हैं गांव//

Breaking: धारा  89 की सुनवाई का खेल, सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे की सुनवाई का नहीं कोई निश्चित समय// मंगलवार को रात में 9 बजे तक चलती रहती है सुनवाई// कार्यालयीन समय से इतर नही है किसी को सुनवाई का अधिकार// ग्रामीण लोगों को रात में घर वापस जाने में दिक्कत// सीईओ जिला पंचायत कार्यालय समय पर क्यों नहीं करते सुनवाई? // कार्यालयीन समय से हटकर रात में धारा 89 की सुनवाई करने का क्या है ? // सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे नहीं बैठते कार्यालय में // अक्सर मिलने वाले लोग होते हैं मायूस, वापस लौट जाते हैं गांव//
दिनांक 28 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  मध्य प्रदेश के जिला पंचायत कार्यालयों में पंचायती राज व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही है। आलम यह है की ग्राम पंचायतों और जनपद पंचायतों सहित जिला पंचायत में व्यापक स्तर का भ्रष्टाचार फैला हुआ है लेकिन कार्यवाही के नाम पर मात्र लीपापोती की जाती है। हालिया उदाहरण रीवा जिले का है जहां जिला पंचायत कार्यालय में कई वर्षों से लंबित पड़ी हुई हजारों की संख्या में शिकायतों का कोई समुचित निराकरण नहीं किया जा रहा है और जांच के नाम पर मात्र खानापूर्ति की जा रही है। 
जाने क्या है धारा 89 की सुनवाई और क्यों है महत्वपूर्ण

   गौरतलब है कि जब पंचायतों के भ्रष्टाचार की जांच करवाई जाती है उसके बाद प्रकरण मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत की न्यायालय में पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 89, 40 और 92 की सुनवाई हेतु प्रस्तुत किया जाता है। धारा 89 की सुनवाई में सभी पक्षों को सुना जाता है और वरिष्ठ इंजीनियर के तकनीकी जांच प्रतिवेदन के आधार पर वसूली और अन्य अनुशासनात्मक और अनुवर्ती कार्यवाही हेतु निर्णय पारित किया जाता है जिसके बाद धारा 40 जिसमें पद से पृथक करने की कार्यवाही होती है और धारा 92 जिसमें गबन की राशि को वसूली किए जाने और एफ आई आर दर्ज किए जाने की कार्यवाही की जाती है जो इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं। जिससे स्पष्ट होता है कि यदि पंचायती राज व्यवस्था में भ्रष्टाचार को कम करना है तो धारा 89, 40 और 92 की कार्यवाही को और भी अधिक मजबूत किया जाना अनिवार्य हो जाता है जिससे सरपंच, सचिव और पंचायत विभाग के कर्मचारियों/अधिकारियों में कानून के प्रति भय बना रहे और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके। लेकिन जिला पंचायत रीवा में जबसे मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय सौरव सोनवणे आए हुए हैं तब से हालत यह हैं कि सुनवाई पर सुनवाई तो की जा रही है लेकिन किसी सार्थक नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। जिन पंचायतों में पहले कई लाख रुपए की वसूली बनाई गई थी अब जांच के नाम पर उनकी वसूली कम किए जाने का भी खेल चल रहा है। एक ताजा उदाहरण गंगेव जनपद की ग्राम पंचायत सेदहा, चौरी और उधर नईगढ़ी जनपद की ग्राम पंचायत जिलहड़ी और अन्य ग्राम पंचायतों का है।
मंगलवार को होती है धारा 89 की सुनवाई लेकिन कोई समय निश्चित नहीं कितनी रात तक चलेगी
 
  गौरतलब है की पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 89 की सुनवाई मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा के न्यायालय में मंगलवार को नियत की गई है लेकिन स्वयं सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे का कोई समय ही सुनिश्चित नहीं है कि वह कार्यालय में कब से कब तक बैठेंगे। सुनवाई की तो बात ही छोड़िए यहां तो सामान्य व्यक्ति शिकायत लेकर और मिलने के लिए आते हैं तो भी सीईओ का कोई अता पता नहीं रहता है। बताया जाता है कि सीईओ संजय सौरव सोनवणे आजकल जिला कलेक्टर कार्यालय रीवा के एक कक्ष में बैठते हैं जहां से फाइल डीलिंग का काम किया जाता है। मंगलवार को नियत की गई धारा 89 की सुनवाई का समय निर्धारित नहीं होने से कई बार सुनवाई रात्रि 9:00 बजे तक चलती रहती है जिसमें कर्मचारी तो परेशान होते ही हैं साथ में वह आवेदक, शिकायतकर्ता और पक्षकार भी परेशान होते हैं जो दूरदराज गांव से आकर सुनवाई में अपना पक्ष रखना चाहते हैं।
    इस बात को लेकर सरकारी कर्मचारी सहित कई शिकायतकर्ताओं और पक्षकारों ने कड़ी आपत्ति व्यक्त की है।
  सीईओ संजय सौरभ सोनवणे ने आरटीआई के प्रथम अपीलीय अधिकारी के पदों को भी बना दिया मजाक

  बात यहीं तक आकर नहीं रुकती बल्कि अभी पिछले माह जब नईगढ़ी सीईओ के प्रभार में रहे एडिशनल सीईओ एबी खरे को निलंबित कर सतना में अटैच किया गया तो उसके बाद से आरटीआई की सुनवाई हेतु प्रथम अपीलीय अधिकारी के पद और दायित्व पर भी संकट उत्पन्न हो गया। नियमानुसार होना तो यह चाहिए की आरटीआई से जुड़े मामलों में प्रथम अपीलीय अधिकारी स्वयं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत को बनाया जाए अथवा अपने से कनिष्ठ एडिशनल सीईओ को बनाया जाए लेकिन यहां पर लंबा खेल कर दिया गया और आरटीआई कानून की धज्जियां उड़ाते हुए एक परियोजना अधिकारी को ही प्रथम अपीलीय अधिकारी बना दिया गया जिनको न तो आरटीआई की सुनवाई की कोई ट्रेनिंग है और न ही कानून का कोई ज्ञान। इससे साफ स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार जिला पंचायत रीवा में पंचायती राज व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई जा रही है।

संलग्न - कृपया संलग्न कुछ पंचायतों के धारा 89 के प्रकरणों की स्थिति देखने का कष्ट करें।

स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश

Tuesday, July 25, 2023

Breaking: जिला पंचायत रीवा बना भ्रष्टाचारियों का पनाहगार// सीईओ स्तर से भ्रष्टाचारियों को बचाने का चल रहा खेल// सेवा समाप्ति से संबंधित कार्यवाहियों की फाइल जिला पंचायत में दफन // नहीं मिल रही चाही गई जानकारियां, मात्र जांच पर जांच का चल रहा खेला// वर्षों के लंबित पड़ी सैकड़ों शिकायतों पर कोई जांच कार्यवाही नही मात्र जिनकी पहले जांच रिकवरी हुई उन पर ही चल रहा लीपापोती का खेल//

*Breaking: जिला पंचायत रीवा बना भ्रष्टाचारियों का पनाहगार// सीईओ स्तर से भ्रष्टाचारियों को बचाने का चल रहा खेल// सेवा समाप्ति से संबंधित कार्यवाहियों की फाइल जिला पंचायत में दफन // नहीं मिल रही चाही गई जानकारियां, मात्र जांच पर जांच का चल रहा खेला// वर्षों के लंबित पड़ी सैकड़ों शिकायतों पर कोई जांच कार्यवाही नही मात्र जिनकी पहले जांच रिकवरी हुई उन पर ही चल रहा लीपापोती का खेल//*
दिनांक 25 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  जिला पंचायत रीवा भ्रष्टाचारियों का पनाहगाह मात्र बन चुका है। जिले की 800 से अधिक ग्राम पंचायतों में व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार पर की गई शिकायतों पर मात्र लीपापोती का खेल चल रहा है। सैकड़ों शिकायतें ऐसी हैं जो पिछले 5 वर्षों से लंबित पड़ी है और जिन पर कोई जांच और कार्यवाही नहीं हुई जबकि मात्र उन शिकायतों पर ही बार-बार जांचें चल रही हैं जिन पर पहले ही वसूली बनाई जा चुकी है। जो हाल पूर्व जिला पंचायत सीईओ स्वप्निल वानखेडे का था कहीं उससे बदतर स्थिति वर्तमान जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे की कार्यप्रणाली की है। हाल यह हैं की वर्तमान जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे तो जिला पंचायत कार्यालय तक में नही बैठते। ऐसा लगता है जैसे इन्हे आम जनता से मिलने में एलर्जी है। 

  *सूरा और पचोखर में पीएम आवास घोटाले की जांच रिपोर्ट दबाकर बैठ गए सीईओ और कलेक्टर*

   तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा स्वप्निल वानखेड़े के कार्यकाल के दौरान 2021-22 में जनपद पंचायत गंगेव की ग्राम पंचायत सूरा एवं पचोखर में प्रधानमंत्री आवास निर्माण में किए गए व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार की जांच करवाई गई थी। जांच के दौरान दोनों ही पंचायतों में दोष सिद्ध पाया गया था और अपात्र नौकरीपेशा और सरकारी पेंशन प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि जारी कर दी गई थी। जांच रिपोर्ट आने के बाद तत्कालीन सीईओ स्वप्निल वानखेडे द्वारा तत्कालीन कलेक्टर डॉक्टर इलैया राजा टी एवं मनोज पुष्प को रोजगार सहायक की सेवा समाप्ति के लिए नोटशीट और प्रस्ताव भेजा था। लेकिन फिर यहां से खेला कर दिया गया और फाइल को इधर-उधर एल भटका दिया गया जिस पर जांच के नाम पर अभी भी फाइल कहां दबी हुई है इसका कोई अता पता नहीं है। मामले की जानकारी के लिए सूचना का अधिकार आवेदन भी जिला कलेक्टर कार्यालय रीवा में लगाया गया लेकिन प्रथम अपील के बावजूद भी उसकी भी जानकारी आज तक मुहैया नहीं करवाई गई है। 
  *चौरी, सेदहा, जिलहड़ी और बांस सहित दर्जनों पंचायतों की धारा 89 की कार्यवाही के नाम पर पेशी दर पेशी*

  मामला यहीं आकर नहीं रुकता बल्कि जहां जिला पंचायत रीवा में पिछले 4 से 5 वर्षों में हजारों की संख्या में शिकायतें लंबित पड़ी हुई हैं और जिन पर मात्र लीपापोती का खेल ही खेला गया है वहीं ऐसी कुछ पंचायतें हैं जिनकी पहले से जांच होकर वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही निर्धारित कर दी गई है परंतु इसके बावजूद भी मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे धारा 89 की सुनवाई के नाम पर पेशी दर पेशी कर रहे हैं और कोई निर्णय पारित नहीं कर रहे हैं जबकि देखा जाए तो धारा 89 पर सुनवाई के लिए आने के बाद से दर्जनों जांचे इन पंचायतों की कराई जा चुकी हैं जिसका कोई औचित्य नहीं बनता है क्योंकि देखा जाए तो इन्हीं कई जांचों के स्थान पर पहले से सैकड़ों पंचायतों की लंबित पड़ी जांच करवाई जा सकती थी जिनकी शिकायतें कई वर्षों से लंबित पड़ी हुई हैं। लेकिन ऐसी लंबित पड़ी जांच न करवाते हुए मात्र ऐसी पंचायतों की जांच बार-बार करवाई जा रही है जिन पर पहले ही जांच पर वसूली निर्धारित की जा चुकी है और मात्र उस पर लीपापोती करने के उद्देश्य से और उन्हें बचाने के नाम पर ऐसा खेल खेला जा रहा है। 
    जाहिर है ऐसे में मध्यप्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश के समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 89, 40 और 92 की जो सुनवाई की शक्ति वापस दे दी गई है उस पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है क्योंकि इनका काम मात्र लेनदेन करना है। और यदि मामला सेटल नहीं होता तो ऐसी स्थिति में बार-बार जांच पर जांच करवाई जा रही है जबकि इन जांचों का कोई औचित्य नहीं बनता। 
 *प्रशासनिक रिसोर्स और जांच एजेंसियों का गलत ढंग से किया जा रहा दुरुपयोग*

  लोकतांत्रिक परंपरा में प्रशासनिक व्यवस्था और नौकरशाही जनता के टैक्स के पैसे से संचालित होती है। जाहिर है जो भी प्रशासनिक रिसोर्स और जांच एजेंसियां हैं उनका यदि सही सदुपयोग नहीं किया गया तो ऐसे में जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी होती है। जाहिर है जिला पंचायत रीवा में जो कारगुजारी एक लंबे अरसे से चल रही हैं उसमें साफ तौर पर स्पष्ट होता है कि जिन पंचायतों की पहले ही जांच कर वसूली निर्धारित की जा चुकी है उन पर सीधे कार्यवाही कर देनी चाहिए थी लेकिन इसी जनता के टैक्स के पैसे और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करते हुए बार-बार उन्हीं पंचायतों की जांच क्यों करवाई जा रही है जिनकी जांच पहले से हो चुकी है और वसूली निर्धारित हो चुकी है? प्रशासनिक रिसोर्स और जांच एजेंसियों का सही सदुपयोग वहां पर कहलाएगा जहां ऐसी पंचायतों की जांच करवाई जाए जिनकी जांच कई वर्षों से लंबित हैं और जिनकी हालिया शिकायतें की जा रही हैं और जिनकी जांचें अब तक एक बार भी नहीं हुई है। ऐसी पंचायतों की बार बार जांच करवाने का क्या मतलब है जिनकी पहले से ही कई जांच हो चुकी हैं। ऐसे में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा की कार्यप्रणाली स्वयं ही संदेह के दायरे में आ जाती हैं और स्पष्ट हो जाता है कि सीईओ मात्र ऐसी पंचायतों के पक्ष में बैटिंग कर रहे हैं जो भ्रष्टाचार की दोषी पाई गई हैं और जो भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं और मात्र उनको बचाने का प्रयास किया जा रहा है। 
  *मध्यप्रदेश में ग्रामीण विकास की स्थिति चिंताजनक, नीचे से लेकर ऊपर तक अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में संलिप्त*

  मध्यप्रदेश में लगभग 24 हजार ग्राम पंचायतों में ग्रामीण विकास के लिए आने वाली राशि का किस कदर बंदरबांट किया जा रहा है उसका जीता जागता उदाहरण रीवा जिले और रीवा संभाग में देखा जा सकता है जहां जनता के टैक्स के पैसे से सार्वजनिक विकास और हितग्राही मूलक योजनाओं के लिए आने वाली राशि को कर्मचारी और अधिकारी अपने निजी हित में उपयोग करते हुए भ्रष्टाचार फैला रहे हैं। चाहे वह 13 वां वित्त आयोग 14 वाँ वित्त आयोग वर्तमान में संचालित 15 वां वित्त आयोग सभी के हालात एक जैसे ही हैं। जहां मनरेगा योजना अंतर्गत राशि का आवंटन और वितरण ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाले गरीब कामकाजी मजदूरो के उत्थान के लिए होना चाहिए वहीं आज मशीनों जेसीबी से पूरा काम औने पौने में करवाते हुए लाखों करोड़ों की राशि अधिकारियों द्वारा मिल बांटकर हजम कर ली जा रही है। ऐसा भी नहीं है कि इसकी शिकायतें नहीं आती अथवा इसके सबूत और प्रमाण नहीं है बल्कि देखा जाए तो हर एक ग्राम पंचायत में इन योजनाओं के काम मशीनों जेसीबी और नियम विरुद्ध करवाए जाकर फोटो वीडियो पेपर पत्रिकाओं में लगभग हर रोज ही आते रहते हैं लेकिन आलम यह है कि वरिष्ठ पदों पर बैठे हुए कमीशनखोर और भ्रष्टाचारी अधिकारी सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखें और कान बंद किए हुए हैं क्योंकि इस कमीशन में इन सभी की बराबर की सहभागिता है।
*संलग्न* - कृपया संलग्न वीडियो वाइट वीडियो फुटेज एवं अन्य दस्तावेज प्राप्त करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Saturday, July 22, 2023

Breaking: गोशाला घोटाला में रीवा अव्वल, बाहर से आए लुटेरे लूट गए गोशाला का निर्माण का धन // छतरपुर इंदौर और नई दिल्ली से आए ठेकेदारों ने निपटा दिया रीवा की गोशालाएं// रीवा के पेटी ठेकेदार पियूष पांडेय सहित दर्जनों को बनाया बलि का बकरा, लुटेरे पेटी ठेकेदार बनाकर मार गए पूंजी // लोकायुक्त ईओडब्ल्यू से लेकर मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री तक भेजी गई शिकायतें पर नहीं हुई कोई कार्यवाही// अंत में शिकायतकर्ता पीयूष पांडे को कोर्ट की लेनी पड़ रही है शरण

*Breaking: गोशाला घोटाला में रीवा अव्वल, बाहर से आए लुटेरे लूट गए गोशाला का निर्माण का धन // छतरपुर इंदौर और नई दिल्ली से आए ठेकेदारों ने निपटा दिया रीवा की गोशालाएं// रीवा के पेटी ठेकेदार पियूष पांडेय सहित दर्जनों को बनाया बलि का बकरा, लुटेरे पेटी ठेकेदार बनाकर मार गए पूंजी // लोकायुक्त ईओडब्ल्यू से लेकर मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री तक भेजी गई शिकायतें पर नहीं हुई कोई कार्यवाही// अंत में शिकायतकर्ता पीयूष पांडे को कोर्ट की लेनी पड़ रही है शरण/*/
दिनांक 22 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

   मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री गोशाला योजना के तहत बनाई जा रही गौशालाओं की स्कीम को वर्तमान मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा हाईजैक करते हुए गोशाला योजना प्रारंभ की गई वह खटाई में पड़ती नजर आ रही है। आज पूरे 5 वर्ष व्यतीत होने को हैं और मुख्यमंत्री गोशाला योजना के तहत बनाई जा रही गौशालाओं का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है जिसके कारण बेसहारा गोवंश दर-दर मारे मारे फिर रहे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। गोवंशों का मामला एक बार फिर लाइमलाइट में है क्योंकि किसानों की खरीफ बुवाई का समय चल रहा है और कई जगह तो फसलें बड़ी होने के कारण जब यह बेसहारा गोवंश उनकी फसलों को नुकसान करते हैं तो इन्हें विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित करते हैं। रीवा जिले के परिपेक्ष में बात की जाए तो पिछले 1 से लेकर 2 दशक के बीच में गोवंशों के साथ भारी अत्याचार हुआ है जिसमें उनके मुंह पैर तार से बांध दिया जाना, घाटियों और खाइयों में धकेल दिया जाना, नहरों और जलप्रपातों में धकेल दिया जाना से लेकर अवैध तरीके से बनाए जा रहे बाड़ों में कैद कर दिया जाता है जिससे निरीह प्राणी मौत के घाट उतर जाते हैं।
*रीवा जिले में हुआ बड़ा घोटाला, गौशालाओं के नाम पर बाहरी ठेकेदार लूट ले गए धन*

  रीवा जिले में निर्माणाधीन गौशालाऔ को बनाने के लिए रीवा जिले से बाहर के मटेरियल सप्लायर, वेंडरों और ठेकेदारों को काम सौंपा गया था जिसके पूरे प्रमाण बिल वाउचर भी उपलब्ध हैं और जिसकी शिकायतें भी कई स्तर पर की जा चुकी हैं। गौरतलब है कि मनरेगा योजना के अंतर्गत बनाई जा रही पंचायती गौशालाओं का निर्माण कार्य मात्र पंचायत ही कर सकती है और किसी वेंडर अथवा ठेकेदार को काम नहीं सौंपा जा सकता। मध्य प्रदेश पंचायत सामग्री माल क्रय अधिनियम 1999 के तहत गौशाला में काम करने वाले मजदूरों के मस्टर रोल जारी होते हैं और निविदा जारी करते हुए सबसे कम कीमत में सामग्री बेचने वाले मटेरियल सप्लायर का चयन किया जाता है। जाहिर है यदि कोई मटेरियल सप्लायर कानपुर, छतरपुर, इंदौर अथवा नई दिल्ली से मटेरियल सप्लाई कर रहा है तो इसका सीधा सा मतलब समझ लेना चाहिए कि गौशाला निर्माण में व्यापक स्तर का खेल हुआ है जिसमें अपने चहेते ठेकेदारों को पंचायत के सरपंच सचिवों के ऊपर दबाव दिया जाकर अथवा उनकी सांठगांठ से अधिकारियों के दबाव में बाहर के ठेकेदारों को काम दे दिया गया और फर्जी बिल वाउचर लगाते हुए काम कराए गए। कई गौशालाओं की जांचें हुईं तो यह देखा गया की उनकी क्वालिटी भी इस मानक स्तर की नहीं है जिस हिसाब से गौशालाओं का निर्माण किया जाना था। अमित पटेरिया राजाराम कुशवाहा और भारद्वाज जैसे मटेरियल सप्लायर और वेंडरों को काम दिया जाना जिनकी फर्में स्वयं ही छतरपुर और इंदौर से ताल्लुक रखती हैं साफ स्पष्ट होता है कि पूरे ही मामले में व्यापक स्तर का घोटाला हुआ है। 
 *कलेक्टर कमिश्नर और लोकायुक्त की जांच में लीपापोती*

   इस बाबत शिकायत रीवा जिले के एक पेटी ठेकेदार और इंजीनियरिंग कॉलेज रीवा के पास आउट इंजीनियर पीयूष पांडेय द्वारा किया गया जिसमें उनके द्वारा बताया गया इस पूरे मामले में उन्हें भी बलि का बकरा बनाया गया और पेटी कॉन्ट्रैक्ट में अमित पटेरिया राजाराम कुशवाहा और भारद्वाज जैसे लोगों के द्वारा काम पेटी कांट्रेक्टर को दे दिया गया और बताया गया कि भुगतान हो जायेगा। लेकिन मामला सिर्फ यहीं तक नहीं रुका और पेटी कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए पीयूष पांडेय जैसे दर्जनों ठेकेदारों से अग्रिम राशि भी घूस के तौर पर ली गई जिसे उच्च पदों पर बैठे हुए आला अधिकारियों को कमीशन देने की बात कही गई। यह कोई आरोप नहीं है बल्कि व्हाट्सएप संदेश के माध्यम से इंजीनियर और ठेकेदारों के द्वारा जो कम्युनिकेशन ठेकेदारों से किए गए उसके पुख्ता प्रमाण भी आज भी उपलब्ध हैं और इन्हें जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त को हार्ड कॉपी में प्रस्तुत भी किया जा चुका है। 
*लोकायुक्त ईओडब्ल्यू से लेकर शासन स्तर तक पहुंचाई गई गौशाला घोटाले की शिकायत*

  जब पियूष पांडेय और उनके जैसे कई पेटी ठेकेदारों के द्वारा अपने किए गए कार्य का पैसा नहीं मिला तो उन्होंने इसकी शिकायत करना प्रारंभ किया। इसके विषय में विधिवत एसपी कलेक्टर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा से लेकर कमिश्नर रीवा संभाग और ईओडब्ल्यू लोकायुक्त सहित मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन एवं प्रधानमंत्री कार्यालय तक अपनी शिकायतें भेजी गई जिसमें वह समस्त दस्तावेज भी संलग्न किए गए जो इस बात के पुख्ता प्रमाण थे कि किस प्रकार से उनके बैंक अकाउंट में राशि का आदान-प्रदान हुआ है और कैसे बिना उनके हस्ताक्षर से फर्जी बिल जारी करते हुए गौशाला निर्माण से संबंधित भुगतान में व्यापक स्तर का भ्रष्टाचार किया गया। मामले से संबंधित जो भी व्हाट्सएप और मोबाइल आदि के माध्यम से कम्युनिकेशन हुए और जो भी रिकॉर्डिंग शिकायतकर्ताओं के पास उपलब्ध थी वह सब वरिष्ठ कार्यालयों को उपलब्ध करवाई गई है। लेकिन इसके बावजूद भी निचले स्तर के जिले में बैठे हुए अधिकारियों के द्वारा स्वयं जांच करते हुए मामले को दबा दिया गया जिसके बाद पियूष पांडे द्वारा परिवाद दायर करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है।
  *घोटालों के बीच गोवंशों का जीवन संकट में*

  अब सवाल यह है कि मानव ने गौशाला निर्माण के लिए आई राशि का जो बंदरबांट मिलजुलकर कर लिया जिसमें घोटालेबाज ठेकेदार सरपंच सचिव तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत जनपद पंचायत सहित इंजीनियर ने मिलकर मामले पर लीपापोती कर दी लेकिन अब सवाल यह है कि यदि गौशालाओं का निर्माण नहीं हो पाता तो ऐसे में उन हजारों लाखों की संख्या में बेसहारा घूम रहे गोवंशों के भविष्य का क्या होगा जिन्हे आए दिन प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है और खेती किसानी करने वाले लोगों के द्वारा उनका मुंह पैर तार से बांध दिया जाना, अवैध बांडों में कैद कर दिया जाना और उनके साथ विभिन्न प्रकार से पशु क्रूरता की जा रही है। 
    
  *रीवा जिले की गौशाला घोटाला की जांच हो और दोषियों पर कार्यवाही की जाए - शिवानंद द्विवेदी*

   यदि इस घोटाले की जांच नहीं होती और दोषियों को दंडित नहीं जाता तो निश्चित तौर पर गोवंशों के साथ न्याय नहीं कहलाएगा। इसलिए आज आवश्यकता है कि एक उच्चस्तरीय टीम गठित कर स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से रीवा जिले में हुए व्यापक स्तर के गौशाला निर्माण घोटाले की जांच की जाए और दोषियों पर कार्यवाही किया जाए और जल्द से जल्द गौशाला निर्माण कार्य पूरा किया जाकर गोवंशों को पोषण और संवर्धन हेतु सुरक्षित किया जाए। जिससे न केवल गोवंश की सुरक्षा हो साथ में किसानों की फसल नुकसानी भी न हो जिससे किसानों का उत्पादन भी बढ़े और देश की कृषि उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो।  यह सब तभी संभव हो पाएगा जब गोवंशों की सुरक्षा और संवर्धन किया जाकर गोवंश आधारित उत्पाद से जैविक कृषि को बढ़ोतरी मिलेगी।
*संलग्न* - कृपया संलग्न शिकायतकर्ता पीयूष पांडे की शिकायतें सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की बाइट आदि प्राप्त करें।
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*