दिनांक 09 जनवरी 2020, स्थान - रीवा मप्र
देश प्रदेश में चल रही पशु क्रूरता रुकने का नाम नही ले रही है. मांस भक्षक एवं दुग्ध उत्पाद खाने वाले लोगों के चलते जहां पशुओं की तादाद बढ़ती जा रही है वहीं अब उन्हें संभालने का संकट उत्पन्न हो चुका है. आखिर सवाल यह है की मानव को दुग्ध उत्पाद भी चाहिए और मीट भी चाहिए फिर कैसे पशुओं की संख्या नियंत्रित हो. लिहाजा दोनो की चाह में बढ़ती पशुओं की संख्या के चलते अब उन्हें संभालने का देशव्यापी संकट उत्पन्न हो चुका है. जहां सरकारी व्यवस्थाएं थीं वहां भी रखरखाव और भ्रष्टाचार के चलते अव्यवस्था फैल चुकी है. जहां तक सवाल वैकल्पिक व्यवस्था की हैं वहां भी समाज हाँथ खड़ा कर चुका है. ऐसे में जाहिर है आज गोवंशों की दशा और दिशा क्या होगी बड़े ही चिंता का विषय है.
बसहट गोहत्याकांड का जिम्मेदार शासन प्रशासन
बता दें की त्योंथर ब्लॉक अन्तर्गत बसहट ग्राम पंचायत में अभी हाल ही में हुए भीषण गोहत्याकांड में रेस्क्यू किये गए 8 गोवंशों को भी प्रशासन और पशु चिकित्सा विभाग बचा नही पाया है. सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी ने बताया की जबकि देखा जाए तो इसमे पूरी गलती प्रशासनिक अमले की ही है. सवाल यह है की जब कड़ी मसक्कत के बाद 8 गोवंशों को जीवित बचाया गया तो उन्हें सही पोषण एवं इलाज क्यों नही दिया गया. सच्चाई यह है की 5 जनवरी को रेस्क्यू किये गए गोवंशों के प्रति न तो पुलिश की कोई संवेदना थी न ही पशु चिकित्सा विभाग की. जहां तक प्रश्न सीईओ जनपद का है तो वह व्यक्ति आज तक लापता हैं. एसडीएम भी बीमारी का बहाना बनाकर मात्र नायब तहसीलदार अंकित मौर्य को ही मौके पर भेज दिया था.
रेस्क्यू 8 गोवंश भी मरे
रेस्क्यू किये गए 8 गोवंशों को 5 जनवरी रात को बाहर ठंड में तड़पते हुए छोड़ दिया गया था जिसके चलते वह कमजोर पड़ गए और तीन रातोंरात मर गए. अगले दिन 6 जनवरी को 5 गोवंशों को झोटिया गोशाला पहुचाने का प्रयास किया गया लेकिन उनमे से 2 ट्रेक्टर का दच्चा खाकर मर गए. शेष बचे 3 गोवंश 8 जनवरी शुबह तक इलाज और पोषण के अभाव में मर गए. इस प्रकार तीन बसहट में ही मर गए थे. शेष 5 अगले दिन मर गए.
पशु चिकित्सा विभाग ने नही किया इलाज
झोटिया गोशाला प्रबंधक अरिमर्दन सिंह द्वारा जानकारी दी गई की तीन गोवंशों को 6 जनवरी को झोटिया गोशाला पहुचाने के बाद पशु चिकित्सा विभाग और प्रशासन अपना पल्ला झाड़ लिया. डॉक्टर न तो इलाज करने आये और न ही कोई पोषण की जानकारी दी. गोशाला प्रबंधक ने बताया की झोटिया प्राइवेट गोशाला में कोई भी वेटरनरी डॉक्टर उपलब्ध नही है जिससे वह इलाज नही करवा पाएं. बताया गया की 7 जनवरी को पशु चिकित्सा विभाग के कुछ कम्पाउण्डर आये थे जिनके पास न तो सामग्री थी और न ही दवा. मात्र औपचारिकता पूरी करने आये थे. इस प्रकार गोशाला प्रबंधन ने स्वयं ही 2000 रुपये से अधिक कीमत की दवा खरीद कर इलाज करवाया. पशु डॉक्टर के पास कोई दवा तक नही थी.
बोतल चढ़ाते ही एक और गाय मृत
बताया गया की गायों में कमजोरी और ठंड की वजह से शरीर का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस हो चुका था जिसके कारण नौशिखिये डॉक्टरों ने जैसे ही बोतल चढ़ाया वैसे ही एक गाय तुरंत मर गई. बताया गया की पहले उनके पोषण के लिए कुछ करना था एवं अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाना था जिससे यह मरने वाली स्थिति निर्मित नही होती. इसके बाद 2 और भी बची गायें इलाज और पोषण के अभाव में मर गईं. वास्तव में रेस्क्यू किये गोवंशों को रीवा के पशु चिकित्सालय में भर्ती किया जाना था और ऐसा नहीं हुआ जिससे सभी रेस्क्यू मवेशी मर गए।
गोहत्याकांड के लिए पुलिश भी जिम्मेदार
वास्तव में यदि देखा जाय तो जो घृणित दिल दहलाने वाली वारदात बसहट में देखने को मिली इसमे शासन प्रशासन की पोल खोल दी है. आखिर सवाल यह भी उठता है की जब प्रत्येक थाने क्षेत्र में एक बीट प्रभारी होता है जिसका कार्य ही होता है की अपने सूत्रों और स्वयं भी जाकर हर 24 घंटे के भीतर अपने बीट की घटनाक्रम की जानकारी ले तो यह कैसे संभव हुआ की 15 दिन से अधिक समय से बिना चारे, पानी, छाया के भीषण ठंड में बन्द गोवंश मरे और कोई पुलिश वाले को भनक तक नही पहुंची? जबकि यदि देखा जाए तो आज गांव गाँव गांजा और शराब की तस्करी कोरेक्स नशीली दवायें बिक रहीं हैं जिसकी पुलिश वालों को भरपूर जानकारी होती है और सब इन्ही की सह से बिक रही हैं.
राजस्व विभाग भी उतना ही जिम्मेदार
बसहट पशु क्रूरता मामले में पुलिश के साथ राजस्व विभाग भी बराबर का जिम्मेदार है. ज्ञातव्य हो की हर गांव और हल्के में पटवारी और आरआई नियुक्त होते हैं जहां उन्हें नियमित दौरा करके गांव की गतिविधि की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों और प्रशासन को पहुचानी होती है. सवाल यहां भी वही है की क्या पूरे एक पखवाड़े से अधिक समय तक पटवारी गांव का दौरा नही किया था? क्या आरआई ने पटवारी से जानकारी नही माँगी थी की बसहट ग्राम में इस बीच क्या चल रहा है? क्या नायब तहसीलदार अंकित मौर्य अपनी साप्ताहिक मीटिंग में ग्रामों की गतिविधि की जानकारी नही मांगते?
घटना दिनाँक एसडीएम ने बताया बीमार हूँ
त्योंथर एसडीएम ने घटना दिनांक 5 जनवरी को कहा की वह बीमार हैं और घटना स्थल पर नायब तहसीलदार को भेज दिया. क्या इसके लिए एसडीएम त्योंथर बराबर के जिम्मेदार नही हैं? आखिर त्योंथर एसडीएम और तहसीलदार के विरुद्ध भी कार्यवाही क्यों न की जाए इस पर भी शासन को विचार करना चाहिए क्योंकि अनुभाग के सभी उच्चाधिकारी इसके बराबर के जिम्मेदार हैं.
एसडीओपी त्योंथर का होगा दायित्व
अपने थाना क्षेत्र के थाना प्रभारियों की नियमित बैठक बुलाकर अथवा दूरभाष से जानकारी लेना क्या एसडीओपी का दायित्व नही होता? यदि बीट प्रभारी और सिपाही जिम्मेदारी का निर्वहन नही कर रहे तो क्या एसडीओपी इसका जायज़ा नही लेता की उसके अनुभाग में क्या कुछ चल रहा है. अथवा एसडीओपी और अधीक्षक को मात्र इस बात पर ही रुचि है की कहाँ से माल फंसाया जाय और कैसे घृणित कार्य करते हुए फर्जी मुकदमे लगाए जाएं? कैसे फर्जी मामलों में फंसाकर मनगढ़ंत आरोप लगवाकर फिर समाजसेवियों को टॉर्चर किया जाय? कैसे दारू, गांजा, कोरेक्स और नशीली दवाओं, रेत का भंडारण और उत्खनन करवाया जाए? कैसे ओवरलोडिंग से उगाही की जाय? क्या यही सब कार्य पुलिश कर सकती है अथवा कुछ अच्छा भी करते हुए अपनी जिम्मेदारी भी समझ सकती है?
आखिर सीईओ जनपद और जिला पंचायत ने क्या किया?
सवाल यह भी है की आज मप्र की वर्तमान कांग्रेस सरकार द्वारा जो जिले में 30 स्थानों पर सरकारी गोशालाओं को खोले जाने की कवायद और कार्य चल रहा है उसके प्रति पंचायत विभाग की क्या जिम्मेदारी है? क्या मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद एवं जिला पंचायत द्वारा कार्यों में तेजी लाकर बेसहारा गोवंशों और किसानों के हित के लिए प्रारम्भ हुई इन योजनाओं का जल्दी क्रियान्वयन हो ऐसा नही करना चाहिए? क्या सीईओ जनपद पंचायत त्योंथर संजय सिंह यह बता पाएंगे की आखिर उनके पंचायती क्षेत्र बसहट में जब उन्ही के सरपंच सचिव और रोजगार सहायक के अधीन रहे सरकारी काजी हाउस में महीनों से गोवंशों को बिना समुचित व्यवस्था, बिना चारा बिना भूषा अथवा पानी के बांधा जा रहा था तो क्या उनके विभाग को यह जानकारी नही थी? क्या जिस चौराहे और जिस भुरतिया परिवार के मकान के पीछे खुलेआम काजी हाउस बना था तो क्या उन्हें इसकी जानकारी नही थी? क्या जिस चौराहे पर सैकड़ों लोग रोज इकठ्ठा हो रहे हों ऐसे में कोई ग्राम प्रधान, सचिव अथवा सीईओ गोहत्या की अपनी जिम्मेदारियों से बच पायेगा?
कलेक्टर कमिश्नर के फरमान से क्या होगा?
आईये अब एक नजर डालते हैं संभाग और जिले के उच्चाधिकारियों की कार्यप्रणाली पर. पिछले दशक भर से गोवंशों और पशुओं के अधिकारों संरक्षण संवर्धन और किसानों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी ने सीधे कलेक्टर और कमिश्नर पर निशाना साधते हुए इन्हें ही सबसे बड़ा जिम्मेदार बताया है. द्विवेदी ने कहा है की उन्होंने पिछले कई वर्षों से निरंतर गोवंशों के प्रति सम्पूर्ण जिले एवं प्रदेश में हो रही क्रूरता पर आवाज बुलंद की है जिसे मीडिया और शिकायतों के माध्यमों से निरंतर उच्च से उच्च अधिकारियों और मंत्रियों मिनिस्टर और पशु अधिकारों के लिए कार्य करने वाले लोगों एवं संस्थाओं के पास तक बातें रखी गयी हैं. लेकिन इसके बाबजूद भी जिला संभाग और प्रदेश के शासन प्रशासन ने मात्र समस्या को निरंतर नजरअंदाज किया है और उपेक्षा की है जिसका नतीजा है की आज पशु क्रूरता प्रदेश और संभाग में अपने चरम पर है.
हाइकोर्ट में शिवानन्द द्विवेदी ने लगा दी जनहित याचिका
एक्टिविस्ट दविवेदी द्वारा बताया गया की उन्होंने अभी पिछले वर्ष 2018 में जनहित याचिका उच्च न्यायालय जबलपुर में दायर की है जिसमे जिले संभाग और प्रदेश में गोवंशों की दयनीय स्थिति पर कार्यवाही की माग की है. इन गोवंशों के संरक्षण संवर्धन, अधिनियमों के अन्तर्गत पशु क्रूरता करने वालों पर सख्त कार्यवाही, एवं किसानों का संरक्षण होकर ज्यादा से ज्यादा गोशालाएं और गो अभ्यारण्य बने इसके लिए माग की गई है.
शासन प्रशासन ने नही दिया हाई कोर्ट की नोटिस का जबाब
द्विवेदी ने बताया की अब तक हाई कोर्ट जबलपुर से इस विषय में कई बार संबंधितों पुलिश एसपी, डीजीपी, चीफ सेक्रेटरी, वेटरनरी विभाग, पंचायत और कलेक्टर को नोटिस भी जारी हो चुकी है लेकिन अब तक इनमे से किसी ने हाई कोर्ट को जबाब नही दिया है और सभी अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाह रहे हैं. बात जबाब देने तक ही नही है बल्कि हालात इतने बुरे हो चुके हैं लग रहा है प्रशासन की अनदेखी के चलते पशु क्रूरता निरंतर बढ़ती जा रही है जबकि कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इसे कम होना चाहिए था.
क्या होगा गोवंशों का भविष्य मंथन का समय
इस बीच समाजिक कार्यकर्ता ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है की गोवंशों का भविष्य अब प्रश्न के दायरे में आ चुका है. आज समाज इन गोवंशों को पूरी तरह से बहिष्कृत कर चुका है. ऐसा लगता है जैसे गोवंशों को किसी को जरूरत ही नही बची है. मसीनों और ट्रेक्टर के ईजाद होने के बाद कृषि क्षेत्र में पशुओं और गोवंशों की उपयोगिता पूर्णतया शून्य के तुल्य हो चुकी है. जहां कभी बैलों को हल दमरी मिजाई गहाई, कोल्हू गोबर कंडे खाद के लिए प्रयोग किया जाता था आज वह सब बन्द होकर गॉयों को मात्र दुग्ध उत्पाद तक ही सीमित कर दिया गया है. सवाल यह है दुग्ध उत्पाद तो सभी को चाहिए लेकिन मवेशी कोई फूटी आंख देखना नही चाह रहा है. ऐसे में किसान भी इनको बेशहारा छोड़ देते हैं जिससे फसलों को नुकसान करने पर इन्हें क्रूरता का शिकार होना पड़ रहा है.
दुग्ध उत्पाद खाने वाले भी बराबर के जिम्मेदार
एक्टिविस्ट द्विवेदी ने कहा की चाहे भले ही हम मानव अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से खूब भागने का प्रयास करें, तर्क दें, बहाने बनाये कुछ भी कहें लेकिन सबसे कड़वी सच्चाई यह भी है की गोवंशों के प्रति बढ़ रही क्रूरता, इनकी हत्या, बीफ उद्योग के पीछे कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं. हम यह अवश्य कह सकते हैं की हम अपने हाथों से पशु क्रूरता नही कर रहे अतः हम सीधे जिम्मेदार नही हैं लेकिन सच्चाई यह है अपरोक्ष रूप से तो हम भी इसमे भागीदार हैं. मानाकि हम अपने पैसों के दम पर सब कुछ खरीद सकते हैं और हमे दुग्ध उत्पाद के लिए पशु पालना न पड़ता हो लेकिन फिर भी हम भी कहीं न कहीं किसी पशु का ही दुग्ध उत्पाद खा रहे हैं. तो सवाल यह है जब कल वह पशु कष्ट में होगा तो जिम्मेदारी तो हमारी भी तय होगी की यदि उस गोमाता का दूध हमने भी खाया तो उसकी रक्षा सुरक्षा में आगे आएं.
नसबंदी होकर दुग्ध उत्पाद का हो परित्याग
मानाकि यह काफी विवादास्पद बयान हो सकता है लेकिन देश प्रदेश में बढ़ती पशु क्रूरता और हिंसा के चलते सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी का कहना है की आज बुद्धिजीवी और विशुद्ध शाकाहारी समाज दुग्ध उत्पादों का परित्याग करते हुए वेगन बनता जा रहा है. वेगन वह सामाजिक समूह कहलाता है जो अपना नैतिक दायित्व मानता है की यदि वह दुग्ध और दुध से बनी हुई वस्तुएं खाता है तो इसका मतलब यह है की वह कहीं न कहीं पशुओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा में भी जिम्मेदार है क्योंकि दूध पीने में सबसे पहला आधिकार गाय के बछड़े का होता है, बच्चे का अपनी मा पर होता है. अतः आज वेगन समूह यह मानता है की यदि दुग्ध उत्पाद को त्याग दिया जाय तो पशुओं की संख्या नियंत्रित हो जाएगी और हमारी आवश्यकताएं कम होने से पशु भी अत्याचार से बचेंगे साथ में मीट उद्योग पर भी प्रभाव पड़ेगा और कहीं न कहीं पशुओं के प्रति हिंसा काफी हद तक कम होगी.
संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरें देखें जहां जगह जगह पशु पीड़ित परेशान हैं लेकिन कोई देखने वाला नही है.
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र
मोबाइल 9589152587