Sunday, December 10, 2023

Breaking: विश्व मानवाधिकार दिवस पर आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार// देश के जाने माने संपादक, सूचना आयुक्त और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट ने कार्यक्रम में लिया हिस्सा// सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी और प्रवीण पटेल ने मिलकर आयोजित किया वेबीनार//

*Breaking: विश्व मानवाधिकार दिवस पर आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार// देश के जाने माने संपादक, सूचना आयुक्त और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट ने कार्यक्रम में लिया हिस्सा// सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी और प्रवीण पटेल ने मिलकर आयोजित किया वेबीनार//*
दिनांक 10 दिसंबर 2023 रीवा मध्य प्रदेश

   10 दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें देश के जाने-माने पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों, सूचना आयुक्त और मानवाधिकार संरक्षण से जुड़े हुए एक्टिविस्टों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी एवं फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के ट्रस्टी एवं सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल के द्वारा किया गया।

  कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन नई दिल्ली के सदस्य और ह्यूमन राइट्स डिफेंडर उड़ीसा से मनोज जेना ने बताया कि वर्ष 2013-14 से लेकर अब तक ह्यूमन राइट्स वायलेशन बढ़ गए हैं और साथ ही ह्यूमन राइट डिफेंडर्स का काम भी प्रभावित हुआ है। कहीं न कहीं इसके लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कमी बड़ा कारण देखा जा रहा है। वहीं रिटायर्ड आईएएस अधिकारी जतीस मोहंती ने बताया की समाज में मानवाधिकार का हनन एक आम बात हो गई है जिसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। 
     
     कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने भी अपने विचार रखे और कोर्ट में बढ़ते हुए प्रकरण, निरंतर हो रहे मानवाधिकार के हनन और साथ में आरटीआई कानून को कमजोर करने को लेकर चिंता जाहिर की। कार्यक्रम में सोशल एक्टिविस्ट झरना पाठक ने भी अपने विचार रखें और मानवाधिकार को महिला उत्पीड़न से जोड़ते हुए समाज में महिलाओं के प्रति क्रूरता और अत्याचार को लेकर चिंता जाहिर की। अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस रायपुर से सहायक संपादक एजाज कैसर ने भी पत्रकारिता के माध्यम से अपने अनुभवों को साझा किया और बताया कि जब भी ऐसे मामले उनके संज्ञान में आए हैं उन्होंने पूरी जिम्मेदारी और तरीके से समाज के सामने रखा है। फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन और फ्रीडम ऑफ स्पीच सहित पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ती दखलंदाजी को लेकर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा की स्वयं पत्रकारों का भी मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है इसके कई उदाहरण उपलब्ध हैं। 

  कार्यक्रम में फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल ने भी अपने विचार रखें और अपने अनुभवों को विस्तार से साझा किया और बताया की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कमी की वजह से आज मानवाधिकार हनन से जुड़े हुए मुद्दों को उठाने वाले ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स और मानवाधिकार संरक्षण के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को स्वयं भी खतरा उत्पन्न हो गया है। कार्यक्रम में कई पार्टिसिपेंट्स और अन्य लोगों ने भी अपने विचार साझा किए और ह्यूमन राइट्स वायलेशन से संबंधित प्रश्न रखें।
*संलग्न* - कृपया संलग्न कार्यक्रम से संबंधित जुड़ी हुई तस्वीरें प्राप्त करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Saturday, December 9, 2023

Breaking: न्यायालयीन प्रकरणों में जवाब फाइल नहीं करवा रहे CEO जिला पंचायत रीवा // हाई कोर्ट के दर्जनों प्रकरणों में जवाब नही किए जा रहे फाइल// जानबूझकर अधिकारियों के द्वारा जवाब फाइल न होने से दोषियों को मिल रहा स्थगन का लाभ // हाईकोर्ट में दर्जनों ऐसे मामले जहां समय पर जवाब फाइल न किए जाने से प्रतिवादी को मिल रहा फायदा // हालिया मामला सेदहा ग्राम पंचायत की सीईओ द्वारा जारी 27 लाख रुपए की वसूली नोटिस का है जहां पर सचिव सरपंच ने सीईओ जिला पंचायत की नोटिस के विरुद्ध दायर की रिट याचिका//

*Breaking: न्यायालयीन प्रकरणों में जवाब फाइल नहीं करवा रहे CEO जिला पंचायत रीवा // हाई कोर्ट के दर्जनों प्रकरणों में जवाब नही किए जा रहे फाइल// जानबूझकर अधिकारियों के द्वारा जवाब फाइल न होने से दोषियों को मिल रहा स्थगन का लाभ // हाईकोर्ट में दर्जनों ऐसे मामले जहां समय पर जवाब फाइल न किए जाने से प्रतिवादी को मिल रहा फायदा // हालिया मामला सेदहा ग्राम पंचायत की सीईओ द्वारा जारी 27 लाख रुपए की वसूली नोटिस का है जहां पर सचिव सरपंच ने सीईओ जिला पंचायत की नोटिस के विरुद्ध दायर की रिट याचिका//*

दिनांक 10 दिसंबर 2023 रीवा मप्र।

  हाई कोर्ट में लंबित दर्जनों मामलों में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवडे समय पर जवाब प्रस्तुत नहीं करवा पा रहे हैं जिसकी वजह से भ्रष्टाचारियों को कोर्ट से स्थगन का लाभ मिल रहा है। ग्राम पंचायत सेदहा जनपद पंचायत गंगेव की चौरी, सेदहा और बांस सहित ऐसी दर्जनों पंचायतें हैं जहां ऐसे दर्जनों मामले हाई कोर्ट जबलपुर में पेंडिंग पड़े हुए हैं जहां जानबूझकर समय पर जवाब प्रस्तुत नहीं करवा पाने के कारण पंचायत के भ्रष्टाचार में दोषी पाए गए सरपंच सचिव और इंजीनियर को स्थगन का लाभ मिल रहा है।
 *सेदहा पंचायत में सरपंच सचिव द्वारा अब तक दायर की जा चुकी हैं 6 रिट याचिका*

  गौरतलब है की सेदहा पंचायत के तत्कालीन सरपंच पवन कुमार पटेल एवं सचिव दिलीप कुमार गुप्ता के द्वारा हाई कोर्ट जबलपुर में अब तक कुल 6 रिट याचिका दायर की जा चुकी है जिसमे मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा के द्वारा या की कोई जवाब ही प्रस्तुत नहीं किए गए अथवा आधे अधूरे जवाब प्रस्तुत किए गए हैं जिसकी वजह से हाई कोर्ट के स्थगन आदेश को निरस्त नहीं किया जा सका है।
    इस प्रकार के मामलों में स्थगन देते समय हाईकोर्ट के द्वारा चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जाते हैं लेकिन मामला सालों साल चलता रहता है जिससे भ्रष्टाचारियों के मनोबल बढ़े हुए हैं।
  *सरपंच पवन कुमार पटेल और सचिव दिलीप कुमार गुप्ता की छठवीं रिट याचिका 28852/2023*

  अभी हाल ही में अक्टूबर नंबर 2023 के दौरान सेदहा पंचायत के तत्कालीन सरपंच पवन कुमार पटेल एवं सचिव दिलीप कुमार गुप्ता को सीईओ जिला पंचायत की 27 लाख रुपए के वसूली मामले में दोषी पाया गया था उसी को लेकर इनके द्वारा हाईकोर्ट जबलपुर में रिट याचिका क्रमांक 28852 वर्ष 2023 दायर की गई है जिस पर सुनवाई जस्टिस श्री संजय कुमार द्विवेदी की सिंगल बेंच में चल रही है जिसमें अगली सुनवाई की तारीख 12 दिसंबर 2023 लगाई गई है।
     सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा बताया गया कि उन्होंने इस बाबत मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवडे से व्यक्तिगत मिलकर और संदेशों के माध्यम से कई बार मामले पर कैविएट लगाने अथवा जवाब प्रस्तुत करने के लिए आग्रह किया गया लेकिन अब तक सीईओ जिला पंचायत के द्वारा किसी भी प्रकार से मामले में रुचि नहीं दिखाई गई है। जिससे साफ जाहिर है की अधिकारी स्वयं चाहते हैं की दोषी व्यक्ति को आसानी से स्थगन का लाभ मिल जाए और बाद में मामले में उल्टा सीधा जवाब लगाकर रफा दफा करवा दिया जाय।
  *वसूली नोटिस के बाद दोषी पाते हैं हाईकोर्ट में पनाहगाह*

  सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने बताया कि उन्होंने ऐसे कई मामलों को हाईकोर्ट स्तर पर डिफेंड किया है जिसमें उनके द्वारा बताया गया कि कई मामलों में तो वह स्वयं भी अपने वकीलों के माध्यम से जवाब लगवाते हैं और कैविएट भी दायर करते हैं लेकिन वास्तव में होता यह है की ऐसे कार्य शासन स्तर के हैं जहां हाईकोर्ट के ऐसे मामलों पर शासन को समयबद्ध तरीके से या की कैविएट लगानी होती है या कि समय पर जल्द ही जवाब फाइल करना होता है लेकिन जिस प्रकार से पंचायत विभाग के मामलों में देखा जा रहा है की मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एवं जनपद पंचायत सहित ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के कार्यपालन यांत्रियों के द्वारा जवाब लगाने में कोई रुचि नहीं ली जा रही है इससे वसूली और कार्यवाही के दोषी पाए गए सरपंच सचिव और इंजीनियरों के मनोबल बढ़े हुए हैं और हाईकोर्ट उनके लिए पनाहगाह बन चुका है जहां किसी भी प्रकार के अपराधिक मामलों पर वह जाकर आसानी से स्थगन प्राप्त कर रहे देखे जा रहे हैं।
  *यदि कैविएट लगाई जाए और समय पर जवाब प्रस्तुत किया जाए तो न मिले स्थगन का लाभ*

   मामलों पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने बताया कि अमूमन प्रशासनिक स्तर से कार्यवाही से छटपटाए हुए दोषी कर्मचारी अधिकारी हाईकोर्ट में स्थगन के लिए चले जाते हैं और वहां उन्हें आसानी से स्थगन मिल जाता है। स्थगन मिलने के बाद शासन स्तर से समय पर जवाब प्रस्तुत नहीं किया जाता इसलिए ऐसे मामले सालों साल चलते रहते हैं। रीवा जिले के बर्खास्त सहायक यंत्री अमूल्य खरे और उपयंत्री आरिफ मुस्तफा जैसे कई उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इनके मामले एक दशक से हाईकोर्ट जबलपुर में पेंडिंग पड़े हुए हैं जहां पर स्थगन को वेकेट करने के लिए शासन स्तर से कोई प्रयास नहीं किए गए और न ही समय पर जवाब ही प्रस्तुत किया गया जिसकी वजह से बर्खास्त सहायक और उपयंत्री भी और अधिक भ्रष्टाचार बढ़ाते हुए पंचायतों में डटे हुए हैं।
  अब यदि ऐसे में शासन स्तर से या की कैविएट लगा दी जाए या की समय पर जवाब प्रस्तुत कर दिया जाए और स्थगन वैकेट करने के लिए हाईकोर्ट से आग्रह किया जाए तो ऐसे मामलों को डिफेंड किया जा कर जल्दी कार्यवाही करवाई जा सकती है। लेकिन बड़ा सवाल यह है बड़े प्रशासनिक अधिकारियों के ही संरक्षण में पल बढ़ रहे भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए ही प्रशासन स्वयं रुचि नहीं लेता जिसकी वजह से चाहे वह हाईकोर्ट हो अथवा किसी भी प्रकार का अन्य न्यायालय ऐसे दोषियों के लिए पनाहगाह साबित हो रहा है।

*संलग्न* - जनपद पंचायत गंगेव ग्राम पंचायत सेदहा के तत्कालीन सरपंच पवन कुमार पटेल एवं सचिव दिलीप कुमार गुप्ता के द्वारा हाईकोर्ट जबलपुर में जिला रीवा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय सौरव सोनवडे के 27 लाख रुपए के वसूली आदेश के विरुद्ध लगाए गए याचिका और उससे संबंधित अन्य दस्तावेज एवं अन्य फोटो वीडियो आदि संलग्न।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Thursday, November 30, 2023

*Breaking: त्योंथर बहाव परियोजना में ENC एमजी चौबे ने ऊषा मार्टिन कम्पनी को पहुचाया अनैतिक लाभ // एक्वाडक्ट टूटने पर लगभग 3 करोड़ 50 लाख रूपये का कर दिया अधिक भुगतान // ENC एमजी चौबे ने निर्माण कम्पनी का किया बचाव // बिना बाढ़ के ही नदी में बाढ़ आना बताकर गलत कार्य को किया पास // जुर्माने और टर्मिनेट करने के स्थान पर दिखाई मेहरबानी // फाइल खुली तो सबके उड़े होस // RTI से प्राप्त जानकारी और पुराने विडियो ने जल संसाधन विभाग की कार्यप्रणाली की एक बार पुनः खोल दी पोल //*

*Breaking: त्योंथर बहाव परियोजना में ENC एमजी चौबे ने ऊषा मार्टिन कम्पनी को पहुचाया अनैतिक लाभ // एक्वाडक्ट टूटने पर लगभग 3 करोड़ 50 लाख रूपये का कर दिया अधिक भुगतान // ENC एमजी चौबे ने निर्माण कम्पनी का किया बचाव // बिना बाढ़ के ही नदी में बाढ़ आना बताकर गलत कार्य को किया पास // जुर्माने और टर्मिनेट करने के स्थान पर दिखाई मेहरबानी // फाइल खुली तो सबके उड़े होस // RTI से प्राप्त जानकारी और पुराने विडियो ने जल संसाधन विभाग की कार्यप्रणाली की एक बार पुनः खोल दी पोल //*
दिनांक 30/11/2023 रीवा मप्र. 

  त्योंथर बहाव परियोजना को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है. एक पुराने विडियो ने जल संसाधन विभाग की कार्यप्रणाली की एक बार पुनः पोल खोल दी है. मामला इंजिनियर इन चीफ रहे एमजी चौबे के कार्यकाल का है जहाँ त्योंथर बहाव परियोजना से जुड़े एक एक्वाडक्ट निर्माण में हुई गड़बड़ी और भ्रष्टाचार को लेकर जारी किये गए इंस्पेक्शन नोट ने पूरे मामले पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस मामले से यह स्पष्ट हो गया है की कैसे तत्कालीन इंजिनियर इन चीफ एमजी चौबे ने 24 मई 2016 को जारी किये गए अपने इंस्पेक्शन नोट और मीटिंग मिनट में स्वयं ही गड़बड़ी का होना स्वीकार किया और स्वयं ही ठेका कम्पनी ऊषा मार्टिन लिमिटेड को साढ़े 3 करोड़ रुपए की बड़ी रियायत दे डाली. बड़ा सवाल यह है जब ईएनसी ने स्वयं ही मिनट मीटिंग और इंस्पेक्शन नोट्स में गड़बड़ी होना स्वीकार किया और उसे डॉक्यूमेंट के तौर पर नोट किया तो फिर क्यों ठेका कम्पनी को कम्पनी की गलती और निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की वजह से टूटे एक्वाडक्ट को सही बताते हुए साढ़े 3 करोड़ रूपये का अलग से राशि जारी की गयी? 

*कैसा था त्योंथर बहाव परियोजना से जुड़ा हुआ जल संसाधन विभाग का प्लान?*

  अब यदि दिनांक 22 मई 2016 को त्योंथर बहाव परियोजना से सम्बंधित टमस नदी में बनाए गए एक्वाडक्ट के निरीक्षण टीप की बात की जाय तो इस निरीक्षण के दौरान तत्कालीन जल संसाधन विभाग के चीफ इंजिनियर श्रीकांत दांडेकर, अधीक्षण यंत्री अजय सिंघल, कर्पापालन यंत्री अरविन्द त्रिपाठी, अनुविभागीय अधिकारी मयंक सिंह उपस्थित रहे. निरीक्षण टीप पर अपना पत्र जारी करते हुए इंजिनियर इन चीफ  एमजी चौबे ने बताया की त्योंथर बहाव परियोजना टोंस हाइडल पॉवर प्रोजेक्ट से 5.1 किलोमीटर दूरी पर है. इस नहर सिस्टम का हेड डिस्चार्ज 30 क्यूमेक्स है. यह नहर 5 किलोमीटर 21 मीटर की लम्बाई पास करने के बाद एक प्राकृतिक नाले से होकर गुजरती है जहाँ अंत में पानी को स्टोर करने के लिए एक छोटी खाड़ीनुमा आकृति का रूप दिया जाना है. इस खाड़ी का उपयोग 0.5 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी सुरक्षित करते हुए टमस नदी के दायें हिस्से में महाना कैनाल सिस्टम एवं टमस नदी के बाएं हिस्से में त्योंथर बहाव परियोजना के लिए पानी सप्लाई किये जाने का प्रावधान रखा गया है. इस खाड़ीनुमा आकृति में इस पानी को सुरक्षित करते हुए शेष पानी 2.4 मीटर व्यास की गोलाई वाली ह्यूम पाइप जिन्हें प्रीस्ट्रेस्ड कंक्रीट पाइप (पीएससी) कहा जाता है उसके माध्यम से 4 किलोमीटर और 210 मीटर तक लम्बाई से पास किये जाने का प्रावधान है. इस पीएससी पाइप के माध्यम से पानी सप्लाई करने के बाद टमस नदी आ जाती है जहाँ पर 4.210 किमी से लेकर 4.660 किमी तक कुल 450 मीटर लम्बाई में साइफन एक्वाडक्ट बनाया जाना था जो की टमस नदी की गहराई के बीच से होकर गुजरना था. इसके बाद नहर का पानी आगे चलकर 53 किमी लम्बाई की खुली नहर से होकर गुजरते हुए किसानों के खेतों तक पहुचाने का प्रवधान था. 
    *क्या कहता है दिनांक 22.05.202016 का ईएनसी का त्योंथर बहाव परियोजना का इंस्पेक्शन नोट्स*

  इंजीनियर इन चीफ एमजी चौबे ने अपने 24 मई 2016 के इंस्पेक्शन नोट में बताया की टमस एक्वाडक्ट एक सिंगल बैरल स्ट्रक्चर है जो कुल 10 स्पैन में बनाया जाना था जिसमे एक्वाडक्ट के प्रत्येक स्पैन की लम्बाई 42 मीटर रखी गयी थी . प्रत्येक स्पैन की चौड़ाई और डायमेंशन 3.3 मीटर गुणा 3.3 मीटर का होना बताया गया है. जब सवाल उठा की आखिर इतने उच्स्तर के कार्य में एक्वाडक्ट ध्वस्त कैसे हो गया तो इंस्पेक्शन नोट्स में बताया गया की 16 मई 2016 की रात लगभग 2.30 बजे एक्वाडक्ट के सपोर्ट में बनाए गए पिलर नंबर 7 और 8 के टूटने और धसने की आवाज आई जिसमे मौजूद एसडीओ द्वारा बताया गया की एक्वाडक्ट को सपोर्ट करने वाले जो पिलर और बेस बनाए गए थे उसके फेलियर के कारण ऐसा हुआ. बताया गया की जो पाइप एक्वाडक्ट को जोड़ने के लिए बीच में लगाईं गयी थीं वह भी क्रेकिंग आवाज के साथ टूटकर बैठने लगीं. अंततः एक्वाडक्ट के लिए बनाया गया बैरल टूटकर बैठ गया और दो टुकड़ों में विभाजित होकर वी आकर ले लिया. बैरल के दोनों हिस्से नजदीकी पिलर पर टूटकर टिक गए. बताया गया की एसडीओ की चेतावनी के बाद सभी काम करने वाले लेबर वहां से भाग खड़े हुए लेकिन जनरेटर की तेज आवाज के कारण एक लेबर को चेतावनी सुनाई नहीं दी इसलिए वह नहीं भाग पाया और उसकी मृत्यु हो गयी. 
*इंजिनियर इन चीफ ने कहानी गढ़ने में अकल नहीं लगाईं इसलिए पकड़े गए!*

  अब कहानी में ट्विस्ट इंस्पेक्शन रिपोर्ट और मीटिंग मिनट के अगले चरण से आती है. यहाँ से स्पष्ट देखा जा सकता है की इंजीनियर इन चीफ रहे एमजी चौबे ने कहानी तो गढ़ डाली लेकिन होम वर्क नहीं किया इसलिए कहते हैं की एक झूंठ को सही बताने के लिए कभी-कभी 100 झूंठ के पुलिंदे भी बनाने पड़ते हैं लेकिन कहीं न कहीं झूंठ अपने पीछे सबूत छोड़ ही जाता है. 
  ईएनसी चौबे की कहानी में आगे लिखा है की बैरल और एक्वाडक्ट का सपोर्ट 30 सेमी मोटे कंक्रीट के 6.60 मीटर गुणा 1.80 मीटर आयताकार टुकड़ों पर रखा हुआ था जो नीचे नदी तल से 6 मीटर उंचाई पर मिटटी पर टिका हुआ था. अब बड़ा सवाल यह है कि कई हजार टन की वजन वाले बैरल और एक्वाडक्ट को कैसे बिना मिटटी को प्रॉपर कम्पेक्सन किये हुए ऊपर डाल दिया गया जिसका नतीजा यह हुआ की बैरल और एक्वाडक्ट धस कर बैठ गया और एक्वाडक्ट टूट गया.  
 *ठेका कम्पनी को बचाने पानी गिरने और बाढ़ आने की बनाई गयी झूंठी कहानी* 

   यहाँ पर गौरतलब है की ठेका कम्पनी ऊषा मार्टिन को उपकृत करने और बचाने के लिए एवं साढे 3 करोड़ रूपये का अधिक लाभ देने के लिए पानी गिरने और बाढ़ आने की झूंठी कहानी बनाई गयी. बताया गया की 15 मई 2015 की रात को पूरी रात पानी गिरा जिसकी वजह से बाढ़ आ गयी और अगले दिन भी 2 बजे दिन में 20 मिनट के लगभग पानी गिरने से बैरल और एक्वाडक्ट गिरने की घटना हुई. 

  इस प्रकार ईएनसी एमजी चौबे ने बताया की बैरल गिरने और एक्वाडक्ट गिरने की जो घटना घटित हुई वह वह बाढ़ और भारी बारिस की वजह से हुई. अब ईएनसी चौबे आगे लिखते हैं की उन्होंने ऊषा मार्टिन के प्रीस्ट्रेसिंग एक्सपर्ट मुकेश मिश्रा को बुलाकर कांट्रेक्टर ऊषा मार्टिन लिमिटेड को निर्देशित किया की बैरल और एक्वाडक्ट के बीच के हिस्से में सपोर्ट के लिए कंक्रीट की डायमेंशन बढ़ाकर  6.6 मीटर गुणा 1.8 मीटर के स्थान पर 9 मीटर गुणा 3 मीटर की जाय जिससे लोड का समुचित डिस्ट्रीब्यूशन हो सके जिससे पुनः ऐसी घटना न घटे. इसके अतिरिक्त ईएनसी ने आगे लिखा की कंक्रीट को सपोर्ट करने के लिए जो मिटटी जमाव की गई थी उसे चौड़ाई में 2 मीटर अतिरिक्त बढाया जाए जिससे यहाँ भी लोड के डिस्ट्रीब्यूशन के कारण पुनः ऐसी स्थिति निर्मित न हो. इस प्रकार आगे लिखा गया की कांट्रेक्टर 8 और 9 नंबर के पिलर के बीच में बैरल और एक्वाडक्ट के सपोर्ट को बेहतर बनाने के लिए सपोर्ट सिस्टम बढाने पर प्लान कर रहा है.
 
*अब पूरा माजरा ऐसे समझें* 

  जल संसाधन विभाग के इंजिनियर इन चीफ एमजी चौबे ने किस प्रकार अपने पद का दुरूपयोग करते हुए ठेका कम्पनी को उपकृत करते हुए जनता के टैक्स के पैसे की बर्वादी की इसको इनके खुद के इंस्पेक्शन नोट और प्रिंसिपल सेक्रेटरी की मीटिंग मिनट से समझा जा सकता है। ईएनसी एमजी चौबे द्वारा हस्ताक्षरित संलग्न पत्र क्रमांक 3441065/पी-2/2007 भोपाल दिनांक 24 मई 2016 में चौबे ने स्वयं स्वीकार किया है की बैरल और एक्वाडक्ट को सपोर्ट करने के लिए नीचे मिटटी की चौड़ाई 2 मीटर बढाई जानी चाहिए जबकि मिटटी की उंचाई 6.6 मीटर गुणा 1.8 मीटर के स्थान पर 9 मीटर गुणा 3 मीटर की जाय. अब ऐसे में जाहिर है वी आकार में टूटकर बैठ गया बैरल स्वयं गलत डिजाईन और तकनीकी मापदंडों का सही पालन न करने के कारण हुआ न की बाढ़ अथवा पानी की वजह से. 
  *एक पुराने वीडियो ने ईएनसी चौबे की झूंठ की खोल दी पोल* 

  त्योंथर बहाव परियोजना से सम्बंधित टमस नदी पर तत्समय बनाया जा रहा एक्वाडक्ट और बैरल जब टूटकर बैठ गया था तब उसी समय वहां से स्थानीय लोगों के द्वारा एक वीडियो भी बनाया गया था जो आज भी मौजूद है और जो ईएनसी एमजी चौबे के झूंठ की पोल खोल रहा है. वीडियो में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है की कैसे एक्वाडक्ट और बैरल टूट कर वी आकार में बैठ गया है लेकिन वहीँ नदी के नीचे डाली गयी मिटटी में कोई बहाव नहीं हुआ है. बड़ा सवाल यह है की जिस प्रकार ईएनसी एमजी चौबे ने झूंठ का पुलिंदा गढ़ते हुए रात में तेज बारिस और बाढ़ आना बताकर एक्वाडक्ट बहने की बात लिखी है वह इस वीडियो से पूरी तरह से निराधार प्रतीत होती है. कोई अनपढ़ व्यक्ति भी यह समझ सकता है की यदि नदी में बाढ़ आएगी तो सेटरिंग और मिटटी पूरी तरह से बह जाएगी और बैरल एक्वाडक्ट एक बार में ही नीचे टूटकर ध्वस्त हो जायेगा न की वह वी आकार में बैठेगा. और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब एक्वाडक्ट के नीचे से मिट्टी का बहाव ही नहीं हुआ तो फिर बाढ़ कैसे आ गई और तेज बारिश बताया जाना किस हद तक जायज है? और उससे भी बड़ा सवाल यह है की आखिर मई 2015 जब की यह घटना बताई जा रही है आखिर कब इतनी भीषण बारिस हुई थी और कब इतनी अधिक बाढ़ आई थी?

 *एक्वाडक्ट को ही इंस्पेक्शन नोट में बना दिया साइफन एक्वाडक्ट* 

  
   मजे की बात यह भी है की ईएनसी जैसे प्रदेश के बड़े इंजिनियर ने एक एक्वाडक्ट को ही  साइफन एक्वाडक्ट बना दिया. वस्तुतः एक्वाडक्ट और  साइफन एक्वाडक्ट में बड़ा अंतर होता है. जहाँ नालों और छोटे स्थानों पर एक्वाडक्ट बनाया जाना है वहीँ टमस जैसी बड़ी नदियों में जहाँ 450 मीटर लम्बाई में नदी के बहाव को क्रॉस कर पाइप लाइन निकाली जानी होती है वहां  साइफन एक्वाडक्ट बनाया जाना प्रस्तावित होता है. गौरतलब है की  साइफन एक्वाडक्ट को नदी के नीचे गहराई में खोदकर कंक्रीट डालकर बनाया जाता है न की ऊपर से. लेकिन जिस प्रकार त्योंथर बहाव परियोजना के इस हिस्से में टमस नदी पर एक्वाडक्ट को ही साइफन एक्वाडक्ट मान लिया गया यह कहीं न कहीं ईइएनसी जैसे वरिष्ठ अधिकारी की कार्य क्षमता और स्वविवेक पर भी प्रश्न खडा करता है. कुल मिलाकर इस पूरे मामले से यह भलीभांति समझा जा सकता है की किस प्रकार से ईएनसी ने जहाँ अपने मिनट मीटिंग और इंस्पेक्शन रिपोर्ट में स्वयं ही तकनीकी मापदंडों के अनुरूप एक्वाडक्ट का कार्य होना नहीं पाया वहीँ ऊषा मार्टिन कम्पनी से सांठगांठ करते हुए जनता के टैक्स की साढ़े 3 करोड़ रूपये की गाढ़ी कमाई को कम्पनी और जल संसाधन विभाग के भ्रष्टाचार की बलि चढ़ा दी गयी. 

   अब बड़ा सवाल यह है आखिर कब ईएनसी एमजी चौबे और दोषी एसई और ईई के ऊपर कार्यवाही होगी?

*संलग्न* - कृपया संलग्न वह वीडियो देखें जहाँ मई 2015 में त्योंथर बहाव परियोजना से सम्बंधित एक्वाडक्ट टूटने को दिखाया गया है जहाँ बिना बारिस और बिना मिटटी के बहाव हुए ही मात्र तकनीकी गलती की वजह से इतना बड़ा नुकसान हुआ जिसके लिए ईएनसी ने साढ़े तीन करोड़ रूपये का एक्स्ट्रा पेमेंट किया और साथ में वीडियो बाइट प्राप्त करें एवं मिनट मीटिंग/इंस्पेक्शन रिपोर्ट की प्रति भी प्राप्त करें. 

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Saturday, November 25, 2023

Breaking: CEO जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे का एक और करनामा// धारा 89 की सुनवाई के बिना ही जारी कर दिया मनमाना वसूली आदेश // मामला है बांस पंचायत का जहां पूर्व ईई आर एस धुर्वे की जांच को धता बताते हुए अमानक घटिया रपटे को किया गया मान्य// 14.49 लाख के स्थान पर मात्र बनाई गई 1 लाख 36 हजार की वसूली // कूटरचित दस्तावेज तैयार करने माप से अधिक मूल्यांकन दर्ज करने और फर्जी दस्तावेज तैयार करने पर भी नही हुई FIR// बड़ा सवाल: आखिर क्या सीईओ जिला पंचायत श्री सोनवणे की अब ऐसी ही रहेगी कार्यपणाली!

*Breaking: CEO जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे का एक और करनामा// धारा 89 की सुनवाई के बिना ही जारी कर दिया मनमाना वसूली आदेश // मामला है बांस पंचायत का जहां पूर्व ईई आर एस धुर्वे की जांच को धता बताते हुए अमानक घटिया रपटे को किया गया मान्य// 14.49 लाख के स्थान पर मात्र बनाई गई 1 लाख 36 हजार की वसूली // कूटरचित दस्तावेज तैयार करने माप से अधिक मूल्यांकन दर्ज करने और फर्जी दस्तावेज तैयार करने पर भी नही हुई FIR// बड़ा सवाल: आखिर क्या सीईओ जिला पंचायत श्री सोनवणे की अब ऐसी ही रहेगी कार्यपणाली!*

दिनांक 25 नवंबर 2023 रीवा मप्र।

  मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवड़े का एक और करनामा सामने आया है जहां 10 नवंबर 2023 को बांस ग्राम पंचायत जनपद पंचायत गंगेव में हुए व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार की जांच को लेकर उन्होंने मात्र लगभग एक लाख 89 हजार रुपए की वसूली नोटिस जारी की है। मामले पर आपत्ति जाहिर करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने अब निर्वाचन आयोग नई दिल्ली और भोपाल को भी शिकायत की है। 
*दो जांचे जिसमे सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे नही कर पाए निराकरण*

  गौरतलब है की बांस ग्राम पंचायत से संबंधित पहली शिकायत वर्ष 2020 में की गई थी जिसमें दो दर्जन से अधिक कार्यों की जांच तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 2 डीएस आर्मों एसडीओ आरडी पांडेय एवं सहायक यंत्री मनीष मिश्रा आदि की उपस्थिति में की गई थी जिसमें व्यापक स्तर पर अनियमितता और गड़बड़ी प्रकाश में आई थी। लेकिन ग्राम पंचायत के तत्कालीन सरपंच गीता पटेल एवं सचिव मेदनी प्रसाद आदिवासी के द्वारा जांच से संबंधित अभिलेख उपलब्ध नहीं करवाए जाने के कारण कुछ कार्यों को छोड़कर शेष कार्यों की वसूली नहीं बन पाई थी। इसके बाद दूसरी शिकायत वर्ष 2022 में की गई जब अक्टूबर के दरमियान तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 आर एस धुर्वे, एसडीओ जितेंद्र अहिरवार एवं सहायक यंत्री एस आर प्रजापति द्वारा जांच की गई जिसमें कुल 09 बिंदुओं की जांच की गई और तब भी अभिलेख उपलब्ध न हो पाने के कारण जहां कार्य अमानक गुणवत्ता विहीन बताए गए लेकिन जांच पूर्ण नहीं हो सकी। बड़ा सवाल आखिर दस्तावेज उपलब्ध करवाएगा कौन?
  *इन इन बिंदुओं पर स्पष्ट अभिमत के बाद भी सीईओ और ईई ने किया भ्रष्टाचारियों का बचाव*

  तत्कालीन कार्यपालन मंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा आर एस धुर्वे की दूसरी जांच में कराधान मद से बनाए गए रपटा निर्माण हनुमान मंदिर बांस के पास जिसकी लागत 14 लाख 49 हजार स्वीकृत थी गुणवत्ताविहीन अमानत और स्तरहीन करार दिया गया। जांच के दौरान पाया गया की 30 मीटर रपटे का मूल्यांकन किया गया था जबकि मौके पर वह 21.25 मीटर ही पाया गया जबकि कंक्रीट के नीव की गहराई 1.75 मीटर मूल्यांकित थी जबकि मौके पर 0.35 मीटर ही पाई गई। सरफेस पर स्लैब के स्थान पर घटिया मटेरियल डस्ट आदि डालकर बनाया गया था जो 5 मीटर लंबाई में टूटा हुआ पाया गया था। रपटे में न तो विंग वाल है और न ही एप्रोन पाया गया जिसे जांच टीम ने पूरी तरह से निरस्त करते हुए मूल्यांकनकर्ता अधिकारियों और इंजीनियर को दोषी ठहराया था जिसकी संपूर्ण 14 लाख 49 हजार की वसूली बनाई जानी थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया और मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा  द्वारा शिकायतकर्ता को बिना जानकारी दिए हुए और धारा 89 की सुनवाई का अवसर दिए हुए ही दोषी मूल्यांकनकर्ताओं के साथ सांठगांठ कर मात्र 1 लाख 36 हजार रुपए की ही वसूली बनाई गई जिसको लेकर अब बड़े सवाल खड़ी किए गए हैं।
 *कराधान घोटाले से संबंधित है मामला, कई इंजीनियर है कार्यवाही की जद में*

  वास्तव में यह मामला रीवा जिले के बहुचर्चित कराधान घोटाले से भी संबंधित है जहां पर कई मूल्यांकनकर्ता इंजीनियर दोषी हैं जिसमें सहायक यंत्री आरपी कुशवाहा उपयंत्री के एल पट्टा एवं हरिदर्शन पटेल ने न केवल बांस बल्कि दर्जनों ऐसी ही पंचायत मे कराधान मद में किए गए निर्माण कार्य में गलत कूटरचित तरीके से फर्जी मूल्यांकन करने के कारण दोषी पाए गए हैं जिसमें पूर्व में सेदहा एवं चौरी ग्राम पंचायत भी सम्मिलित हैं। लेकिन जिस प्रकार निरंतर फर्जी कूटरचित दस्तावेज तैयार करने और गलत मूल्यांकन करने के बावजूद भी इंजीनियर और सहायक यंत्री सहित अधिकारियों को जिला पंचायत सीईओ के द्वारा बचाने का प्रयास किया जा रहा है और एफ आई आर दर्ज करवाने एवं अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के स्थान पर मात्र कुछ हजार रुपए की वसूली से अभयदान दिया जा रहा है यह जिला पंचायत सीईओ संजय सौरव सोनवडे की कार्यप्रणाली पर एक बार पुनः प्रश्न खड़ा करता है। बड़ा सवाल यह है की आखिर जिला सीईओ क्या जांच रिपोर्ट स्वयं नहीं पढ़ते? क्या सीईओ संजय सौरभ सोनवणे आंख मूदकर सुनवाई कर रहे हैं?
 *आखिर को जिला पंचायत ने शिकायतकर्ता को धारा 89 की सुनवाई में अपना पक्ष रखने क्यों नहीं बुलाया*

  यहां पर बड़ा सवाल यह है की मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993-94 की धारा 89 की सुनवाई में विधिवत दोनों पक्षों को मौका दिया जाता है जिसमें वह अपनी बात तथ्यों और प्रमाणों के साथ रखें इसके बाद गुण दोष के आधार पर को जिला पंचायत सीईओ मामले पर अपना अंतिम आदेश जारी करते हैं लेकिन यहां पर यह बात गौरतलब है कि जहां चौरी और सेदहा जैसी पंचायत में राजनीतिक दबाव और पक्षपात के चलते दर्जन भर बार से अधिक सुनवाई की गई और कई बार जांच पर जांच की गई वहीं अन्य पंचायतो एवं बांस पंचायत के मामले में मात्र बंद कमरे में बैठकर सुनवाई नोटिस जारी कर दी गई और मात्र लगभग एक लाख 89 हजार रुपए के आसपास वसूली नोटिस जारी करते हुए मामले की इतिश्श्री कर दी गई।
 
  *14.49 लाख रुपए के रपटे के गबन में किन-किन अधिकारियों का है शेयर*

  बड़ा सवाल यह है कि जहां सेदहा पंचायत के एक ऐसे ही मामले पर पूरी वसूली बनाई गई है वहीं दूसरी तरफ आखिर बांस पंचायत के मामले में जब माप से अधिक का मूल्यांकन किया गया और घटिया स्तरहीन एवं गुणवत्ताविहीन कार्य को पास करते हुए मात्र 1 लाख 36 हजार रुपए की ही वसूली बनाई गई तो बड़ा सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस 14 लाख 49 हजार के मामले में कौन-कौन से अधिकारी और इंजीनियर की हिस्सेदारी है? आखिर जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स के पैसे की इस प्रकार से बर्बादी करने में सीईओ जिला पंचायत और कार्यपालन यंत्री की क्यों रुचि है? जाहिर है शायद इसमें बड़ा हिस्सा इन अधिकारियों को भी  जाता होगा तभी बार-बार दोषी पाए जाने वाले एक ही इंजीनियर को बचाने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है जबकि ऐसे मामलों में सीधे अनुशासनात्मक कार्यवाही और पुलिस में प्रकरण दर्ज करवाया जाना नितांत आवश्यक होता है।

  सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने मामले की शिकायत भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली एवं मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग भोपाल सहित सभी वरिष्ठ अधिकारियों को की है और मामले पर संज्ञान लेते हुए तत्काल ऐसे मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं कार्यपालन यंत्री को रीवा जिले से हटाए जाने की मांग की है।
*संलग्न* - कृपया संलग्न मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा जारी वसूली जमा करने हेतु नोटिस की प्रति एवं तत्कालीन कार्यपालन यंत्री आर एस धुर्वे का जांच प्रतिवेदन सहित घटिया स्तरहीन और गुणवत्ताविहीन रपटे की तस्वीर प्राप्त करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Wednesday, November 8, 2023

Breaking: भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह की पैरवी भी भ्रष्टाचारियों को नहीं बचा पाई वसूली और कार्यवाही से // सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर 6 पंचायत जिम्मेदारों पर गिरी गाज // गंगेव की सेदहा पंचायत के तत्कालीन सरपंच सचिव सहित 6 जिम्मेदारों के विरुद्ध बनाई गई 27 लाख से अधिक की वसूली // अब जल्द ही दर्ज होगी एफ आई आर // सिरमौर के भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह ने भ्रष्टाचारियों के पक्ष में जमकर की थी पैरवी // दिव्यराज सिंह ने अपने विधायक के लेटर हेड पर पत्र जारी कर किया था कई बार जांच प्रभावित // मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे ने धारा 89 की सुनवाई के बाद वसूली और सिविल जेल के लिए जारी किया आदेश //

*Breaking: भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह की पैरवी भी भ्रष्टाचारियों को नहीं बचा पाई वसूली और कार्यवाही से // सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर 6 पंचायत जिम्मेदारों पर गिरी गाज // गंगेव की सेदहा पंचायत के तत्कालीन सरपंच सचिव सहित 6 जिम्मेदारों के विरुद्ध बनाई गई 27 लाख से अधिक की वसूली // अब जल्द ही दर्ज होगी एफ आई आर // सिरमौर के भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह ने भ्रष्टाचारियों के पक्ष में जमकर की थी पैरवी // दिव्यराज सिंह ने अपने विधायक के लेटर हेड पर पत्र जारी कर किया था कई बार जांच प्रभावित // मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे ने धारा 89 की सुनवाई के बाद वसूली और सिविल जेल के लिए जारी किया आदेश //*
दिनांक 19 अक्टूबर 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

   भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह द्वारा ग्राम पंचायत सेदहा के तत्कालीन सरपंच पवन कुमार पटेल और प्रभारी सचिव एवं ग्राम रोजगार सहायक दिलीप कुमार गुप्ता के पक्ष में जमकर पैरवी करने के बावजूद भी 27 लाख रुपए से अधिक की भ्रष्टाचार की वसूली बनाई गई है। वर्तमान मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे द्वारा धारा 89 की सुनवाई के बाद यह वसूली बनाई गई है। हाल ही में जिला पंचायत के इतिहास में अब तक की सबसे लंबी चली सुनवाई और दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को जारी किए गए धारा 89 के सुनवाई आदेश में 27 लाख 25 हजार 129 रुपए का वसूली आदेश जारी किया गया है जिसे लेकर अब सिरमौर भाजपा विधायक की भ्रष्टाचारियों को सह देने के चर्चे भी गरम हैं। 

  गौरतलब है कि सेदहा पंचायत जनपद पंचायत गंगेव के अंतर्गत आती है जो की मनगवां विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है परंतु सिरमौर तहसील होने के कारण और तत्कालीन सरपंच और उसके दलालों का संपर्क भारतीय जनता पार्टी के विधायक दिव्यराज सिंह से होने के कारण तत्कालीन विधायक ने भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए खुलकर पैरवी की। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा के विधायक दिव्यराज सिंह ने तत्कालीन सेदहा सरपंच को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए अपने लेटर हेड में दिनांक 19 जनवरी 2021 को कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 रीवा को पत्र लिखकर ग्राम पंचायत सेदहा के भ्रष्टाचार और अनियमितता की जांच के लिए गठित किए गए जांच दल को ही बदलने के लिए लेख कर दिया था। सूत्रों की मानें तो मौखिक और अन्य माध्यमों से तो कई बार वसूली और जांच को प्रभावित किया गया पर हद तो तब हो गई जब विधायक ने भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अपने लेटर हेड तक का दुरुपयोग कर डाला।
  *विधायक दिव्यराज सिंह ने अपने पद और विधायकी का किया नाजायज उपयोग*

  गौरतलब है कि भाजपा के विधायक दिव्यराज सिंह ने अपने विधायकी और पंचायत लेखा समिति के सदस्य पद का नाजायज तरीके से दुरुपयोग किया जिसके चलते तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत स्वप्निल वानखेड़े एवं तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 1 आर एस धुर्वे पर दबाव बनाते हुए तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी आर डी पांडेय को ग्राम पंचायत चौरी से एवं सहायक यंत्री निखिल मिश्रा को ग्राम पंचायत सेदहा की जांच से हटाने के लिए पत्र जारी किया था जबकि उक्त अधिकारियों को जांच टीम से क्यों हटाया जाए इसका कोई भी तथ्यात्मक और वैध कारण उपलब्ध नहीं था और मात्र जांच में लीपापोती करने और जांच को प्रभावित करने एवं अपने मनमुताबिक भ्रष्टाचारी जांच अधिकारी को जांच टीम में बैठाने के लिए भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह के द्वारा ऐसा कृत्य किया गया था। इसके बाद तो बकायदे एसडीओ आर डी पांडेय ने इन्ही सब नेतागिरी से तंग आकर वीआरएस तक ले लिया और रिटायरमेंट के लगभग 02 वर्ष पूर्व ही अपनी नौकरी छोड़ दी।

   *विधायक ने पंचायत राज लेखा समिति के सदस्य होने और अपने विधायकी का किया दुरुपयोग*

   गौरतलब है की दिव्यराज सिंह स्थानीय निकाय एवं पंचायत राज लेखा समिति के सदस्य होने के नाते रीवा के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के कार्यों पर दखल रखते थे जिसके कारण सभी पंचायत विभाग के अधिकारी दबाव के कारण न केवल जांच टीम बदल दिए बल्कि जांच रिपोर्ट आने के बाद भी वर्तमान 2023 के विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने तक जांच और आदेश को दबाकर रखे और विभिन्न प्रकार से वसूली को कम करने के लिए और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए बार-बार जांच पर जांच करवाते गए। लेकिन एक कहावत है कि झूठ को कितना भी छुपाओ वह छुप नहीं सकता और सच्चाई को कितना भी दबाओ वह दब नहीं सकती तो ठीक वैसे ही हुआ और सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की लगातार पैरवी और कड़ी मेहनत का नतीजा सामने आया और आचार संहिता लगते ही मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे ने दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को धारा 89 का अंतिम वसूली आदेश जारी करते हुए तत्कालीन सेदहा सरपंच पवन कुमार पटेल, ग्राम रोजगार सहायक एवं प्रभारी सचिव रहे दिलीप कुमार गुप्ता, तत्कालीन सचिव शशिकांत मिश्रा, तत्कालीन उपयंत्री डोमिनीक कुजूर, तत्कालीन और बर्खास्त उपयंत्री अजय तिवारी एवं तत्कालीन सहायक यंत्री स्व0 अनिल सिंह सहित कुल 6 जिम्मेदारों के ऊपर कुल 27 लाख 25 हजार 129 रुपए की अब तक की वसूली निर्धारित की है जिसे जमा करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है और यदि राशि जमा नहीं की गई तो आगे की कानूनी कार्यवाही और भू राजस्व की भांति बकाया वसूलने एवं सिविल जेल भेजने के लिए निर्देशित किया गया है।

  *बड़ा सवाल: क्या गबन और भ्रष्टाचार में मात्र वसूली कर लेना पर्याप्त है?*

  यदि जानकारों की माने तो किसी भी गबन और भ्रष्टाचार के मामले में वसूली मात्र कर देने से कार्यवाही पूर्ण नहीं होती है। जाहिर है जो शासन की राशि भ्रष्टाचार करते हुए गबन की गई है उसे तो हर हाल में ही वसूलना है क्योंकि वह शासन की राशि होती है अतः वसूली किया जाना कोई दंड नहीं है जबकि यदि दंड की बात करें तो जब तक सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं होती है और कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है तब तक गबन और भ्रष्टाचार के मामलों में कार्यवाही पूर्ण नहीं मानी जाती है। तो फिर अब यहां देखना पड़ेगा की मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे द्वारा सेदहा पंचायत में हुए व्यापक भ्रष्टाचार संबंधी दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को लेकर जारी किए गए वसूली आदेश के बाद अब एफआईआर और अन्य कानूनी कार्यवाही कब की जाती है?

  *जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों और विधायकों का काला चेहरा हुआ उजागर*

  गौरतलब है कि जिस प्रकार सत्ताधारी पार्टी के सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह द्वारा जनता के पक्ष में पैरवी न करते हुए भ्रष्टाचार की जांच करवाने के स्थान पर उल्टा दोषियों और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए और जांच को प्रभावित करने के लिए जांच टीम बदलने बाबत और अपने पद का गलत उपयोग करते हुए कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा पर दबाव बनाने के उद्देश्य से अपने लेटर हेड पर पत्र जारी किया गया था इससे साफ जाहिर है की जनता जिन्हें वोट देती है और चुनकर अपनी रक्षा और विकास के लिए भेजती है वह उल्टे भ्रष्टाचारियों की पैरवी करने लगते हैं।
   अब सेदहा पंचायत में हुए व्यापक भ्रष्टाचार को ही देखें तब वर्ष 2016-17 से लेकर अब तक जिस प्रकार पिछले 6 साल में ग्राम पंचायत के भ्रष्टाचारियों की पैरवी इन जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई है इससे इन कथित जनप्रतिनिधियों का वह काला चेहरा भी उजागर हो रहा है जहां जनता जनप्रतिनिधियों को तो चुनकर शासकीय संपत्ति की रक्षा और विकास के लिए भेजती है लेकिन किस प्रकार अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए यह जनप्रतिनिधि नए-नए कारनामे करते हैं यह भी विचारणीय है। अब शायद जनता को ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनने से पहले सौ बार सोचना चाहिए।

  *संलग्न*  -  कृपया इस न्यूज़ के साथ संलग्न भाजपा के पूर्व विधायक दिव्यराज सिंह द्वारा अपने लेटर हेड में जारी किया गया वह पत्र देखे जिसमें ग्राम पंचायत सेदहा की जांच प्रभावित करने और जांच टीम बदलने के लिए कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 को लेख किया गया था एवं साथ में अभी हाल ही में 11 अक्टूबर 2023 को मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा धारा 89 की सुनवाई के उपरांत जारी किए गए 27 लाख रुपए से अधिक के वसूली आदेश आदि की प्रति एवं साथ में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी का वीडियो बयान आदि देखें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

*National Breaking: 855 करोड़ की नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन परियोजना पर चुनाव आयोग ने लिया संज्ञान // जेपी एसोसिएट्स को टर्मिनेट करने कार्यवाही की प्रक्रिया पर किया जवाब तलब // ईएनसी जल संसाधन शिसिर कुशवाहा की संविदा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने खड़ा किया था सवाल // रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता कुशवाहा को चीफ इंजीनियर के साथ नियम विरुद्ध दिया गया ईएनसी का अतिरिक्त प्रभार // चुनाव के पूर्व अपने चहेतों को बिना वरीयता और योग्यता निर्धारण किए बड़े पदों की उड़ाई गई धज्जियां // सरकार के कारनामों पर खड़ा हुआ बड़ा सवाल // गरीब किसानों की महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोजना बाणसागर और नर्मदा बेसिन में लगा ग्रहण //*

*National Breaking: 855 करोड़ की नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन परियोजना पर चुनाव आयोग ने लिया संज्ञान // जेपी एसोसिएट्स को टर्मिनेट करने कार्यवाही की प्रक्रिया पर किया जवाब तलब // ईएनसी जल संसाधन शिसिर कुशवाहा की संविदा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने खड़ा किया था सवाल // रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता कुशवाहा को चीफ इंजीनियर के साथ नियम विरुद्ध दिया गया ईएनसी का अतिरिक्त प्रभार // चुनाव के पूर्व अपने चहेतों को बिना वरीयता और योग्यता निर्धारण किए बड़े पदों की उड़ाई गई धज्जियां // सरकार के कारनामों पर खड़ा हुआ बड़ा सवाल // गरीब किसानों की महत्वाकांक्षी सिंचाई परियोजना बाणसागर और नर्मदा बेसिन में लगा ग्रहण //*
दिनांक 09 नवंबर 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  बाणसागर डैम और नहर मंडल से संबंधित नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन परियोजना से संबंधित सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर भारत निर्वाचन आयोग ने तत्काल संज्ञान ले लिया है। आपको बता दें कि मामला रीवा और सीधी संभाग से जुड़े हुए बहुचर्चित बाणसागर बांध और बाणसागर नहर मंडल से जुड़ी हुई सिंचाई परियोजनाओं से संबंधित है जिसे एक लंबे अरसे से उठाया जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीने पूर्व गर्मी के दिनों में रीवा और मऊगंज क्षेत्र के जल संसाधन विभाग के बांधों ननहरों और नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन परियोजना फेज 1 और 2 को लेकर बड़े सवाल खड़े किए गए थे। शिवानंद द्विवेदी ने पहले भी नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन परियोजना में हो रहे व्यापक भ्रष्टाचार, कार्य में हीलाहवाली और लेटलतीफी को लेकर सवाल खड़े किए थे और प्रधानमंत्री कार्यालय, जल संसाधन विभाग मध्य प्रदेश शासन से लेकर चीफ सेक्रेटरी एवं मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश शासन सहित दर्जनों जिम्मेदारों को ईमेल के माध्यम से कई बार पत्र लिखा था और शिकायत दर्ज कराई थी। मामले पर कार्यवाही भी हुई और जिस नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन परियोजना को वर्ष 2019 में पूरा कर लिया जाना था उसे 2023 तक भी पूरा न किए जाने के बाद सितंबर 2023 तक का एक्सटेंशन भी दिया गया। और इस प्रकार 3 वर्ष के कार्य को साढ़े छः वर्ष बाद भी पूरा नहीं किया जा सका है। साथ में जिस संविदाकार जेपी एसोसिएट्स कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया गया उसी से नियम विरुद्ध तरीके नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन का कार्य ब्लैक लिस्ट होने के बाद भी लिया गया। जिस मामले को लेकर कड़ी आपत्तियां व्यक्त की गई थी और एक ब्लैक लिस्टेड कंपनी से कार्य क्यों करवाया जा रहा है इस पर भी सवाल खड़े किए गए थे। गौरतलब है कि सितंबर 2023 की मियाद भी अब पूरी हो चुकी है लेकिन नईगढ़ी माइक्रो इरिगेशन फेज 1 एवं 2 का कार्य 50 प्रतिशत तक भी पूरा नहीं हो सका है जिसे लेकर हालांकि विभाग के अधिकारी 70 कार्य पूरा होना बता रहे हैं और जिसका कि भुगतान भी कर दिया गया है लेकिन यदि सही तरीके से जांच हो जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी और कार्य से अधिक भुगतान पाया जाएगा। कार्य से अधिक भुगतान किए जाने के बाद अब जल संसाधन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी संविदाकार जेपी एसोसिएट्स को बचाने में लगे हुए हैं और उसे अब टर्मिनेट करने के स्थान पर उसी ब्लैकलिस्टेड से काम ले रहे हैं। अब जिसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने एक बार पुनः आचार संहिता लगने के बाद भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली को शिकायत दर्ज कराई है जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त ने तत्काल संज्ञान लेते हुए कार्यवाही करते हुए जवाब तलब किया है।
  *ईएनसी जल संसाधन शिशिर कुशवाहा की नियुक्ति को लेकर खड़े किए गए सवाल*
  
   शिवानंद द्विवेदी ने अपनी शिकायत में जल संसाधन विभाग मध्य प्रदेश शासन के इंजीनियर इन चीफ शिसिर कुशवाहा की नियुक्ति को लेकर प्रश्न खड़े किए हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि शिसिर कुशवाहा एक रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता है जिन्हें बिना वरीयता और वरिष्ठता के आधार पर सरकार द्वारा नियम विरुद्ध संविदा पद्धति से चीफ इंजीनियर का प्रभार दिया गया और उन्हें बाद में इएनसी पद से श्री डाबर को हटाए जाने के बाद ईएनसी का भी प्रभार दे दिया गया है जो की पूरी तरह से नियम के विरुद्ध है। 
  *आरटीआई एक्टिविस्ट ने मनमानी ढंग से संविदा के नाम पर वरिष्ठ पदों पर नियुक्तियों को लेकर खड़े किए सवाल*

   आरटीआई एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया है कि वर्तमान संविदा ईएनसी शिशिर कुशवाहा से भी वरिष्ठ और योग्य सेवानिवृत्ति अधीक्षण अभियंता एवं चीफ इंजीनियर मौजूद थे तो फिर स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करते हुए विज्ञप्ति निकालकर योग्य एवं वरिष्ठ ईएनसी को नियुक्त क्यों नहीं किया गया। हालांकि यदि जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने जाते-जबाते अपने चहेतों को मलाईदार और बड़े पदों में बैठाकर न केवल किसानों की नहर परियोजनाओं पर पलीता लगाया है बल्कि भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देने का कार्य किया है। सामाजिक कार्यकर्ता ने ईएनसी शिशिर कुशवाहा सहित ऐसे कई संविदा नियुक्तियों को लेकर प्रश्न खड़े किए हैं और कहा है कि जब तक उच्च पदों पर पूर्णकालिक जिम्मेदार सक्षम और परमानेंट अधिकारियों को नहीं बैठाया जाता तब तक गरीब किसानों के नाम पर कागजों पर बनाई जाने वाली नहर परियोजनाओं का मिल बाटकर बंदरबांट और बंटाधार होता रहेगा और इसकी समस्त जवाबदेही स्वयं उसी शासन सत्ता की है जिससे आमजन को अब सचेत भी होना चाहिए और मिलकर आवाज उठाना चाहिए।
*संलग्न* - कृपया संलग्न मुख्य चुनाव आयुक्त भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों जल संसाधन विभाग, सेंट्रल वाटर कमीशन, चीफ सेक्रेटरी मध्य प्रदेश शासन, प्रधानमंत्री कार्यालय नई दिल्ली एवं कार्मिक एवं पेंशन विभाग सहित कई वरिष्ठ कार्यालय को भेजे गए ईमेल और उनके प्रतिउत्तर की प्रति प्राप्त करें।
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Breaking: सत्ताधारी पार्टी के विधायक ने भ्रष्टाचारियों का किया बचाव // कहानी एकबार फिर सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह के कारनामे की // चौरी पंचायत के तत्कालीन सरपंच सचिव के विरुद्ध बैठाई गयी जांच में करवाई गयी लीपापोती // चौरी की भ्रष्टाचार जांच को किया प्रभावित, बावजूद इसके बनी 43 लाख से अधिक की वसूली // सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे ने रोकी आदेश की फाइल // सुनवाई पूरी होने के कई माह बाद भी आदेश रोंके जाने से संदेह की बनी स्थिति // राजनीतिक दबाब के चलते वसूली और FIR की कार्यवाही पर लगाईं गयी रोंक //

*Breaking:  सत्ताधारी पार्टी के विधायक ने भ्रष्टाचारियों का किया बचाव // कहानी एकबार फिर सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह के कारनामे की // चौरी पंचायत के तत्कालीन सरपंच सचिव के विरुद्ध बैठाई गयी जांच में करवाई गयी लीपापोती // चौरी की भ्रष्टाचार जांच को किया प्रभावित, बावजूद इसके बनी 43 लाख से अधिक की वसूली // सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे ने रोकी आदेश की फाइल // सुनवाई पूरी होने के कई माह बाद भी आदेश रोंके जाने से संदेह की बनी स्थिति // राजनीतिक दबाब के चलते वसूली और FIR की कार्यवाही पर लगाईं गयी रोंक //*


दिनांक: 09/11/2023 रीवा मप्र.

 

   सत्ताधारी पार्टी के विधायकों और नेताओं का घमंड इस कदर हावी है की जिस जनता ने उन्हें चुनकर विकास और सेवा के लिए भेजा है उसी जनता को बर्बाद करने में तुले हुए हैं. ताजा उदाहरण गंगेव जनपद और सिरमौर विधानसभा क्षेत्र की चौरी पंचायत का है जहाँ निवर्तमान भाजपा विधायक और प्रत्यासी दिव्यराज सिंह ने भ्रष्टाचार में डूबे सरपंच सचिव को बचाने का पुरजोर प्रयास किया लेकिन सब हथकंडों के बाद भी सच्चाई को दबा नहीं पाए और सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत और पैरवी के बाद 43 लाख रूपये से अधिक की वसूली की नोटिस जारी की गयी है. गौरतलब है की अभी भी कई बिन्दुओं की जांचे बांकी है जहाँ और भी लाखों की रिकवरी बनाई जा सकती है.

 


  *चौरी में अब तक कुल 17 बिन्दुओं पर 43 लाख से अधिक की होगी वसूली*

 

  कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 रीवा के पत्र क्रमांक 405/शिका./ग्रा.यां.से./2023 रीवा दिनांक 14/08/2023 के अनुसार कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्दवान द्वारा 17 बिन्दुओं की जाँच उपरांत अपना जो अंतिम प्रतिवेदन पंचायत राज अधिनियम की धारा 89 की सुनवाई में सीईओ जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे के समक्ष प्रस्तुत किया गया है उसमें कुल 43 लाख 5 हजार 6 रुपये की अंतिम वसूली प्रस्तावित की गयी है. लेकिन जहाँ 14 अगस्त को अंतिम वसूली प्रतिवेदन भेजा जा चुका है है वहीँ लगभग 3 माह का समय पूरा होने वाला है और सीईओ जिला पंचायत द्वारा धारा 89 का आदेश जारी न किया जाना भ्रष्टाचार के मामलों पर अधिकारियों की कार्यशैली पर प्रश्न भी खड़ा करता है.  

 

*कुल 8 जिमेदारों से होगी वसूली की कार्यवाही, दर्ज होगी एफआईआर*

 

  धारा 89 की सुनवाई के दौरान ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 रीवा के कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्द्वान द्वारा दिए गए अपने अंतिम जाँच प्रतिवेदन में कुल 08 जिम्मेदारों के विरुद्ध 43 लाख से अधिक वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गयी है. जिन जिम्मेदारों पर गाज गिरेगी उनमें से तत्कालीन चौरी सरपंच सविता जैसवाल से 17 लाख 29 हजार 859 रूपये, तत्कालीन सचिव बुद्धसेन कोल से से 5 लाख 60 हजार 852 रूपये, ग्राम रोजगार सहायक एवं तत्कालीन प्रभारी सचिव श्रीमती आरती त्रिपाठी से 8 लाख 45 हजार 550 रूपये, तत्कालीन सचिव सुनील गुप्ता से 3 लाख 23 हजार 457 रूपये, तत्कालीन सहायक यंत्री अनिल सिंह से 2 लाख 73 हजार 457 रूपये, तत्कालीन और बर्खास्त उपयंत्री अजय तिवारी से 2 लाख 73 हजार 457 रूपये, तत्कालीन सहायक लेखाधिकारी बसंत पटेल से 1 लाख 49 हजार 207 रूपये एवं तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव प्रमोद कुमार ओझा 1 लाख 49 हजार 207 रुपये की अंतिम वसूली प्रस्तावित की गयी है. इस प्रकार चौरी पंचायत को मिलजुलकर ख़त्म करने और बंटाढार करने और सुनवाई में दोषी पाए गए 08 जिम्मेदारों के विरुद्ध 43 लाख रूपये से अधिक की वसूली और कार्यवाही प्रस्तावित की गयी है.


 *ये कैसे जनसेवक – विधायक दिव्यराज सिंह का आखिर भ्रष्टाचार दबाने में क्यों है इतनी दिलचस्पी?*

 

  अब बड़ा सवाल यह है की आखिर सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह की इतनी अधिक दिलचस्पी ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार की जांच रुकवाने और उसे बढ़ावा देने में क्यों है? यह सवाल आज 2023 के विधानसभा चुनाव के पूर्व न केवल सिरमौर विधानसभा क्षेत्र की जनता पूँछ रही है बल्कि पूरे मप्र का मतदाता जानना चाहता है की आखिर सत्ताधारी पार्टी के विधायक और नेता क्यों जनता की गाढ़ी कमाई और उनके टैक्स के पैसे से ग्रामीण क्षेत्र में विकास के लिए आने वाली राशि पर भ्रष्टाचार करवा रहे हैं और जब कोई आम नागरिक जांच और कार्यवाही की माग करता है तब उसे भी बाकायदा अपने लैटर हेड पर पत्र जारी करते हुए दबा दिया जाता है.

 

  *इन्ही विधायक ने सीईओ स्वप्निल वानखेड़े और ईई आर एस धुर्वे को पत्र लिखकर जाँच टीम बदलने बनाया दबाब*

 

   गौरतलब है कि गंगेव जनपद और मनगवां विधानसभा की सेदहा पंचायत और गंगेव जनपद और सिरमौर विधानसभा की चौरी पंचायत दोनों की भ्रष्टाचार की जांचों को बदलने और उन्हें प्रभावित करने के उद्येश्य से निवर्तमान भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह द्वारा तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा आर एस धुर्वे को पत्र लिखते हुए दिनांक 19/01/2021 को पत्र क्रमांक 16/कार्या.वि./सिरमौर रीवा द्वारा विधायक ने भरपूर दबाब बनाया और अपने पत्र में लिखा की जो जाँच अधिकारी सहायक यंत्री निखिल मिश्रा और आरडी पाण्डेय को नियुक्त किया गया है वह शिकायतकर्ताओं के नजदीकी सम्बन्धी हैं. हालाँकि विधायक दिव्यराज के पत्र के बाद सीईओ स्वप्निल वानखेड़े और कार्यपालन यंत्री आरएस धुर्वे ने जाँच टीम भी बदल दिया लेकिन आज तक इस बात के कोई दूर-दूर तक भी प्रमाण नहीं मिले की पूर्व जाँच अधिकारियों निखिल मिश्रा और आरडी पाण्डेय के शिकायतकर्ताओं के क्या सम्बन्ध रहे हैं? अब बड़ा सवाल है की जब पुनः ऐसे विधायक चुनाव मैदान में हैं तो न केवल चौरी और सेदहा पंचायत की जनता को बल्कि पूरे देश की जनता को यह पूँछना चाहिए की आखिर जिन पंचायतों के जाँच अधिकारियों को बदलकर विधायक द्वारा अपने पॉवर और सत्ता का गलत दुरूपयोग किया गया आखिर बार-बार हुई जाँच के बाद भी कैसे 43 लाख रूपये से अधिक की भ्रष्टाचार की वसूली बनाई गयी और आखिर इन 08 दोषियों से अब विधायक के क्या सम्बन्ध थे जिन्हें विधायक ने बचाने का प्रयास किया था? यह भी बताना आवश्यक है की यह मात्र उन कुछ बिन्दुओं का जाँच प्रतिवेदन है जिन्हें अभी तक जाँच में सम्मिलित किया गया है, अब यदि देखा जाय तो अभी भी दर्जन भर अन्य बिन्दुओं की जांच होना तो शेष है जहाँ यह वसूली बढ़कर करोड़ों में भी हो सकती है. लेकिन अभी भी संभागायुक्त रीवा, जिला कलेक्टर रीवा और जिला पंचायत सीईओ रीवा में ऐसी कई जांचें धूल फांक रही हैं जहाँ शायद ऐसे ही नेताओं और अधिकारियों की सांठगांठ से जांचों को दबा दिया गया है.

 

  *देश में लोकतंत्र नाम मात्र का, जनता वोट देकर बन जाती है असहाय*

 

   पंचायती भ्रष्टाचार के मामलों को लगातार उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ता शिवानंद द्विवेदी ने कहा है की देश में लोकतंत्र नाम मात्र का है जहाँ जनता वोट डालने के बाद असहाय होकर दर-दर भटक रही है. जिन जन-प्रतिनिधियों और विधायकों को जनता चुनकर उनकी रक्षा करने के लिए, विकास करने और भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने के लिए भेजती है वही विधायक और सांसद आज खुलेआम मंचों से भ्रष्टाचारियों की पैरवी करते देखे जाते हैं. वह वाकया भी तो आपको याद ही होगा जब रीवा के सांसद जनार्दन मिश्रा ने कहा था की सरपंच पद के लिए प्रत्यासी 15 से 20 लाख खर्च करते हैं इसलिए जनार्दन मिश्रा की कथित अदालत सरपंचों को 15 लाख तक के भ्रष्टाचार करने की छूट दे रखी है. अब यदि जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि बेशर्म होकर खुले तौर पर ऐसी बोली लगायेंगे तो फिर देश का बंटाढार होना तय है.

 

 *संलग्न* – कृपया इस सन्देश के साथ संलग्न आवश्यक दस्तावेज जाँच रिपोर्ट, सुनवाई प्रक्रिया से जुड़े दस्तावेज और विडियो बाइट फोटो आदि प्राप्त करें.

 

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Sunday, August 27, 2023

Breaking: गढ़ ठेकेदार की अवैध पैकारी एक बार फिर आई सामने, पुलिस की नाक के नीचे से पैकारी करते पकड़े गए शराब तस्कर// कैथा ग्राम में ग्रामीणजनों ने बिना नंबर प्लेट की बाइक के साथ पकड़ा तीन पेटी शराब//

*Breaking: गढ़ ठेकेदार की अवैध पैकारी एक बार फिर आई सामने, पुलिस की नाक के नीचे से पैकारी करते पकड़े गए शराब तस्कर// कैथा ग्राम में ग्रामीणजनों ने बिना नंबर प्लेट की बाइक के साथ पकड़ा तीन पेटी शराब//*


दिनांक 26 अगस्त 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  रीवा जिले में शराब ठेकेदारों के द्वारा गांव-गांव घर-घर अवैध पैकारी का सिलसिला जारी है। आए दिन शराब ठेकेदार अपने ठेकेदारी की आड़ में बिना नंबर प्लेट की अवैध गाड़ियों में गांव-गांव पैकारी करवा रहे हैं और यह सब पुलिस प्रशासन की नाक के ठीक नीचे हो रहा है। ताजा मामला रीवा जिले के थाना गढ़ क्षेत्र अंतर्गत ग्राम कैथा का है जहां हनुमान मंदिर कैथा के पास बिना नंबर प्लेट की हीरो एचएफ डीलक्स काली कलर की बाइक में दो युवक तीन पेटी शराब जिसमें से दो पेटी देसी मदिरा एवं एक पेटी बियर की पैकारी करते हुए गांव के ही स्थानीय निवासियों के द्वारा पकड़े गए जिसके बाद गढ़ पुलिस प्रशासन के सब इंस्पेक्टर शोभनाथ वर्मा एवं सहायक उप निरीक्षक सुखेंद्र सिंह को जानकारी देने के बाद मौके से गिरफ्तार कर थाना गढ़ ले जाया गया। 


  गौरतलब है की अवैध पैकारी करने वाले युवक विजय जायसवाल और आरिफ खान निवासी गढ़ के द्वारा बताया गया कि वह यह काम गांव-गांव करते हैं और ठेकेदार ने उन्हें ऐसा करने के लिए रखा हुआ है। ग्रामीणों द्वारा बनाए गए वीडियो में स्पष्ट तौर पर इन पैकारी करने वाले दोनों युवकों के द्वारा बताया जा रहा है कि गांव से जैसे ही डिमांड आती है वह सप्लाई कर देते हैं। अवैध पैकारी करने वाले इन ठेकेदारों की हिम्मत तो देखिए कि यह अवैध काम को ही वैध बता रहे थे और कह रहे थे कि पुलिस को सब जानकारी है। कैथा गांव के मिथिलेश चतुर्वेदी और शैलेंद्र पटेल सहित उपस्थिति लगभग दर्जन भर ग्रामीणजनों ने पैकारी करने वाले युवकों को गांव में रोका गया और पूछा कि वह बॉक्स में क्या लिए हैं जिसको खोलने के बाद पता चला कि उसमें दो पेटी देशी मदिरा थी जबकि तीसरी में 12 बोतल बियर थी जिसकी जानकारी तत्काल गढ़ पुलिस प्रशासन को देने के बाद मौके पर पुलिस ने आकर गवाहों के हस्ताक्षर बयान दर्ज किया और माल की जब्ती बनाकर थाना गढ़ की ओर आगे की कार्यवाही के लिए ले गए। मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी भी उपस्थित रहे और पुलिस को पूरे मामले की जानकारी दी गई।

गौरतलब है कि न केवल कैथा ग्राम बल्कि आसपास के हिनौती बड़ोखर मिसिरा इटहा अकलसी डाढ़ सेदहा बड़ियोर लोटनी भदोहा बांस भटवा सहित कई दर्जन ग्रामों में इस प्रकार देसी मदिरा महुआ शराब सहित सरकारी ठेकेदारों के द्वारा नियम विरुद्ध घर-घर अवैध पैकारी करवाई जा रही है।


संलग्न - कैथा में पकड़े गए अवैध पैकारी करते हुए युवकों की फोटो/वीडियो के साथ उपलब्ध शराब की बोतले।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Monday, August 7, 2023

Breaking: निजी आराजी में बनाया 14 लाख की 700 मीटर सड़क और 14.49 लाख का रपटा // प्रस्तावित वसूली के बाद अब सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे गढ़वा रहे कूट रचित अभिलेख // भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का गजब मामला आया सामने// सीईओ जिला पंचायत की कार्यप्रणाली पर लगातार उठ रहे सवाल // वसूली और एफ आई आर दर्ज करवाने के स्थान पर घोटालेबाजों को बचाने का किया जा रहा प्रयास // गंगेव जनपद की चौरी ग्राम पंचायत के बाद सेदहा ग्राम पंचायत का है यह दूसरा मामला // स्वयं सीईओ जिला पंचायत मौके पर आकर किए थे जांच फिर भी सांठ गांठ कर चल रहा लीपापोती का खेल//

Breaking: निजी आराजी में बनाया 14 लाख की 700 मीटर सड़क और 14.49 लाख का रपटा // प्रस्तावित वसूली के बाद अब सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे गढ़वा रहे कूट रचित अभिलेख // भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का गजब मामला आया सामने// सीईओ जिला पंचायत की कार्यप्रणाली पर लगातार उठ रहे सवाल // वसूली और एफ आई आर दर्ज करवाने के स्थान पर घोटालेबाजों को बचाने का किया जा रहा प्रयास // गंगेव जनपद की चौरी ग्राम पंचायत के बाद सेदहा ग्राम पंचायत का है यह दूसरा मामला // स्वयं सीईओ जिला पंचायत मौके पर आकर किए थे जांच फिर भी सांठ गांठ कर चल रहा लीपापोती का खेल//

दिनांक 7 अगस्त 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

   रीवा जिला पंचायत भ्रष्टाचारियों का पनाहगाह बन कर उभर रहा है। यहां एक से बढ़कर एक कारनामे सामने आ रहे हैं जहां अब वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित होने के बाद भी दोषियों को सरेआम बचाने का खेल खेला जा रहा है और कूट रचित अभिलेख भी गढ़े जा रहे हैं। इस पूरे मामले में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे की कार्यप्रणाली लगातार संदेह के दायरे में बनी हुई है। कई पंचायतों में हुए व्यापक भ्रष्टाचार और उसकी जांच कर वसूली प्रस्तावित होने के बाद अब सीईओ जिला पंचायत भ्रष्टाचारियों को बचाने की जुगत में लगे हैं। 
*चौरी के बाद अब सेदहा पंचायत में भी दोषियों को बचाने गढ़ी जा रही कहानियां*

  पिछले दिनों देखा गया कि किस प्रकार गंगेव जनपद की चौरी ग्राम पंचायत में लगभग डेढ़ करोड़ के भ्रष्टाचार की शिकायत पर जांच अधिकारियों ने 60 से 70 लाख रुपए की वसूली प्रस्तावित की थी जबकि देखा जाए तो अभी भी दर्जनों कार्यों की जांच चल रही थी और इस प्रकार लगभग एक करोड़ से ऊपर वसूली बन सकती थी लेकिन जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे द्वारा मात्र वसूली कम और विलोपित करने और दोषियों को बचाने के उद्देश्य से जांच पर जांच करवाई गई और अब दोषियों को बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य के ही वसूली से भी मुक्त किया जा रहा है। 
*सेदहा ग्राम पंचायत की 700 मीटर सुदूर सड़क निजी हित और निजी आराजी में*

  वर्ष 2014-15 के दरमियान सेदहा ग्राम पंचायत में ग्राम जीरौही टोला मैं दुर्जन कोल से अरुण सिंह के खेत की तरफ बनाई गई सुदूर सड़क को कागजों पर तो शासकीय आराजी नंबर 39 एवं 43 में बनाया बताया गया लेकिन जब मौके पर जांच की गई तो पता चला कि यह सड़क आराजी नंबर 43 के मात्र 60 मीटर हिस्से पर ही बनी है जबकि शेष 640 मीटर अरुण प्रताप सिंह की प्राइवेट आराजी नंबर 50 एल, 51 और 52 में बनाई गई है। इस प्रकार जनता के टैक्स के पैसे और शासकीय धन का दुरुपयोग करते हुए निजी हितलाभ के लिए सड़क निजी आराजी में बना दी गई। मामले की जांच भी हुई लेकिन सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवड़े अब दोषियों को बचाने में लगे हुए हैं। 
 *निजी बांध की मेढ़ पर बना दिया 14.49 लाख का रपटा, कराधान घोटाले से भी जुड़े तार*

  दूसरा बड़ा मामला उसी 700 मीटर की सड़क पर बनाए गए एक रपटे को लेकर भी है जिसकी लागत 14.49 लाख रुपए बताई गई है। कराधान मद से बना हुआ दर्शाया गया यह रपटा भी पूरी तरह से गुणवत्ताविहीन तो है ही साथ में भूमिस्वामी अरुण प्रताप सिंह की निजी आराजी नंबर 52 मौजा सेदहा हल्का सेदहा में बनाया गया है। मामले की शिकायत सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा की गई थी जिसकी जांच हुई और तीन सदस्यीय जांच दल जिसमें कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा आर एस धुर्वे और दो एसडीओ एस आर प्रजापति और जीतेंद्र अहिरवार की टीम ने संयुक्त रूप से जांच की थी और जांच में स्पष्ट तौर पर प्रतिवेदन देते हुए बताया था कि निजी हितलाभ के लिए रपटे का निर्माण किया गया है और रपटे की गुणवत्ता भी अमानक स्तर की है। इसलिए पूरी राशि वसूली योग्य है और अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गई थी। लेकिन जब सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे आए तो दोषियों को बचाने के उद्देश्य से नई-नई जांच करवा दी और फर्जी कूट रचित दस्तावेज तैयार कर कहानियां गढ़ी जा रही हैं। 
  *निर्माण उपरांत निजी जमीन को शासकीय किए जाने का खेल*

  सीईओ जिला पंचायत रीवा द्वारा जांच पर जांच के नाम पर तहसीलदार और एसडीएम सिरमोर को पत्र लिखकर रपटा निर्माण वाले स्थान के नक्शा तरमीन किए जाने और शासकीय अत्यजन किए जाने के लिए लेख किया गया जिसके बाद तहसीलदार ने मौके पर आकर गुणा भाग करते हुए रपटा निर्माण वाले स्थल की जमीन का अत्यजन करते हुए शासकीय खसरे के रूप में दर्ज कर दिया और बता दिया कि पहले जो रपटा निजी भूमि पर बनाया हुआ था अब वह शासकीय हो गया है। 
  *भूमि बंधक दर्ज बैंक से कर्ज फिर भी खसरे में कैसे हुआ बदलाव*

  गौरतलब है की भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 173 के तहत उसी निजी भूमि का अत्यजन अथवा शासकीय घोषित किया जा सकता है जो किसी भी प्रकार से बंधक न हो और कोई शासकीय धन राशि बकाया न हो लेकिन जैसा कि भूमिस्वानी अरुण प्रताप सिंह की आराजी नंबर 52 मौजा सेदहा वाले प्रकरण में देखा जा सकता है कि इस आराजी पर वर्ष 2019 से लेकर 2021 के बीच में तीन बार कर्ज लिया गया और खसरे में स्पष्ट तौर पर भूमि बंधक दर्ज है। 
   अब बड़ा सवाल यह है कि बंधक दर्ज भूमि और शासकीय धन राशि बकाया होने पर किस आधार पर कूट रचित दस्तावेज तैयार कर किस नियम के आधार पर अरुण प्रताप सिंह की उक्त भूमि को अत्यजन करते हुए शासकीय दर्ज किया गया?
  *भूमि को शासकीय तो दर्ज किया लेकिन रपटा की गुणवत्ता का क्या?*

  मामला यहीं पर आकर नहीं रुकता बल्कि सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवड़े द्वारा रात 9 और 10 बजे सुनवाई के दौरान कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा टीपी गुर्दवान को दबाव देकर बोला जाता है कि रपटा में सुधार करवा दो और वसूली विलोपित कर दो। अब सवाल यह है की भूमि को अवैधानिक तरीके से शासकीय तो दर्ज करवा दिया लेकिन जिस रपटे नीव और नीचे की जमीन ही खिसक गई है और जो पूरी तरह से गुणवत्ताविहीन बनाया गया है भला उसमें सुधार कैसे संभव है? प्राप्त जानकारी अनुसार कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्दवान ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि जिस कार्य का बेस और कोई आधार ही नहीं है उसमें सुधार की गुंजाइश नहीं रहती इसलिए रपटे का सुधार नहीं किया जा सकता अतः राशि वसूली योग्य है। 
  *सीईओ जिला पंचायत संजय सौरभ सोनवणे की स्पष्ट संलिप्तता*

  गंगेव जनपद की चौरी और सेदहा ग्राम पंचायत के इन किस्सों से भलीभांति समझा जा सकता है कि कैसे सर से पांव तक डूबे हुए भ्रष्टाचारियों को बचाने और उन्हें संरक्षण देने के लिए सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे अपने पद और शक्ति का गलत उपयोग कर रहे हैं। आखिर चाहे चौरी ग्राम पंचायत में कुसियारी घाट स्टॉप डैम स्थल परिवर्तन का मामला रहा हो या सेदहा ग्राम पंचायत के जिरोही प्लाट में अरुण प्रताप सिंह के निजी भूमि पर रपटा निर्माण का, दोनों ही मामलों में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि जहां एक में कोई स्टॉप डैम ही नही बना तो दूसरे में नियम विरुद्ध गुणवत्ताविहीन घटिया निर्माण कार्य किया गया और निजी हितलाभ के उद्देश्य से जनता के टैक्स के पैसे और शासकीय धनराशि का दुरुपयोग किया गया और बाद में सीईओ जिला पंचायत की मदद से कूटरचित और फर्जी दस्तावेज बनाया जाकर वर्तमान दिनांक में अभिलेखों में सुधार का कार्य किया जा रहा है जिससे स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि पूरे मामले में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवड़े की भूमिका है और यह पूरी तरह से पंचायतों में भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं।।
  *सैकड़ों पंचायतों की लंबित पड़ी शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं पर जिनमें पहले से वसूली बनी उनमें लीपापोती का खेल जारी*

  गौरतलब है की अभी भी जिले भर में सैकड़ो ऐसी ग्राम पंचायतें हैं जहां व्यापक स्तर का भ्रष्टाचार हुआ और शिकायतकर्ताओं ने वर्षों पहले से शिकायत की हुई है लेकिन उन पर जांच और कार्यवाही के स्थान पर मात्र उन पंचायतों की जांच और शिकायतों में लीपापोती की जा रही है जिन पंचायत में बड़ी मशक्कत के बाद जांच हुई और जांच के बाद अब वसूली की कार्यवाही प्रस्तावित हुई है जिस पर अब सीईओ जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवड़े के द्वारा लीपापोती करते हुए भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
संलग्न - कृपया मामले से संबंधित संलग्न दस्तावेज अभिलेख तहसीलदार की जांच प्रतिवेदन सीईओ जिला पंचायत के पत्र आदि प्राप्त करें।
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश।*