Sunday, July 12, 2020

(Rewa/Bhopal, MP) आरटीआई की धारा 2(जे) में कर सकते हैं कार्य का निरीक्षण और ले सकते हैं सैंपल (मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में मानसून सत्र की पांचवीं जूम मीटिंग वेबिनार का हुआ आयोजन, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी और महाराष्ट्र महिती अधिकार मंच के अध्यक्ष भास्कर प्रभु रहे विशिष्ट अतिथि)

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को जन जन तक पहुचाने के लिए और सर्व सुलभ बनाने के लिए मप्र सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा इस मानसून सत्र की पांचवीं वेबीनार मीटिंग का आयोजन किया गया जिसमें आरटीआई की धारा 2(जे) से जुड़ी उपधाराओं पर विस्तृत चर्चा की गई। 

   कार्यक्रम में लगभग 50 पार्टिसिपेंट्स ने भाग लिया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी एवं महाराष्ट्र महिती अधिकार मंच के संस्थापक भास्कर प्रभु रहे जिन्होंने आरटीआई कार्यकर्ताओं के विभिन्न प्रश्नों एवं कौतूहल का जबाब दिया।
कार्यक्रम का संयोजन एवं समन्वयन आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी द्वारा किया गया।

  देशभर से यह यह एक्टिविस्ट हुए सम्मिलित

   वेबिनार मीटिंग में सम्मिलित होने वाले सदस्यों में दिल्ली से अक्षय गोस्वामी, राजस्थान से आरके मीणा, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, छत्तीसगढ़ से विनोद दास, नागपुर से वीरेंद्र द्विवेदी, मदन गोपाल तिवारी, सत्येंद्र शिकरवार, इंदौर से अंकुर मिश्रा, दिल्ली-हरियाणा से निखिल खुराना, हिमांशु पण्डेय, ग्वालियर से आशीष राय, रीवा से प्रदीप उपाध्याय,  राजू तिवारी, कृष्ण नारायण दुबे, स्वतंत्र शुक्ला, मेघना गटिया, शैलेन्द्र प्रताप सिंह, आदि प्रमुख रहे जिन्होंने अपने प्रश्नों के समाधान प्राप्त किये।
   क्या निरीक्षण अथवा सैम्पल लेने के लिए अलग से आरटीआई लगाना होता है?

   इस बीच दिल्ली से अक्षय गोस्वामी और अन्य के द्वारा इंस्पेक्शन और सैंपलिंग लेने के संदर्भ में प्रश्न किये गए और जानने के प्रयास किये गए कि निरीक्षण और सैंपलिंग की प्रक्रिया क्या है? क्या इसके लिए अलग से आरटीआई लगाना पड़ता है तो इसके जबाब में मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व सीआईसी शैलेश गांधी ने बताया कि धारा 6(1) के तहत ही आवेदन दिया जाता है और कागज़ दस्तावेज के स्थान पर कार्य के निरीक्षण, किसी स्थल के निरीक्षण और सैंपल लेना है इस प्रकार लिखा जाता है। इस प्रक्रिया में भी लोक सूचना अधिकारी को समयसीमा पर जानकारी उपलब्ध करानी होती है और यदि पीआईओ समय पर जानकारी नही देता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाता है।
    महाराष्ट्र में अस्पताल और दिल्ली में स्कूल  के निरीक्षण का दिया था आदेश - पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी
 
    चर्चा के दौरान मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि उनके बीच पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में काफी महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। आरटीआई की धारा 2(जे) पर ही चर्चा करते हुए बात आई कि श्री गांधी ने कई ऐसे निर्णय दिए हैं जिनमे किसी कार्य स्थल का निरीक्षण और सैंपल लेने सम्बन्धी आवेदनों पर अच्छी कार्यवाहियां की हैं। दिल्ली की स्कूलों के इंस्पेक्शन से जुड़े मामले में भी श्री गांधी द्वारा आदेशित किया गया था कि अपीलार्थी स्कूलों का इंस्पेक्शन कर सकते हैं और पीआईओ को इस पर कोआपरेट करना चाहिए। इसी प्रकार पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री गांधी द्वारा बताया गया कि ऐसे ही एक आरटीआई में मुम्बई भयंदर के कृष्णा गुप्ता द्वारा आरटीआई लगाकर अस्पतालों के निरीक्षण की बात कही गयी थी जिस पर श्री गांधी द्वारा अनुमति प्रदान की गई थी जब अपीलार्थी कृष्णा गुप्ता द्वारा हॉस्पिटल का इंस्पेक्शन किया गया तो अस्पताल प्रबंधन में कई कमियां पाई गईं थीं। इसी मामले में 50 हज़ार रुपये कीमत से अधिक के सामान खरीदी का भी इन्सपेक्शन हुआ तो पाया गया कि अस्पताल में कई सामानों की खरीदी भी नही की गई थी। इस प्रकार आरटीआई की धारा 2(जे)(आई) के तहत निरीक्षण मात्र से ही काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिल गयी और काफी भ्रष्टाचार सामने आ गया।
   कार्यों के निरीक्षण के बाद करें जनसुनवाई, उसमें बुलाएं अधिकारी - भास्कर प्रभु

   महिती अधिकार मंच महाराष्ट्र के अध्यक्ष भास्कर प्रभु ने कहा कि उन्होंने कई ऐसे मामलों में धारा 2(जे)(आई) का प्रयोग कर समाज मे बदलाव और सकारात्मक दिशा में प्रयाश किये हैं। ऐसे ही एक मामले का उदाहरण देते हुए श्री प्रभु ने बताया कि उन्होंने अपने कम्युनिटी के लोगों के सहयोग से एक बार 4 गार्डन के निरीक्षण के लिए आरटीआई लगाई थी जिसमे उन्होंने निरीक्षण में क्रमवार कई कमियां पाई थीं एवं लगभग 80 लाख का भ्रष्टाचार पकड़ा था। उन्होंने आगे कहा कि एजेंसी से बच कर रहना चाहिए और सिर्फ अधिकारियों से ही संपर्क में रहना चाहिए क्योंकि कई बार एजेंसियों द्वारा नुकसान पहुचाया जा सकता है और अपीलार्थी पर दबाब बनाया जा सकता है।
   श्री प्रभु ने कहा कि निरीक्षण करने में पूरी कम्युनिटी के लोगों को आगे आना चाहिए और यह निरीक्षण मिलकर करना चाहिए फिर सबके साथ बैठकर जनसुनवाई के दौरान कमियों पर चर्चा कर कार्यवाही करना चाहिए। इस बीच उस विभाग से जुड़े किसी अधिकारी को भी जनसुनवाई में लेटर लिखकर बुलाना चाहिए।
   श्री प्रभु ने कहा कि निरीक्षण और सैंपलिंग एक काफी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमे सिस्टम में काफी सुधार किया जा सकता है। हॉस्पिटल में दवा का और कोटे अथवा स्टोर हाउस में अनाज का निरीक्षण और सैंपलिंग से काफी परिवर्तन देखने को मिल सकता है। इससे कालाबाजारी और भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है।

  95 प्रतिशत जानकारी धारा 4 के तहत आयोग करवाये सार्वजनिक 

    चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कई आवेदकों द्वारा प्रश्न किये गए कि आखिर धारा 4 के तहत जानकारी कैसे सार्वजनिक होती है और कैसे मिलती है क्योंकि कई बार पीआईओ द्वारा जानकारी साझा करने और उपलब्ध कराने में जानकारी की अधिकता की बातें सामने आती हैं। इसी विषय में मप्र सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के भी एक निर्णय का हवाला दिया जिसमें 75 प्रतिशत वर्क फ़ोर्स को ऐसे आरटीआई दस्तावेज कलेक्ट करने में न लगाए जाने की बात कही गयी थी और फिर उसी आदेश का हवाला देकर सभी लोक सूचना अधिकारी जानकारी देने से बच जाते हैं। इस पर श्री प्रभु का स्पष्ट कहना था कि वास्तव में देखा जाय तो मामले को सही ढंग से सुप्रीम कोर्ट में प्रजेंट न करने से ऐसी स्थिति बनी होगी।
  धारा 4(1)(a) एवं धारा 4(4) का पालन होना अनिवार्य

   भास्कर प्रभु द्वारा आगे कहा गया कि 95 प्रतिशत जानकारी धारा 4 की विभिन्न उपधाराओं के तहत स्वयमेव ही साझा होनी चाहिए और वह बिल्कुल ही आवश्यक नही की ऑनलाइन और वेबसाइट के माध्यम से ही हो। यह जानकारी लोकल स्तर पर हार्ड कॉपी के रूप में अथवा नोटिस बोर्ड में भी साझा होनी चाहिए।

   श्री प्रभु ने कहा कि धारा 4(1)(आई) में जानकारी को ऑर्गनाइज करने और कम्प्यूटरीकृत करने के स्पष्ट निर्देश हैं। लेकिन आयोग इस बात पर कोई एक्शन नहीं लेता की आखिर यह सभी विभाग जानकारी को आर्गनाइज्ड तरीके से क्यों नही रखते। यदि विभाग जानकारियां ऑर्गनाइज तरीके से रखेंगे तो निश्चित ही ज्यादातर जानकारी को रेडी टू यूज़ स्थिति में प्राप्त किया जा सकता है और वह जानकारी कोई भी कभी भी प्राप्त कर सकता है और इसमे लेबर भी नहीं लगेगा ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की 75 प्रतिशत वर्क फ़ोर्स की बात भी नही आएगी। इसी प्रकार धारा 4(4) का जिक्र करते हुए बताया गया कि इसमे पीआईओ और उस विभाग को सभी जानकारी नंबरिंग करते हुए क्रमवार और कैटलॉग के रूप में रखनी चाहिए जिससे जानकारी को ढूंढने अथवा संकलित करने में श्रम और धन का अपव्यय भी न हो और जानकारी भी अपीलार्थी को आसानी पूर्वक मिल जाय।
  महाराष्ट्र में सूचना आयुक्त श्री सारकुंडे ने 436 प्रकरणों में पीआईओ को करवाया दंडित 

   वेबिनार में चर्चा के दौरान लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों द्वारा जुर्माना राशि के न भरने की भी बात आई जिसमे भास्कर प्रभु द्वारा बताया गया कि महाराष्ट्र में सूचना आयुक्त श्री सारकुंडे द्वारा काफी सराहनीय कार्य किये गए हैं। श्री सारकुंडे ने कुल 436 मामलों में जुर्माने की कार्यवाहियां की हैं जिसमे कुल एक करोड़ 8 लाख रुपये का फाइन लगाया हुआ है। श्री सारकुंडे ने 49 मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही करवाई है, और लगभग 39 प्रकरणों में अपीलार्थी को सरकारी बाबुओं द्वारा 1 हजार से 5 हज़ार के बीच हर्जाना  भी भरवाया गया है।
  मप्र सूचना आयोग में पीआईओ/एफएओ समय पर नही भर रहे जुर्माना राशि

   मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा बताया गया कि सूचना के अधिकार को और अधिक मजबूत बनाने के लिए मप्र में अभी काफी कार्य किया जाना है और इस मामले को सामान्य प्रशासन विभाग को भी लिखा जा चुका है। बता दें कि सूचना आयुक्त श्री सिंह द्वारा मप्र में काफी ताबड़तोड़ कार्यवाहियां चल रही हैं लेकिन लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों द्वारा जुर्माने की राशि समय पर नही भरी जा रही हैं जिससे उनके विभाग प्रमुखों को इसके बारे में लगातार लिखा जा रहा है।  जब विभाग प्रमुख भी कंप्लायंस नही करवाते हैं तो डीएम कलेक्टर को कुर्की के लिए लिखा जाता है। 
   हालांकि इस मामले में उपस्थित सभी विशेषज्ञों द्वारा यह कहा गया कि इस पर सभी आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर सरकार पर दबाब बनाना चाहिए और कार्यवाही के लिए लिखना चाहिए।

   हम चाहते हैं द्वितीय अपील प्राप्त होने के तीन दिन के भीतर जारी करें नोटिस - मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह

   देश के कई सूचना आयोगो की ही तरह मप्र सूचना आयोग में भी पेंडेंसी एक बहुत बड़ा इशू बनकर सामने आया है। जानकारी के अनुसार आयोग में लगभग 7000 प्रकरण लंबित होने से नए मामलों पर कार्यवाही में देरी होना स्वाभाविक बात है। बताया गया कि औसतन 500 मामले हर महीने पंजीकृत किये जाते हैं। 
   हालांकि इस विषय को गंभीरता से लेते हुए मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा इंटर्न की अपील की गई है जिनका कार्य आयोग के कार्यों में सहयोग देना होगा। इंटर्न को सेवा समाप्ति पर उनके उत्कृष्ट सहयोग के लिए सर्टिफिकेट भी वितरित की जाएगी।
   इस बीच श्री सिंह ने कहा कि पेंडेंसी कम होने पर हम चाहते हैं कि अपीलार्थी को न्याय के लिए ज्यादा समय तक इन्तेजार न करना पड़े और द्वितीय अपील प्रस्तुति के तीन दिन के भीतर ही संबधित लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी कर दी जाय और मामले की प्रोसीडिंग प्रारंभ कर दी जाय।
   इस प्रकार वेबीनार कार्यक्रम लगभग 2 घण्टे तक चला जिसमे एक्टिविस्टों ने उपस्थित विशेषज्ञों से अपने अपने प्रश्नों से संदेहों को दूर किया। वेबीनार मीटिंग हर रविवार सुबह 11 बजे से 01 बजे तक आयोजित की जाती है। 


संलग्न - कृपया संलग्न कार्यक्रम की फ़ोटो देखने का कष्ट करें।

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शिवानन्द द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, जिला रीवा मप्र। मोबाइल 9589152587

Sunday, June 21, 2020

(Rewa/Bhopal, MP) " Big Breaking- आरटीआई में प्रश्न सूचक शब्द, किन बातों का रखें खयाल" पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आयोजित (मप्र राज्य सूचना आयुक्त द्वारा दूसरी जूम मीटिंग में दिया गया कई प्रश्न का जबाब, पार्टिसिपेंट्स में दिखा भारी उत्साह, हर रविवार को सुबह 11 से 12 बजे के बीच आयोजित की जा रही ज़ूम मीटिंग, लगभग 100 पार्टिसिपेंट्स रहे सम्मिलित)

दिनाँक 21 जून 2020, स्थान - रीवा/भोपाल मप्र
     सूचना के अधिकार के क्षेत्र में क्रांति आना तय है क्योंकि आपको बता दें की इस समय मप्र राज्य सूचना आयोग में एक ऐसे सूचना आयुक्त पदस्थ हैं जिन्होंने आरटीआई को जन जन तक पहुचाने और उसके अवेयरनेस और जागरूकता का वीणा उठा रखा है. शायद ही भारत के सूचना आयोग के इतिहास में आज तक ऐसा कभी हुआ हो जब एक पदासीन सूचना आयुक्त जन जन तक पहुचने का प्रयास कर रहा हो. यह प्रयास जहां सेमिनार और वर्कशॉप के माध्यम से हो रहा था वहीं कोरोना लॉक डाउन के चलते यह अब हाई टेक हो चुका है. जी हाँ आपको कुछ नही चाहिए बस एक एंड्राइड मोबाइल चाहिए जो एक विशेष ज़ूम क्लाउड मीटिंग एप्प सपोर्ट करता हो और बस सोचना क्या हर रविवार सुबह 11 से 12 बजे के बीच में छुट्टी के दिनों में अपने घर से ही जुड़ जाईये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में और पूँछिये वह सब सवाल जो अब तक आपके जेहन में उठ रहे थे लेकिन एक्सपर्ट एडवाइस की कमी के कारण आप उसे पूंछ नही पा रहे थे.

   यह सब संभव हो पा रहा है मप्र में और सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह आपको आपके आरटीआई से जुड़े प्रश्नों के जबाब दे रहे हैं. तो यदि आप पिछली मीटिंग नही अटेंड कर पाए तो कोई समस्या नही और जुड़ जाईये अगली मीटिंग में.

   रविवार 21 जून को विषय रहा आरटीआई में प्रश्न सूचक शब्द कैसे करें आवेदन और  किन बातों का रखें खयाल
     जहां पिछले रविवार को आरटीआई से जुड़े बेसिक मुद्दों पर चर्चना हुई थी वहीं 21 जून को आरटीआई में प्रश्न सूचक शब्दों के इस्तेमाल और कैसे इनसे बचा जाय और कहां इन्हें लगाना आवश्यक है उन विषयों पर चर्चा हुई.

     ज़ूम मीटिंग के दौरान लगभग 100 के आसपास पार्टिसिपेंट्स मौजूद रहे जिन्होंने अपने अपने प्रश्न रखे. 

  यहां यहां से यह यह लोग हुए सम्मिलित

   अमूमन ज़ूम मीटिंग के माध्यम से होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में पूरे विश्व के कहीं से भी लोग जुड़ सकते हैं. पर फिर भी चूंकि मामला मप्र से संबंधित है तो जहां ज्यादातर लोग मप्र से जुड़े हुए रहते हैं वहीं लगभग 20 से 25 प्रतिशत तक लोग अन्य राज्यों जैसे झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तरांचल, ओडिशा,  विहार आदि प्रदेशों से जुड़े हुए थे. 

   मुख्य रूप से जिन लोगों ने प्रश्न पूँछे वह सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, बीके माला, मदन गोपाल तिवारी, सुरेश उपाध्याय, सत्येंद्र शिकरवार, भोपाल से गोविंद देशवाही, इंदौर से अंकुर मिश्रा, राजस्थान से आरके मीणा, भोपाल से प्रदीप उपाध्याय, रीवा से स्वतंत्र शुक्ला आदि सम्मिलित रहे.
    जस्टिस बोवड़े के 2008 के बॉम्बे हाइकोर्ट के निर्णय से हुई सुरुआत

   इस बीच ज़ूम मीटिंग की सुरुआत करते हुए मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने जस्टिस बोवड़े के 2008 के बॉम्बे हाइकोर्ट के एक फैसले पिंटो बनाम महाराष्ट्र सूचना आयोग का हवाला दिया जिंसमे बताया गया की इस निर्णय में जस्टिस बोवड़े द्वारा पूरे मामले की समीक्षा करते हुए आरटीआई दायर करने में प्रश्न सूचक शब्दों के इस्तेमाल के विषय में रोक सी लगा दी थी जो की अपीलार्थी के विरुद्ध निर्णय साबित हुआ था. वास्तव में हुआ यूं था की महाराष्ट सूचना आयोग ने जहां अपने आदेश में श्री पिंटो को जानकारी मुहैया कराए जाने के लिए आदेशित किया था वहीं लोक सूचना अधिकारी द्वारा यह कहकर बॉम्बे हाइकोर्ट में अपील की गयी की जो जानकारी आपिलार्थी द्वारा चाही गयी है उसमे कई प्रश्न सूचक शब्द हैं इसलिए हायपोथेटिकल ग्राउंड पर ऐसी जानकारी पीआईओ के पास उपलब्ध नही है. जिस पर जस्टिस बोवड़े ने पीआईओ का पक्ष लेते हुए अपीलार्थी के विरुद्ध निर्णय दिया था. इसके बाद से आरटीआई दायर करते समय इन बातों का विशेष खयाल रखा जाने लगा की प्रश्न सूचक शब्द और मार्क न हों. 
   मात्र हाइपोथेटिकल प्रश्न न पूँछें बांकी प्रश्न में कोई परेशानी नही - सूचना आयुक्त राहुल सिंह

    ज़ूम मीटिंग के दौरान मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कई उदाहरणों से समझाने का प्रयास किया की आरटीआई दायर करते समय हाइपोथेटिकल प्रश्न नही पूँछे जाने चाहिए जैसे अमुक योजना कब संचालित होगा? अमुक कार्य कब होगा फला फला क्योंकि यह हाइपोथेटिकल प्रश्न होते हैं क्योंकि ऐसे प्रश्नों के जबाब लोक सूचना अधिकारी के पास जरूरी नही की हों. अतः इस प्रकार के हाइपोथेटिकल प्रश्नों से बचना चाहिए. लेकिन जहां तक संख्या वाचक प्रश्न हैं और जो संख्या से जुड़े हुए हैं जैसे किन किन लोगों के ऊपर फला कार्यवाही हुई? किस किस अधिकारी फला कार्य में अथवा फला दोष में संलिप्त है? यदि किन्ही योजना विशेष का लाभ किसी हितग्राही को मिला है तो वह किन किन हितग्राहियों को मिला है आदि यह प्रश्न हाइपोथेटिकल प्रश्न नही हैं और यह सूची अथवा जानकारी किसी संबंधित विभाग में रहनी चाहिए जो पीआईओ का कर्तव्य होता है की वह आरटीआइ की धारा 5(3) के तहत भी अपीलार्थी के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए उसका सहयोग करे और जानकारी देवे. 
  सतना में खनिज विभाग के मामले में लगाया एक लाख रुपये का भारी भरकम जुर्माना

  इस बीच प्रश्न वाचक शब्दों के विषय में जिक्र करते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा बताया गया की अभी हाल ही के एक निर्णय में सतना जिले से किसी अपीलार्थी द्वारा कुछ जानकारी लगभग 2 वर्ष पूर्व सतना जिले के खनिज विभाग से चाही गयी थी लेकिन खनिज विभाग द्वारा वह जानकारी आवेदक को उपलब्ध नही कराई गयी थी. जिसके चलते मामले की द्वितीय अपील मप्र राज्य सूचना आयोग में पेंडिंग पड़ी हुई थी. जिस पर अभी हाल ही में आयुक्त द्वारा निर्णय पारित किया गया और कुल 4 आरटीआई के इन मामलों में अधिकतम 25 हजार रुपये के हिसाब से कुल एक लाख रुपये की फाइन लोक सूचना अधिकारी दीपमाला तिवारी को लगा दी गयी. 

   इस मामले में आयुक्त द्वारा बताया गया की यद्यपि अपीलार्थी द्वारा कुछ प्रश्न सूचक शब्दों का प्रयोग किया गया था लेकिन यह शब्द हाइपोथेटिकल नही होने से अपील स्वीकार की गयी. इसलिए आवेदक को हर भरसक प्रयास करना चाहिए की वह प्रश्न सूचक शब्दों से बचें और साथ में हाइपोथेटिकल किश्म के प्रश्न सूचक शब्द तो बिल्कुल ही न पूँछे अन्यथा अपील ख़रीजी किये जाने के चांस बने रहते हैं.
    इन इन पार्टिसिपेंट्स ने पूँछे यह सवाल 

    जूम मीटिंग रविवार सुबह 11 बजे से प्रारम्भ होकर 12:30 बजे दोपहर तक चलती रही. यद्यपि समय 1 घंटे का ही सुनिश्चित किया गया था लेकिन मीटिंग डेढ़ घंटे चली. लोगों की उत्सुकता को देखते हुए मीटिंग का समय बढ़ाये जाने का विचार भी किया जा रहा है.

  प्रबल प्रजापति शहडोल से आल आउट की संख्यात्मक जानकारी मागी 
  
 वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में सुरुआत के प्रश्न में प्रबल प्रजापति शहडोल से रहे जिन्होंने बताया की वह रेलवे में नौकरी करते हैं और उन्होंने रेलवे विभाग में ही आरटीआई दायर कर आलआउट की संख्या के विषय में जानकारी चाही थी जिस पर लोक सूचना अधिकारी द्वारा उन्होंने प्रश्न वाचक शब्द होने के चलते घुमा दिया और जानकारी देने से मना कर दिया. इस पर आयुक्त राहुल सिंह द्वारा कहा गया की वह इसकी अपील करें. क्योंकि संख्यात्मक प्रश्न तो पूँछे जाएंगे और मात्र हाइपोथेटिकल प्रश्नों से आवेदकों को बचना चाहिए.
सुरेंद्र तिवारी रिपोर्टर ने अधिकारी के टूर डायरी की जानकारी मागी

   रीवा से पत्रकार सुरेंद्र तिवारी ने एक अधिकारी के आफिस टूर डायरी की जानकारी मागी इस पर विभाग ने उन्हें टूर डायरी देने से मना कर दिया और बोला की टूर डायरी की जानकारी संधारित्र नही रहती. इस पर सूचना आयुक्त श्री सिंह ने जबाब दिया की किसी अधिकारी की सरकारी टूर डायरी संधारित्र होनी चाहिए और वह जानकारी पब्लिक डोमेन में आनी चाहिए. यह जानकारी देने योग्य होती है और दी जानी चाहिए. जानकारी यदि नही दी गयी तो अपीलार्थी को अपील करनी चाहिए.

  कृष्ण प्रताप सिंह इंदौर ने मागा 4 वर्ष की जानकारी

  इंदौर से ज़ूम मीटिंग में सम्मिलित हुए कृष्ण प्रताप सिंह ने कहा की उन्होंने एक विभाग में आरटीआई दायर की थी और जानकारी चाही थी इस पर उस विभाग द्वारा कहा गया की चूंकि जानकारी 3 या 4 वर्ष की है और वृहद है इसलिए आवेदक को जानकारी नही दी जा सकती. इस पर आयुक्त श्री सिंह ने जबाब दिया की यदि जानकारी उजागर होने से भ्रष्ट्राचार की पुष्टि होती है तो जानकारी देने योग्य है. यदि लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी नही दी तो अपीलार्थी को उसकी अपील करनी चाहिए.
  गिरीश रामचंद्र का प्रकरण - सरकारी कार्य प्रभावित होने सम्बन्धी तर्क

   इस बीच सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने गिरीश रामचंद्र के एक प्रकरण का हवाला दिया और बताया की इस मामले में कोर्ट ने यह तर्क दिया था की यदि 75 प्रतिशत से अधिक वर्कफोर्स आरटीआई की जानकारी बनाने के लिए लगा दिया जाता है तो इससे सरकारी कार्य प्रभावित होते हैं. अतः जानकारी इस प्रकार मागी जानी चाहिए जिससे सरकारी कार्य लोकसेवा के कार्य प्रभावित न हों और आवेदक को जानकारी भी मिल जाए. लेकिन फिर भी श्री सिंह ने बताया की यदि जानकारी से किसी भ्रष्ट्राचार की पुष्टि होती है इस परिस्थिति में चाहे जानकारी कितनी भी बड़ी क्यों न हो लोकहित में वह दी जानी चाहिए.

 मदन गोपाल तिवारी की संबल योजना के एक हितग्राही की जानकारी बताई व्यक्तिगत

   भोपाल से मदन गोपाल तिवारी ने बताया की उन्होंने एक मृतक हितग्राही को मिलने वाले संबल योजना ले लाभ के विषय में जानकारी चाही थी जिस पर विभाग ने बताया की वह जानकारी नही दे सकते क्योंकि यह थर्ड पार्टी से संबंधित है. इस पर आयोग ने कहा की यदि धारा 8(1)(जे) का उल्लंघन हो रहा है और जानकारी थर्ड पार्टी से संबंधित है भी तो यह बात विभाग के पीआईओ को 10 दिवस के भीतर हितग्राही को सूचित किया जाना चाहिए. पर सरकारी योजना से संबंधित कोई भी जानकारी किसी की व्यक्तिगत जानकारी नही होनी चाहिए क्योंकि यह योजना विशेष की जानकारी है जो पब्लिक डोमेन में साझा की जानी चाहिए.
   भिंड से सत्येंद्र सिंह शिकरवार ने पूंछा की बीपीएल कार्डधारक को अधिकतम कितने पेज की जानकारी फ्री ऑफ कॉस्ट मिलनी चाहिए इस पर आयुक्त श्री सिंह ने बताया की इसकी सीमा 50 पेज की है लेकिन यदि जानकारी 30 दिन के भीतर उपलब्ध नही कराई गयी है तो सम्पूर्ण जानकारी फ्री ऑफ कॉस्ट दी जानी चाहिए.

  जिला शिक्षा अधिकारी रीवा के एक मामले में प्रश्न करने हुए सामाजिक कार्यकर्ता बीके माला ने कहा की एक जानकारी 20 हजार रुपये बताकर विभाग ने आवेदक को गुमराह किया इस पर आयुक्त श्री सिंह ने कहा की आवेदक को पुनः एक पत्र लिखकर पीआईओ को दस्तावेजों के अवलोकन के लिए लिखना चाहिए और जाकर देखना चाहिए की जो जानकारी आवेदक के लिए आवश्यक हो वही जानकारी आवेदक प्राप्त करे. इस मामले में भी आवेदकों को अपील करनी चाहिए.

  अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने रीवा पुलिश अधिकारियों के विरुद्ध चल रहे प्रकरणों की मागी थी जानकारी

  इस बीच रीवा से हाइकोर्ट जबलपुर में अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता नित्यानंद मिश्रा ने बताया की उन्होंने आरटीआइ दायर कर एसपी आफिस से जानकारी चाही थी की ऐसे कौन कौन से अधिकारी हैं जिनके विरुद्ध लोकायुक्त, मानवाधिकार आदि द्वारा जांच चल रही है और कार्यवाही की क्या अद्यतन स्थिति है इस पर एसपी आफिस द्वारा प्रशवचक शब्द बोलकर जानकारी देने से मना कर दिया गया जिसके विषय में आयुक्त श्री सिंह द्वारा कहा गया की यह यद्यपि प्रश्न सूचक शब्द है लेकिन यहहाइपोथेटिकल नही है बल्कि स्पष्ट है इसलिए एसपी आफिस से यह जानकारी दी जानी चाहिए. क्योंकि "किन किन अधिकारी" यह वाक्य संख्यात्मक और स्पष्ट है इसलिए इसमे जानकारी छुपाए जाने का सवाल ही नही उठता और आवेदक को इसकी अपील करनी चाहिए.
  गोविंद देशवाही भोपाल ने न्यायालयीन प्रकरणों की मागी जानकारी

  इस बीच गोविंद देशवाही ने बताया की उन्होंने पुलिश द्वारा पंजीबद्ध किये गए अपराधों के विषय में और न्यायालयीन प्रकरणों की जानकारी चाही थी लेकिन पुलिश विभाग ने वह जानकारी देने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह विवेचना और जांच को प्रभावित कर सकता था. इस पर आयूक्त ने एक बार फिर सतना के एक पत्रकार के मामले का हवाला देकर बताया की यह सही है की कुछ मामलों में जांच और विवेचना प्रभावित हो सकती है लेकिन यदि प्रकरण न्यायालय में पहुंच चुका है और चलानी कार्यवाही हो चुकी है तब वह जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही यदि किसी जानकारी को पुलिश यह कहती है की विवेचना प्रभावित कर सकती है तो पुलिश को आयोग के समक्ष उपस्थित होकर यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह कैसे जांच प्रभावित करेगी. आयुक्त श्री सिंह ने 8(1)(एच) एवं 8(1)(जे) का जिक्र किया लेकिन बताया की यह पीआईओ द्वारा स्पष्ट करना चाहिए.

इंदौर से अंकुर मिश्रा ने एक ट्रस्ट के बिजली कनेक्शन से जुड़े दस्तावेजों की जानकारी चाही तो विभाग ने बताया की यह काफी पुरानी है और जानकारी नही दी. अंकुर मिश्रा ने यह भी कहा की यद्यपि वह ट्रस्ट आरटीआई के दायरे में आना चाहिए क्योंकि ट्रस्ट सरकार द्वारा दान दी गयी भूमि पर बना है. बता दें कि यदि किसी एनजीओ अथवा ट्रस्ट पर एक वर्ष के भीतर 50 रुपये और उससे अधिक इन्वेस्ट हुआ है तो वह आरटीआइ के दायरे में आता है। इस पर आयुक्त ने बताया की बिजली बिल सम्बन्धी दस्तावेज साझा करने में कोई आपत्ति नही होनी चाहिए क्योंकि यह कोई प्राइवेट दस्तावेज नही है.

  आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर एक बार फिर सवाल

    इस बीच सबसे महत्वपूर्ण बात जो सामने अयी वह आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं की सुरक्षा से संबंधित थी जिस पर राजस्थान से आरटीआई कार्यकर्ता आरके मीणा ने पूंछा की आरटीआई लगाने वाले और अपनी जान को जोखिम में डालकर समाज और सरकार के भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध लड़ने वाले कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के विषय में सरकार की क्या मंशा और नियमावली है. इस पर आयुक्त राहुल सिंह द्वारा मप्र और रीवा के आरटीआइ एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी का हवाला देकर बताया गया की अभी हाल ही में उनके ऊपर भी इस प्रकार से एक हमला किया गया था जिस पर आयोग ने 20 मार्च 2020 की रीवा में आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान अधिकारियों को बड़े ही स्पष्ट तौर पर आदेशित किया था की यदि आरटीआइ से जुड़ा कोई मामला है अथवा कोई जांच है वहां आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होती है. इस पर श्री सिंह ने 2013 के होम मिनिस्ट्री के एक सर्कुलर का भी हवाला दिया था और विभागों को आगाह किया था.
 क्या पीएम केअर फण्ड आरटीआई के दायरे में आना चाहिए

  इस बीच कुछ पार्टिसिपेंट्स ने पीएम केअर फण्ड को आरटीआई के दायरे में लाये जाने की बात कही और आयुक्त श्री सिंह से जानकारी और उनका मंतव्य जानना चाहा तो श्री सिंह ने बताया की जहां तक व्यक्तिगत तौर पर और देश के नागरिक होने के नाते उनका मानना है की कोई भी एजेंसी जो की पब्लिक फण्ड अथवा कंपनियों के द्वारा पोषित हुई है अथवा जनता का पैसा उसमे इन्वेस्ट किया गया है अथवा डोनेट किया गया है वह समस्त फण्ड आरटीआई के दायरे में आने चाहिए क्योंकि जनता को उसके दिए गए पैसे को जानने का पूरा अधिकार है अतः वही बात हर फण्ड पर लागू होती है. 
कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रचार प्रसार

   इस ऐतिहासिक पहल जिसमे मोबाइल एप्प के माध्यम से ज़ूम मीटिंग आयोजित की जा रही है इसका संयोजन और समन्वयन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा किया गया जबकि प्रचार प्रसार और  मीडिया का प्रभार का दायित्व देवी अहिल्या के मास्टर ऑफ जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन के छात्र स्वतंत्र शुक्ला द्वारा पूरा किया गया.
संलग्न - कृपया ज़ूम मीटिंग के दौरान उपस्थित सदस्यों आदि की स्क्रीनशॉट फ़ोटो देखने का कष्ट करें.

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शिवानन्द द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Thursday, January 16, 2020

(MP ब्रेकिंग) आरटीआई की धारा 4 की शक्तियों से होती है जानकारी सार्वजनिक (जानिए कैसे आरटीआई के एक मामले में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने दिया सम्पूर्ण मप्र की 1148 पंचायतों में कराधान योजना के कार्यों को सार्वजनिक करने का आदेश)

दिनांक 16 जनवरी 2020, स्थान - रीवा/भोपाल मप्र

   सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 अब तक का सबसे सशक्त माध्यम रहा है जिसमे आम से आम नागरिक को वह सभी सरकारी अथवा चिन्हित जानकारी मिल सकती है जो इसके पहले खास लोगों अथवा सरकार या अधिकारियों तक ही सीमित रहती थी.

   लेकिन क्या यह आपको पता है की काफी कुछ जानकारियां आज जो आप इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के दौर पर वेबसाइटों और नेट के माध्यम से देख लेते हैं और जनसामान्य की एक क्लिक की पहुंच पर उपलब्ध है वह आपको कैसे इतनी आसानी से मिलती है? जी हां यदि नही जानते तो आपको बताते चलें की सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 और उसकी विभिन उपधाराओं के तहत स्वतः ही लोक प्राधिकारियों की यह बाध्यताएं होती हैं की वह जनहित की समस्त जानकारियां सार्वजनिक करें और समय समय पर उसे अद्यतन करते रहें जो गुप्त बात अधिनियंम के अन्तर्गत न आती हो.
    आर टी आई की धारा 4 - लोक प्राधिकारियों की बाध्यताएं

   सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 एवं इसकी विभिन्न उपधाराओं 4(1), 4(2),4(3),4(4) एवं 4(1)(क), 4(1)(ख), 4(1)(ग), 4(1)(घ)  एवं 4(1)(ख) की उपधाराओं की उपधाराओं (i) से (xvii) तक में जनहित से संबंधित सूचना साझा करने विषयक प्रत्येक लोक प्राधिकारी का अनिवार्य दायित्व बताया गया है जिसके तहत धारा 4(2) में प्रत्येक लोक प्राधिकारी का निरंतर यह प्रयाश रहेगा की वह उपधारा  4(1) के खंड (ख) की अपेक्षाओं के अनुसार स्वप्रेरणा से जनता को नियमित अंतरालों पर संसूचना के विभिन्न साधनो के माध्यम से जिनके अन्तर्गत इंटरनेट भी है इतनी अधिक सूचना उपलब्ध कराने के लिए उपाय करे जिससे की जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए इस अधिनियम का कम से कम उपयोग करना पड़े. इसी प्रकार धारा 4 की उपधारा 4(3) कहती है की उपधारा 4(1) के प्रयोजन के लिए प्रत्येक सूचना को विस्तृत रूप से और ऐसे प्रारूप और रीति में प्रसारित किया जाएगा जो जनता के लिए सहज रूप से पहुंच योग्य हो. ऐसे ही उपधारा 4(1) के (ख) में कहा गया की इस आर टी आई अधिनियम के अधिनियमन के 120 दिन के भीतर उपधाराओं 4(1)(ख) की उपधाराओं (i) से (xvii) तक समस्त चिन्हित सूचना को प्रकाशित करेगा एवं इस सूचना को अद्यतन करेगा.
    अतः देखा जा सकता है की आर टी आई अधिनियम वास्तव में इतना शसक्त है की इसमे लगभग वह समस्त जानकारी मिल जाती है जो गुप्त बात अधिनियम के अन्तर्गत न आती हो और वह भी काफी सहज और सुलभ प्रारूप में लोक प्राधिकारियों को उपलब्ध कराए जाने की बात कही गयी है. 
    वास्तव में धारा 4 और उसकी उपधाराओं के तहत ज्यादातर जानकारी सार्वजनिक करने की बात आती है.
  शिवानन्द द्विवेदी बनाम मप्र शासन - कराधान मामला 

   अब आते हैं उस मामले में जिसने मप्र में वर्तमान में काफी हलचल मचा रखी है. यह मामला है करारोपण और कराधान का. गंगेव ब्लॉक रीवा से प्रारम्भ होकर पूरे मप्र की 1148 पंचायतों में लगभग 300 करोड़ रुपये से अधिक के इस घोटाले में काफी परतें खुलती नजर आ रही हैं.

  आइए नजर डालते हैं मप्र राज्य सूचना आयुक्त के दिनांक 23 दिसंबर 2019 की एक सुनवाई के मामले पर जिसमे कई लोक सूचना अधिकारियों की पेशी हुईं वहीं कुछ को जुर्माना भी लग चुका है.
  राज्य सूचना आयुक्त  श्री राहुल सिंह ने लगाया जुर्माना जारी किया एससीएन 

   मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने एक शिकायत नंबर सी-0820/आईसी-7/रीवा/2019 के निराकरण में शिवानन्द द्विवेदी बनाम लोक सूचना अधिकारी कलेक्टर रीवा, लोक सूचना अधिकारी सीईओ जिला पंचायत रीवा एवं लोक सूचना अधिकारी जनपद रीवा के केस में जहां पीआईओ गंगेव बालेन्द्र पांडेय को 5 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया वहीं तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी कलेक्टर रीवा श्रीमती माला त्रिपाठी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सीईओ जिला पंचायत रीवा राजेश शुक्ला को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
  
   
सूचना आयुक्त  श्री राहुल सिंह ने लिखा पंचायत एसीएस मनोज श्रीवास्तव को

    एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी द्वारा उठाये गए प्रकरण जिसमे मप्र की 1148 पंचायतों की कराधान घोटाले की जांच की माग की गयी थी इस परिपेक्ष में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की अपीलकर्ता द्वारा इस प्रकरण में मध्यप्रदेश स्तर पर समस्त पंचायतों में कराधान घोटाले की जांच की माग की गयी है. इस प्रकरण में कार्यवाई के लिए राज्य सूचना आयोग उपयुक्त फोरम नही है. सूचना आयुक्त द्वारा आगे कहा गया कि अपीलकर्ता उपयुक्त फोरम पर संपर्क करके भ्रष्टाचार के इस प्रकरण में कार्यवाई की माग कर सकते हैं जिसके बाबत सूचना आयुक्त ने पत्र को अग्रिम कार्यवाही की अनुसंशा के साथ पंचायत एवं ग्रामीण विकाश विभाग बल्लभ भवन मंत्रालय में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज श्रीवास्तव को कार्यवाही के लिए लिखा है.
  कराधान घोटाला में धारा 4 के तहत जानकारी करो सार्वजनिक

   इसी बीच पंचायत दर्पण एवं पंचायत विभाग की वेबसाइट में सूचना सार्वजनिक किये जाने की एक्टिविस्ट की माग को लेकर अपने कार्यक्षेत्र के अदेश में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए पंचायत विभाग को आरटीआई की धारा 4(1)(ख)(11) एवं 4(1)(ख)(14), 4(2), 4(4) के तहत कराधान एवं स्वकरारोपण की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए आदेशित किया है जिसके विषय में पंचायत विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज श्रीवास्तव को निर्देशित किया है एवं साथ ही संचालक पंचायतराज संचालनालय अरेरा हिल्स भोपाल की निदेशिका श्रीमती उर्मिला शुक्ला को भी पत्र की प्रतियां फारवर्ड किया गया है.
 
  इस प्रकार देखा जा सकता है की आरिटीआई आज आम जनता का सबसे शसक्त लोकतांत्रिक हथियार है जिसके तहत काफी महत्वपूर्ण जानकारी जनमानस तक आसानी से पहुचकर समस्त सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाई जा सकती है. आज आवश्यकता है इसके प्रति जागरूक रहने और इसके सही उपयोग की.
संलग्न - कृपया संलग्न राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह का कराधान घोटाले के आदेश पीडीएफ फ़ाइल की प्रति देखने का कष्ट करें।

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Tuesday, January 14, 2020

(MP breaking) आरटीआई लाइव - लगातार जुर्मानों के बाद भी नही चेत रहे अधिकारी, मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा लगातार हो रही कार्यवाहियों से प्रदेश में मचा है हड़कम्प, लोग पूंछ रहे अबकी बार किसकी बारी

दिनांक 14 जनवरी 2020, स्थान - रीवा मप्र

  👉 डीएफओ सतना राजीव मिश्रा पर लगा 10 हज़ार रुपये का जुर्माना।

  👉 तत्कालीन त्योंथर तहसीलदार जितेंद्र तिवारी पर लगा 7 हज़ार 500 रुपये का जुर्माना।

  👉 तत्कालीन तहसीलदार त्योंथर एवं वर्तमान में टीकमगढ़ में पदस्थ महेंद्र गुप्ता को कारण बताओ नोटिस, 21 जनवरी को भोपाल में होगी पेशी।

  👉 सचिव पंचायत भोलगढ़ संजय मिश्रा पर लगा 10 हज़ार रुपये का जुर्माना।
     आरटीआई नियमों की अवहेलना करने के चलते मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा कार्यवाहियां की जा रही हैं जिसमे लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों के ऊपर जुर्मानों के साथ अनुशासनात्मक कार्यवाहियां भी की जा रही हैं लेकिन संभाग के लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकिरियों की कार्यशैली अभी भी पूर्ववत ही बनी हुई है। 

   तीन अलग अलग प्रकरणों में लगाया गया जुर्माना
   
     अभी हाल ही में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा तीन अलग अलग प्रकरणों में जुर्माना लगाया गया है। एक प्रकरण सतना जिले में वन विभाग से सम्बंधित है जिसमे अपीलार्थी रामस्वरूप पटेल बनाम लोक सूचना अधिकारी वन मंडल सतना के एक मामले ए-2352/सतना/2018 में दिनांक 09/01/2020 को फैसला देते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी एवं डीएफओ सतना राजीव मिश्रा द्वारा अपीलार्थी के आरटीआई प्रकरण दिनाँक 26/12/2017 में असद्भावनापूर्वक, असहयोग करते हुए बिना किसी उचित एवं पर्याप्त कारण के जानकारी छुपाने का प्रयास किया गया एवं सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रति घोर लापरवाही का रवैया अख्तियार किया गया जिसके चलते डीएफओ राजीव मिश्रा के ऊपर आरटीआई की धारा 20(1) के तहत 10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है।
   दूसरा प्रकरण: ददन तिवारी बनाम त्योंथर राजस्व विभाग त्योंथर

   ऐसे ही दूसरे अपीलीय मामले ए-4788/रीवा/2017 में भी सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माने और शो कॉज नोटिस की कार्यवाही की गई है। यह मामला नक्सा तरमीन की राजस्व विभाग की सामान्य सी कार्यवाही का है जिसे पटवारी, आरआई और तहसीलदार कैसे अत्यधिक पेचीदा बनाकर अपीलार्थी और पीड़ितों की प्रताड़ित कर सकते हैं उसके विषय मे यह प्रकरण प्रकाश डालता है। 

    ददन तिवारी निवासी तहसील त्योंथर द्वारा राजस्व विभाग त्योंथर के समक्ष कुछ नक्सा तरमीन सम्बंधित जानकारी आरटीआई दाखिल कर चाही गयी थी जिसे तहसीलदार द्वारा छुपाने का प्रयास किया गया। इस पर कई सुनवाइयों के बाद और कई कारण बताओ नोटिसें जारी करने के बाद अभी हाल ही में 06/01/2020 को हुई सुनवाई में तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी एवं तहसीलदार महेंद्र गुप्ता को दोषी पाया गया जिन्होंने 3/5/17 को त्योंथर में पदस्थ रहते हुए जानकारी समय सीमा पर नही दी और धारा 7(1) का उल्लंघन किया तथा अपने दायित्यों के प्रति घोर लापरवाही बरती। जिसके कारण वर्तमान टीकमगढ़ में पदस्थ तहसीलदार महेंद्र गुप्ता को धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 21/01/2020 को व्यक्तिगत तौर पर सूचना भवन भोपाल में उपस्थित होने के आदेश दिए हैं। 

     वहीं इसी मामले में तत्कालीन तहसीलदार और पीआईओ जितेंद्र तिवारी को अपीलार्थी के आरटीआई आवेदन दिनाँक 3/5/2017 पर जानकारी न देने, अपीलार्थी के साथ असद्भावपूर्वक, जानबूझकर और बिना किसी उचित और पर्याप्त कारण के जानकारी छुपाने के चलते एवं सूचना के अधिकार के प्रति घोर लापरवाही बरतने और पदीय दायित्यों का निर्वहन न करने सहित अन्य कारणों के चलते धारा 20(1) के तहत रुपये 7 हज़ार 500 का जुर्माना लगाया गया है।  
     
  तीसरा मामला : ज्ञानेंद्र गौतम बनाम भोलगढ़ पंचायत रीवा

    तीसरा प्रकरण भोलगढ़ पंचायत जनपद पंचायत रीवा से सम्बंधित है जिसमे भोलगढ़ निवासी ज्ञानेंद्र गौतम द्वारा 2014-15 से 2018 तक कि स्वच्छ भारत और शौचालय निर्माण सम्बन्धी जानकारी लोक सूचना कार्यालय ग्राम पंचायत भोलगढ़ में दिनांक 26/09/2018 को आरटीआई फ़ाइल करके चाही गयी थी तब जानकारी न मिलने पर अपीलकर्ता द्वारा प्रथम अपील 11/01/2019 एवं द्वितीय अपील दिनांक 25/05/2019 को की गई थी। मप्र राज्य सूचना आयुक्त की 28/08/2019 को रीवा में हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में घोर लापरवाही बरतते हुए न तो लोक सूचना अधिकारी और न ही प्रथम अपीलीय अधिकारी मौजूद थे। इसके बाद कारण बताओ नोटिस की सुनवाई 23/12/2019 को सूचना आयोग भोपाल में रखी गयी थी जिसमे पीआईओ उपस्थित नहीं थे। 

     दिनाँक 23/12/2019 की सूचना भवन में हुई सुनवाई में मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने लोक सूचना अधिकारी संजय मिश्रा सचिव ग्राम पंचायत भोलगढ़ जनपद पंचायत रीवा को अपीलार्थी के आरटीआई आवेदन दिनांक 26/09/2018 पर कार्यवाही न करने, असद्भावपूर्वक, जानबूझकर एवं बिना किसी पर्याप्त और उचित कारणों के जानकारी छुपाने के चलते आरटीआई के नियम प्रावधानों के विरुद्ध व्यवहार करने के चलते धारा 20(1) के तहत प्रतिदिन के हिसाब से 250 रुपये का जुर्माना और अधिकतम 10 हज़ार रुपये का जुर्माना अधिरोपित किया। 
    सभी जुर्माना राशि समयसीमा में आयोग में जमा करो
    
     उक्त तीनों प्रकरणों में जुर्माने की राशि समयसीमा में डीडी अथवा अन्य उचित माध्यमो से सूचना आयोग के समक्ष भोपाल में जमा करने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। आगे आदेशित किया गया कि यदि जुर्माने की राशि समयसीमा में जमा नहीं की जाती तो आयोग द्वारा मप्र सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 (अपील एवं फीस) की धारा 8(6) के प्रावधानों के तहत कार्यवाही की जाएगी।
   
    जुर्माने रुक नहीं रहे, आदतें सुधर नहीं रहीं

     मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के उल्लंघन को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है जिसके चलते लोक सूचना अधिकारियों और सम्बंधित विभागों में हड़कम्प मचा हुआ है। जहां वर्तमान सूचना आयुक्त की पदस्थापना के पूर्व मप्र में आरटीआई की स्थिति काफी उदासीन थी वहीं वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है जैसे हर जगह सूचना के अधिकार की ही चर्चाएं हो रही हैं। इसके बाबजूद भी कर्मचारी और अधिकारी सूचना के अधिकार की अवहेलना में रत हैं। 

     अब देखना यह होगा कि क्या सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह की सख्ती मप्र में आरटीआई को मजबूत बना पाएगी।

  संलग्न - कृपया संलग्न पेज में देखें मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा ट्वीट कर दी गयी जानकारी एवं साथ ही आदेश की प्रतियां।

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शिवानन्द द्विवेदी
(सोशल एंड ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट)
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