Thursday, January 16, 2020

(MP ब्रेकिंग) आरटीआई की धारा 4 की शक्तियों से होती है जानकारी सार्वजनिक (जानिए कैसे आरटीआई के एक मामले में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने दिया सम्पूर्ण मप्र की 1148 पंचायतों में कराधान योजना के कार्यों को सार्वजनिक करने का आदेश)

दिनांक 16 जनवरी 2020, स्थान - रीवा/भोपाल मप्र

   सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 अब तक का सबसे सशक्त माध्यम रहा है जिसमे आम से आम नागरिक को वह सभी सरकारी अथवा चिन्हित जानकारी मिल सकती है जो इसके पहले खास लोगों अथवा सरकार या अधिकारियों तक ही सीमित रहती थी.

   लेकिन क्या यह आपको पता है की काफी कुछ जानकारियां आज जो आप इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के दौर पर वेबसाइटों और नेट के माध्यम से देख लेते हैं और जनसामान्य की एक क्लिक की पहुंच पर उपलब्ध है वह आपको कैसे इतनी आसानी से मिलती है? जी हां यदि नही जानते तो आपको बताते चलें की सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 और उसकी विभिन उपधाराओं के तहत स्वतः ही लोक प्राधिकारियों की यह बाध्यताएं होती हैं की वह जनहित की समस्त जानकारियां सार्वजनिक करें और समय समय पर उसे अद्यतन करते रहें जो गुप्त बात अधिनियंम के अन्तर्गत न आती हो.
    आर टी आई की धारा 4 - लोक प्राधिकारियों की बाध्यताएं

   सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 एवं इसकी विभिन्न उपधाराओं 4(1), 4(2),4(3),4(4) एवं 4(1)(क), 4(1)(ख), 4(1)(ग), 4(1)(घ)  एवं 4(1)(ख) की उपधाराओं की उपधाराओं (i) से (xvii) तक में जनहित से संबंधित सूचना साझा करने विषयक प्रत्येक लोक प्राधिकारी का अनिवार्य दायित्व बताया गया है जिसके तहत धारा 4(2) में प्रत्येक लोक प्राधिकारी का निरंतर यह प्रयाश रहेगा की वह उपधारा  4(1) के खंड (ख) की अपेक्षाओं के अनुसार स्वप्रेरणा से जनता को नियमित अंतरालों पर संसूचना के विभिन्न साधनो के माध्यम से जिनके अन्तर्गत इंटरनेट भी है इतनी अधिक सूचना उपलब्ध कराने के लिए उपाय करे जिससे की जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए इस अधिनियम का कम से कम उपयोग करना पड़े. इसी प्रकार धारा 4 की उपधारा 4(3) कहती है की उपधारा 4(1) के प्रयोजन के लिए प्रत्येक सूचना को विस्तृत रूप से और ऐसे प्रारूप और रीति में प्रसारित किया जाएगा जो जनता के लिए सहज रूप से पहुंच योग्य हो. ऐसे ही उपधारा 4(1) के (ख) में कहा गया की इस आर टी आई अधिनियम के अधिनियमन के 120 दिन के भीतर उपधाराओं 4(1)(ख) की उपधाराओं (i) से (xvii) तक समस्त चिन्हित सूचना को प्रकाशित करेगा एवं इस सूचना को अद्यतन करेगा.
    अतः देखा जा सकता है की आर टी आई अधिनियम वास्तव में इतना शसक्त है की इसमे लगभग वह समस्त जानकारी मिल जाती है जो गुप्त बात अधिनियम के अन्तर्गत न आती हो और वह भी काफी सहज और सुलभ प्रारूप में लोक प्राधिकारियों को उपलब्ध कराए जाने की बात कही गयी है. 
    वास्तव में धारा 4 और उसकी उपधाराओं के तहत ज्यादातर जानकारी सार्वजनिक करने की बात आती है.
  शिवानन्द द्विवेदी बनाम मप्र शासन - कराधान मामला 

   अब आते हैं उस मामले में जिसने मप्र में वर्तमान में काफी हलचल मचा रखी है. यह मामला है करारोपण और कराधान का. गंगेव ब्लॉक रीवा से प्रारम्भ होकर पूरे मप्र की 1148 पंचायतों में लगभग 300 करोड़ रुपये से अधिक के इस घोटाले में काफी परतें खुलती नजर आ रही हैं.

  आइए नजर डालते हैं मप्र राज्य सूचना आयुक्त के दिनांक 23 दिसंबर 2019 की एक सुनवाई के मामले पर जिसमे कई लोक सूचना अधिकारियों की पेशी हुईं वहीं कुछ को जुर्माना भी लग चुका है.
  राज्य सूचना आयुक्त  श्री राहुल सिंह ने लगाया जुर्माना जारी किया एससीएन 

   मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने एक शिकायत नंबर सी-0820/आईसी-7/रीवा/2019 के निराकरण में शिवानन्द द्विवेदी बनाम लोक सूचना अधिकारी कलेक्टर रीवा, लोक सूचना अधिकारी सीईओ जिला पंचायत रीवा एवं लोक सूचना अधिकारी जनपद रीवा के केस में जहां पीआईओ गंगेव बालेन्द्र पांडेय को 5 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया वहीं तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी कलेक्टर रीवा श्रीमती माला त्रिपाठी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सीईओ जिला पंचायत रीवा राजेश शुक्ला को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
  
   
सूचना आयुक्त  श्री राहुल सिंह ने लिखा पंचायत एसीएस मनोज श्रीवास्तव को

    एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी द्वारा उठाये गए प्रकरण जिसमे मप्र की 1148 पंचायतों की कराधान घोटाले की जांच की माग की गयी थी इस परिपेक्ष में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की अपीलकर्ता द्वारा इस प्रकरण में मध्यप्रदेश स्तर पर समस्त पंचायतों में कराधान घोटाले की जांच की माग की गयी है. इस प्रकरण में कार्यवाई के लिए राज्य सूचना आयोग उपयुक्त फोरम नही है. सूचना आयुक्त द्वारा आगे कहा गया कि अपीलकर्ता उपयुक्त फोरम पर संपर्क करके भ्रष्टाचार के इस प्रकरण में कार्यवाई की माग कर सकते हैं जिसके बाबत सूचना आयुक्त ने पत्र को अग्रिम कार्यवाही की अनुसंशा के साथ पंचायत एवं ग्रामीण विकाश विभाग बल्लभ भवन मंत्रालय में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज श्रीवास्तव को कार्यवाही के लिए लिखा है.
  कराधान घोटाला में धारा 4 के तहत जानकारी करो सार्वजनिक

   इसी बीच पंचायत दर्पण एवं पंचायत विभाग की वेबसाइट में सूचना सार्वजनिक किये जाने की एक्टिविस्ट की माग को लेकर अपने कार्यक्षेत्र के अदेश में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए पंचायत विभाग को आरटीआई की धारा 4(1)(ख)(11) एवं 4(1)(ख)(14), 4(2), 4(4) के तहत कराधान एवं स्वकरारोपण की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए आदेशित किया है जिसके विषय में पंचायत विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज श्रीवास्तव को निर्देशित किया है एवं साथ ही संचालक पंचायतराज संचालनालय अरेरा हिल्स भोपाल की निदेशिका श्रीमती उर्मिला शुक्ला को भी पत्र की प्रतियां फारवर्ड किया गया है.
 
  इस प्रकार देखा जा सकता है की आरिटीआई आज आम जनता का सबसे शसक्त लोकतांत्रिक हथियार है जिसके तहत काफी महत्वपूर्ण जानकारी जनमानस तक आसानी से पहुचकर समस्त सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाई जा सकती है. आज आवश्यकता है इसके प्रति जागरूक रहने और इसके सही उपयोग की.
संलग्न - कृपया संलग्न राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह का कराधान घोटाले के आदेश पीडीएफ फ़ाइल की प्रति देखने का कष्ट करें।

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Tuesday, January 14, 2020

(MP breaking) आरटीआई लाइव - लगातार जुर्मानों के बाद भी नही चेत रहे अधिकारी, मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा लगातार हो रही कार्यवाहियों से प्रदेश में मचा है हड़कम्प, लोग पूंछ रहे अबकी बार किसकी बारी

दिनांक 14 जनवरी 2020, स्थान - रीवा मप्र

  👉 डीएफओ सतना राजीव मिश्रा पर लगा 10 हज़ार रुपये का जुर्माना।

  👉 तत्कालीन त्योंथर तहसीलदार जितेंद्र तिवारी पर लगा 7 हज़ार 500 रुपये का जुर्माना।

  👉 तत्कालीन तहसीलदार त्योंथर एवं वर्तमान में टीकमगढ़ में पदस्थ महेंद्र गुप्ता को कारण बताओ नोटिस, 21 जनवरी को भोपाल में होगी पेशी।

  👉 सचिव पंचायत भोलगढ़ संजय मिश्रा पर लगा 10 हज़ार रुपये का जुर्माना।
     आरटीआई नियमों की अवहेलना करने के चलते मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा कार्यवाहियां की जा रही हैं जिसमे लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों के ऊपर जुर्मानों के साथ अनुशासनात्मक कार्यवाहियां भी की जा रही हैं लेकिन संभाग के लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकिरियों की कार्यशैली अभी भी पूर्ववत ही बनी हुई है। 

   तीन अलग अलग प्रकरणों में लगाया गया जुर्माना
   
     अभी हाल ही में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा तीन अलग अलग प्रकरणों में जुर्माना लगाया गया है। एक प्रकरण सतना जिले में वन विभाग से सम्बंधित है जिसमे अपीलार्थी रामस्वरूप पटेल बनाम लोक सूचना अधिकारी वन मंडल सतना के एक मामले ए-2352/सतना/2018 में दिनांक 09/01/2020 को फैसला देते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी एवं डीएफओ सतना राजीव मिश्रा द्वारा अपीलार्थी के आरटीआई प्रकरण दिनाँक 26/12/2017 में असद्भावनापूर्वक, असहयोग करते हुए बिना किसी उचित एवं पर्याप्त कारण के जानकारी छुपाने का प्रयास किया गया एवं सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रति घोर लापरवाही का रवैया अख्तियार किया गया जिसके चलते डीएफओ राजीव मिश्रा के ऊपर आरटीआई की धारा 20(1) के तहत 10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है।
   दूसरा प्रकरण: ददन तिवारी बनाम त्योंथर राजस्व विभाग त्योंथर

   ऐसे ही दूसरे अपीलीय मामले ए-4788/रीवा/2017 में भी सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माने और शो कॉज नोटिस की कार्यवाही की गई है। यह मामला नक्सा तरमीन की राजस्व विभाग की सामान्य सी कार्यवाही का है जिसे पटवारी, आरआई और तहसीलदार कैसे अत्यधिक पेचीदा बनाकर अपीलार्थी और पीड़ितों की प्रताड़ित कर सकते हैं उसके विषय मे यह प्रकरण प्रकाश डालता है। 

    ददन तिवारी निवासी तहसील त्योंथर द्वारा राजस्व विभाग त्योंथर के समक्ष कुछ नक्सा तरमीन सम्बंधित जानकारी आरटीआई दाखिल कर चाही गयी थी जिसे तहसीलदार द्वारा छुपाने का प्रयास किया गया। इस पर कई सुनवाइयों के बाद और कई कारण बताओ नोटिसें जारी करने के बाद अभी हाल ही में 06/01/2020 को हुई सुनवाई में तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी एवं तहसीलदार महेंद्र गुप्ता को दोषी पाया गया जिन्होंने 3/5/17 को त्योंथर में पदस्थ रहते हुए जानकारी समय सीमा पर नही दी और धारा 7(1) का उल्लंघन किया तथा अपने दायित्यों के प्रति घोर लापरवाही बरती। जिसके कारण वर्तमान टीकमगढ़ में पदस्थ तहसीलदार महेंद्र गुप्ता को धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 21/01/2020 को व्यक्तिगत तौर पर सूचना भवन भोपाल में उपस्थित होने के आदेश दिए हैं। 

     वहीं इसी मामले में तत्कालीन तहसीलदार और पीआईओ जितेंद्र तिवारी को अपीलार्थी के आरटीआई आवेदन दिनाँक 3/5/2017 पर जानकारी न देने, अपीलार्थी के साथ असद्भावपूर्वक, जानबूझकर और बिना किसी उचित और पर्याप्त कारण के जानकारी छुपाने के चलते एवं सूचना के अधिकार के प्रति घोर लापरवाही बरतने और पदीय दायित्यों का निर्वहन न करने सहित अन्य कारणों के चलते धारा 20(1) के तहत रुपये 7 हज़ार 500 का जुर्माना लगाया गया है।  
     
  तीसरा मामला : ज्ञानेंद्र गौतम बनाम भोलगढ़ पंचायत रीवा

    तीसरा प्रकरण भोलगढ़ पंचायत जनपद पंचायत रीवा से सम्बंधित है जिसमे भोलगढ़ निवासी ज्ञानेंद्र गौतम द्वारा 2014-15 से 2018 तक कि स्वच्छ भारत और शौचालय निर्माण सम्बन्धी जानकारी लोक सूचना कार्यालय ग्राम पंचायत भोलगढ़ में दिनांक 26/09/2018 को आरटीआई फ़ाइल करके चाही गयी थी तब जानकारी न मिलने पर अपीलकर्ता द्वारा प्रथम अपील 11/01/2019 एवं द्वितीय अपील दिनांक 25/05/2019 को की गई थी। मप्र राज्य सूचना आयुक्त की 28/08/2019 को रीवा में हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में घोर लापरवाही बरतते हुए न तो लोक सूचना अधिकारी और न ही प्रथम अपीलीय अधिकारी मौजूद थे। इसके बाद कारण बताओ नोटिस की सुनवाई 23/12/2019 को सूचना आयोग भोपाल में रखी गयी थी जिसमे पीआईओ उपस्थित नहीं थे। 

     दिनाँक 23/12/2019 की सूचना भवन में हुई सुनवाई में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने लोक सूचना अधिकारी संजय मिश्रा सचिव ग्राम पंचायत भोलगढ़ जनपद पंचायत रीवा को अपीलार्थी के आरटीआई आवेदन दिनांक 26/09/2018 पर कार्यवाही न करने, असद्भावपूर्वक, जानबूझकर एवं बिना किसी पर्याप्त और उचित कारणों के जानकारी छुपाने के चलते आरटीआई के नियम प्रावधानों के विरुद्ध व्यवहार करने के चलते धारा 20(1) के तहत प्रतिदिन के हिसाब से 250 रुपये का जुर्माना और अधिकतम 10 हज़ार रुपये का जुर्माना अधिरोपित किया। 
    सभी जुर्माना राशि समयसीमा में आयोग में जमा करो
    
     उक्त तीनों प्रकरणों में जुर्माने की राशि समयसीमा में डीडी अथवा अन्य उचित माध्यमो से सूचना आयोग के समक्ष भोपाल में जमा करने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। आगे आदेशित किया गया कि यदि जुर्माने की राशि समयसीमा में जमा नहीं की जाती तो आयोग द्वारा मप्र सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 (अपील एवं फीस) की धारा 8(6) के प्रावधानों के तहत कार्यवाही की जाएगी।
   
    जुर्माने रुक नहीं रहे, आदतें सुधर नहीं रहीं

     मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के उल्लंघन को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है जिसके चलते लोक सूचना अधिकारियों और सम्बंधित विभागों में हड़कम्प मचा हुआ है। जहां वर्तमान सूचना आयुक्त की पदस्थापना के पूर्व मप्र में आरटीआई की स्थिति काफी उदासीन थी वहीं वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है जैसे हर जगह सूचना के अधिकार की ही चर्चाएं हो रही हैं। इसके बाबजूद भी कर्मचारी और अधिकारी सूचना के अधिकार की अवहेलना में रत हैं। 

     अब देखना यह होगा कि क्या सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह की सख्ती मप्र में आरटीआई को मजबूत बना पाएगी।

  संलग्न - कृपया संलग्न पेज में देखें मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा ट्वीट कर दी गयी जानकारी एवं साथ ही आदेश की प्रतियां।

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शिवानन्द द्विवेदी
(सोशल एंड ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट)
जिला रीवा मप्र मोबाइल 9589152587

Thursday, January 9, 2020

(MP breaking) हाइकोर्ट की नोटिस बेअसर, प्रदेश में बढ़ रही पशु क्रूरता ( मामला एक जनहित याचिका का एवं जिले के त्योंथर ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले बसहट पंचायत का जहां पर पिछले दिनों भीषण पशु क्रूरता की वारदातों में सैकड़ों मवेशियों के मरने के बाद जीवित रेस्क्यू सभी 8 मवेशी भी पशु चिकित्सा विभाग और प्रशासन की वजह से मर गए)

दिनांक 09 जनवरी 2020, स्थान - रीवा मप्र

   देश प्रदेश में चल रही पशु क्रूरता रुकने का नाम नही ले रही है. मांस भक्षक एवं दुग्ध उत्पाद खाने वाले लोगों के चलते जहां पशुओं की तादाद बढ़ती जा रही है वहीं अब उन्हें संभालने का संकट उत्पन्न हो चुका है. आखिर सवाल यह है की मानव को दुग्ध उत्पाद भी चाहिए और मीट भी चाहिए फिर कैसे पशुओं की संख्या नियंत्रित हो. लिहाजा दोनो की चाह में बढ़ती पशुओं की संख्या के चलते अब उन्हें संभालने का देशव्यापी संकट उत्पन्न हो चुका है. जहां सरकारी व्यवस्थाएं थीं वहां भी रखरखाव और भ्रष्टाचार के चलते अव्यवस्था फैल चुकी है. जहां तक सवाल वैकल्पिक व्यवस्था की हैं वहां भी समाज हाँथ खड़ा कर चुका है. ऐसे में जाहिर है आज गोवंशों की दशा और दिशा क्या होगी बड़े ही चिंता का विषय है.
   बसहट गोहत्याकांड का जिम्मेदार शासन  प्रशासन 

   बता दें की त्योंथर ब्लॉक अन्तर्गत बसहट ग्राम पंचायत में अभी हाल ही में हुए भीषण गोहत्याकांड में रेस्क्यू किये गए 8 गोवंशों को भी प्रशासन और पशु चिकित्सा विभाग बचा नही पाया है. सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी ने बताया की जबकि देखा जाए तो इसमे पूरी गलती प्रशासनिक अमले की ही है. सवाल यह है की जब कड़ी मसक्कत के बाद 8 गोवंशों को जीवित बचाया गया तो उन्हें सही पोषण एवं इलाज क्यों नही दिया गया. सच्चाई यह है की 5 जनवरी को रेस्क्यू किये गए गोवंशों के प्रति न तो पुलिश की कोई संवेदना थी न ही पशु चिकित्सा विभाग की. जहां तक प्रश्न सीईओ जनपद का है तो वह व्यक्ति आज तक लापता हैं. एसडीएम भी बीमारी का बहाना बनाकर मात्र नायब तहसीलदार अंकित मौर्य को ही मौके पर भेज दिया था.
   रेस्क्यू 8 गोवंश भी मरे

   रेस्क्यू किये गए 8 गोवंशों को 5 जनवरी रात को बाहर ठंड में तड़पते हुए छोड़ दिया गया था जिसके चलते वह कमजोर पड़ गए और तीन रातोंरात मर गए. अगले दिन 6 जनवरी को 5 गोवंशों को झोटिया गोशाला पहुचाने का प्रयास किया गया लेकिन उनमे से 2 ट्रेक्टर का दच्चा खाकर मर गए. शेष बचे 3 गोवंश 8 जनवरी शुबह तक इलाज और पोषण के अभाव में मर गए. इस प्रकार तीन बसहट में ही मर गए थे. शेष 5 अगले दिन मर गए.
   पशु चिकित्सा विभाग ने नही किया इलाज

   झोटिया गोशाला प्रबंधक अरिमर्दन सिंह द्वारा जानकारी दी गई की तीन गोवंशों को 6 जनवरी को झोटिया गोशाला पहुचाने के बाद पशु चिकित्सा विभाग और प्रशासन अपना पल्ला झाड़ लिया. डॉक्टर न तो इलाज करने आये और न ही कोई पोषण की जानकारी दी. गोशाला प्रबंधक ने बताया की झोटिया प्राइवेट गोशाला में कोई भी वेटरनरी डॉक्टर उपलब्ध नही है जिससे वह इलाज नही करवा पाएं. बताया गया की 7 जनवरी को पशु चिकित्सा विभाग के कुछ कम्पाउण्डर आये थे जिनके पास न तो सामग्री थी और न ही दवा. मात्र औपचारिकता पूरी करने आये थे. इस प्रकार गोशाला प्रबंधन ने स्वयं ही 2000 रुपये से अधिक कीमत की दवा खरीद कर इलाज करवाया. पशु डॉक्टर के पास कोई दवा तक नही थी.
   बोतल चढ़ाते ही एक और गाय मृत
  
   बताया गया की गायों में कमजोरी और ठंड की वजह से शरीर का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस हो चुका था जिसके कारण नौशिखिये डॉक्टरों ने जैसे ही बोतल चढ़ाया वैसे ही एक गाय तुरंत मर गई. बताया गया की पहले उनके पोषण के लिए कुछ करना था एवं अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाना था जिससे यह मरने वाली स्थिति निर्मित नही होती. इसके बाद 2 और भी बची गायें इलाज और पोषण के अभाव में मर गईं. वास्तव में रेस्क्यू किये गोवंशों को रीवा के पशु चिकित्सालय में भर्ती किया जाना था और ऐसा नहीं हुआ जिससे सभी रेस्क्यू मवेशी मर गए।
   गोहत्याकांड के लिए पुलिश भी जिम्मेदार

   वास्तव में यदि देखा जाय तो जो घृणित दिल दहलाने वाली वारदात बसहट में देखने को मिली इसमे शासन प्रशासन की पोल खोल दी है. आखिर सवाल यह भी उठता है की जब प्रत्येक थाने क्षेत्र में एक बीट प्रभारी होता है जिसका कार्य ही होता है की अपने सूत्रों और स्वयं भी जाकर हर 24 घंटे के भीतर अपने बीट की घटनाक्रम की जानकारी ले तो यह कैसे संभव हुआ की 15 दिन से अधिक समय से बिना चारे, पानी, छाया के भीषण ठंड में बन्द गोवंश मरे और कोई पुलिश वाले को भनक तक नही पहुंची? जबकि यदि देखा जाए तो आज गांव गाँव गांजा और शराब की तस्करी कोरेक्स नशीली दवायें बिक रहीं हैं जिसकी पुलिश वालों को भरपूर जानकारी होती है और सब इन्ही की सह से बिक रही हैं.
  राजस्व विभाग भी उतना ही जिम्मेदार

   बसहट पशु क्रूरता मामले में पुलिश के साथ राजस्व विभाग भी बराबर का जिम्मेदार है. ज्ञातव्य हो की हर गांव और हल्के में पटवारी और आरआई नियुक्त होते हैं जहां उन्हें नियमित दौरा करके गांव की गतिविधि की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों और प्रशासन को पहुचानी होती है. सवाल यहां भी वही है की क्या पूरे एक पखवाड़े से अधिक समय तक पटवारी गांव का दौरा नही किया था? क्या आरआई ने पटवारी से जानकारी नही माँगी थी की बसहट ग्राम में इस बीच क्या चल रहा है? क्या नायब तहसीलदार अंकित मौर्य अपनी साप्ताहिक मीटिंग में ग्रामों की गतिविधि की जानकारी नही मांगते?
   घटना दिनाँक एसडीएम ने बताया बीमार हूँ

   त्योंथर एसडीएम ने घटना दिनांक 5 जनवरी को कहा की वह बीमार हैं और घटना स्थल पर नायब तहसीलदार को भेज दिया. क्या इसके लिए एसडीएम त्योंथर बराबर के जिम्मेदार नही हैं? आखिर त्योंथर एसडीएम और तहसीलदार के विरुद्ध भी कार्यवाही क्यों न की जाए इस पर भी शासन को विचार करना चाहिए क्योंकि अनुभाग के सभी उच्चाधिकारी इसके बराबर के जिम्मेदार हैं.
  एसडीओपी त्योंथर का होगा दायित्व 

    अपने थाना क्षेत्र के थाना प्रभारियों की नियमित बैठक बुलाकर अथवा दूरभाष से जानकारी लेना क्या एसडीओपी का दायित्व नही होता? यदि बीट प्रभारी और सिपाही जिम्मेदारी का निर्वहन नही कर रहे तो क्या एसडीओपी इसका जायज़ा नही लेता की उसके अनुभाग में क्या कुछ चल रहा है. अथवा एसडीओपी और अधीक्षक को मात्र इस बात पर ही रुचि है की कहाँ से माल फंसाया जाय और कैसे घृणित कार्य करते हुए फर्जी मुकदमे लगाए जाएं? कैसे फर्जी मामलों में फंसाकर मनगढ़ंत आरोप लगवाकर फिर समाजसेवियों को टॉर्चर किया जाय? कैसे दारू, गांजा, कोरेक्स और नशीली दवाओं, रेत का भंडारण और उत्खनन करवाया जाए? कैसे ओवरलोडिंग से उगाही की जाय? क्या यही सब कार्य पुलिश कर सकती है अथवा कुछ अच्छा भी करते हुए अपनी जिम्मेदारी भी समझ सकती है?
   आखिर सीईओ जनपद और जिला पंचायत ने क्या किया?

    सवाल यह भी है की आज मप्र की वर्तमान कांग्रेस सरकार द्वारा जो जिले में 30 स्थानों पर सरकारी गोशालाओं को खोले जाने की कवायद और कार्य चल रहा है उसके प्रति पंचायत विभाग की क्या जिम्मेदारी है? क्या मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद एवं जिला पंचायत द्वारा कार्यों में तेजी लाकर बेसहारा गोवंशों और किसानों के हित के लिए प्रारम्भ हुई इन योजनाओं का जल्दी क्रियान्वयन हो ऐसा नही करना चाहिए? क्या सीईओ जनपद पंचायत त्योंथर संजय सिंह यह बता पाएंगे की आखिर उनके पंचायती क्षेत्र बसहट में जब उन्ही के सरपंच सचिव और रोजगार सहायक के अधीन रहे सरकारी काजी हाउस में महीनों से गोवंशों को बिना समुचित व्यवस्था, बिना चारा बिना भूषा अथवा पानी के बांधा जा रहा था तो क्या उनके विभाग को यह जानकारी नही थी? क्या जिस चौराहे और जिस भुरतिया परिवार के मकान के पीछे खुलेआम काजी हाउस बना था तो क्या उन्हें इसकी जानकारी नही थी? क्या जिस चौराहे पर सैकड़ों लोग रोज इकठ्ठा हो रहे हों ऐसे में कोई ग्राम प्रधान, सचिव अथवा सीईओ गोहत्या की अपनी जिम्मेदारियों से बच पायेगा?
  कलेक्टर कमिश्नर के फरमान से क्या होगा?

     आईये अब एक नजर डालते हैं संभाग और जिले के उच्चाधिकारियों की कार्यप्रणाली पर. पिछले दशक भर से गोवंशों और पशुओं के अधिकारों संरक्षण संवर्धन और किसानों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी ने सीधे कलेक्टर और कमिश्नर पर निशाना साधते हुए इन्हें ही सबसे बड़ा जिम्मेदार बताया है. द्विवेदी ने कहा है की उन्होंने पिछले कई वर्षों से निरंतर गोवंशों के प्रति सम्पूर्ण जिले एवं प्रदेश में हो रही क्रूरता पर आवाज बुलंद की है जिसे मीडिया और शिकायतों के माध्यमों से निरंतर उच्च से उच्च अधिकारियों और मंत्रियों मिनिस्टर और पशु अधिकारों के लिए कार्य करने वाले लोगों एवं संस्थाओं के पास तक बातें रखी गयी हैं. लेकिन इसके बाबजूद भी जिला संभाग और प्रदेश के शासन प्रशासन ने मात्र समस्या को निरंतर नजरअंदाज किया है और उपेक्षा की है जिसका नतीजा है की आज पशु क्रूरता प्रदेश और संभाग में अपने चरम पर है.
  हाइकोर्ट में शिवानन्द द्विवेदी ने लगा दी जनहित याचिका

    एक्टिविस्ट दविवेदी द्वारा बताया गया की उन्होंने अभी पिछले वर्ष 2018 में जनहित याचिका उच्च न्यायालय जबलपुर में दायर की है जिसमे जिले संभाग और प्रदेश में गोवंशों की दयनीय स्थिति पर कार्यवाही की माग की है. इन गोवंशों के संरक्षण संवर्धन, अधिनियमों के अन्तर्गत पशु क्रूरता करने वालों पर सख्त कार्यवाही, एवं किसानों का संरक्षण होकर ज्यादा से ज्यादा गोशालाएं और गो अभ्यारण्य बने इसके लिए माग की गई है. 
   शासन प्रशासन ने नही दिया हाई कोर्ट की नोटिस का जबाब

   द्विवेदी ने बताया की अब तक हाई कोर्ट जबलपुर से इस विषय में कई बार संबंधितों पुलिश एसपी, डीजीपी, चीफ सेक्रेटरी, वेटरनरी विभाग, पंचायत और कलेक्टर को नोटिस भी जारी हो चुकी है लेकिन अब तक इनमे से किसी ने हाई कोर्ट को जबाब नही दिया है और सभी अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाह रहे हैं. बात जबाब देने तक ही नही है बल्कि हालात इतने बुरे हो चुके हैं लग रहा है प्रशासन की अनदेखी के चलते पशु क्रूरता निरंतर बढ़ती जा रही है जबकि कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इसे कम होना चाहिए था.
  क्या होगा गोवंशों का भविष्य मंथन का समय

   इस बीच समाजिक कार्यकर्ता ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है की गोवंशों का भविष्य अब प्रश्न के दायरे में आ चुका है. आज समाज इन गोवंशों को पूरी तरह से बहिष्कृत कर चुका है. ऐसा लगता है जैसे गोवंशों को किसी को जरूरत ही नही बची है. मसीनों और ट्रेक्टर के ईजाद होने के बाद कृषि क्षेत्र में पशुओं और गोवंशों की उपयोगिता पूर्णतया शून्य के तुल्य हो चुकी है. जहां कभी बैलों को हल दमरी मिजाई गहाई, कोल्हू गोबर कंडे खाद के लिए प्रयोग किया जाता था आज वह सब बन्द होकर गॉयों को मात्र दुग्ध उत्पाद तक ही सीमित कर दिया गया है. सवाल यह है दुग्ध उत्पाद तो सभी को चाहिए लेकिन मवेशी कोई फूटी आंख देखना नही चाह रहा है. ऐसे में किसान भी इनको बेशहारा छोड़ देते हैं जिससे फसलों को नुकसान करने पर इन्हें क्रूरता का शिकार होना पड़ रहा है. 
   दुग्ध उत्पाद खाने वाले भी बराबर के जिम्मेदार

   एक्टिविस्ट द्विवेदी ने कहा की चाहे भले ही हम मानव अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से खूब भागने का प्रयास करें,  तर्क दें, बहाने बनाये कुछ भी कहें लेकिन सबसे कड़वी सच्चाई यह भी है की गोवंशों के प्रति बढ़ रही क्रूरता, इनकी हत्या, बीफ उद्योग के पीछे कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं. हम यह अवश्य कह सकते हैं की हम अपने हाथों से पशु क्रूरता नही कर रहे अतः हम सीधे जिम्मेदार नही हैं लेकिन सच्चाई यह है अपरोक्ष रूप से तो हम भी इसमे भागीदार हैं. मानाकि हम अपने पैसों के दम पर सब कुछ खरीद सकते हैं और हमे दुग्ध उत्पाद के लिए पशु पालना न पड़ता हो लेकिन फिर भी हम भी कहीं न कहीं किसी पशु का ही दुग्ध उत्पाद खा रहे हैं. तो सवाल यह है जब कल वह पशु कष्ट में होगा तो जिम्मेदारी तो हमारी भी तय होगी की यदि उस गोमाता का दूध हमने भी खाया तो उसकी रक्षा सुरक्षा में आगे आएं.
   नसबंदी होकर दुग्ध उत्पाद का हो परित्याग

    मानाकि यह काफी विवादास्पद बयान हो सकता है लेकिन देश प्रदेश में बढ़ती पशु क्रूरता और हिंसा के चलते सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी का कहना है की आज बुद्धिजीवी और विशुद्ध शाकाहारी समाज दुग्ध उत्पादों का परित्याग करते हुए वेगन बनता जा रहा है. वेगन वह सामाजिक समूह कहलाता है जो अपना नैतिक दायित्व मानता है की यदि वह दुग्ध और दुध से बनी हुई वस्तुएं खाता है तो इसका मतलब यह है की वह कहीं न कहीं पशुओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा में भी जिम्मेदार है क्योंकि दूध पीने में सबसे पहला आधिकार गाय के बछड़े का होता है, बच्चे का अपनी मा पर होता है. अतः आज वेगन समूह यह मानता है की यदि दुग्ध उत्पाद को त्याग दिया जाय तो पशुओं की संख्या नियंत्रित हो जाएगी और हमारी आवश्यकताएं कम होने से पशु भी अत्याचार से बचेंगे साथ में मीट उद्योग पर भी प्रभाव पड़ेगा और कहीं न कहीं पशुओं के प्रति हिंसा काफी हद तक कम होगी.
   संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरें देखें जहां जगह जगह पशु पीड़ित परेशान हैं लेकिन कोई देखने वाला नही है.

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक कार्यकर्ता 
जिला रीवा मप्र
मोबाइल 9589152587