Sunday, June 21, 2020

(Rewa/Bhopal, MP) " Big Breaking- आरटीआई में प्रश्न सूचक शब्द, किन बातों का रखें खयाल" पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आयोजित (मप्र राज्य सूचना आयुक्त द्वारा दूसरी जूम मीटिंग में दिया गया कई प्रश्न का जबाब, पार्टिसिपेंट्स में दिखा भारी उत्साह, हर रविवार को सुबह 11 से 12 बजे के बीच आयोजित की जा रही ज़ूम मीटिंग, लगभग 100 पार्टिसिपेंट्स रहे सम्मिलित)

दिनाँक 21 जून 2020, स्थान - रीवा/भोपाल मप्र
     सूचना के अधिकार के क्षेत्र में क्रांति आना तय है क्योंकि आपको बता दें की इस समय मप्र राज्य सूचना आयोग में एक ऐसे सूचना आयुक्त पदस्थ हैं जिन्होंने आरटीआई को जन जन तक पहुचाने और उसके अवेयरनेस और जागरूकता का वीणा उठा रखा है. शायद ही भारत के सूचना आयोग के इतिहास में आज तक ऐसा कभी हुआ हो जब एक पदासीन सूचना आयुक्त जन जन तक पहुचने का प्रयास कर रहा हो. यह प्रयास जहां सेमिनार और वर्कशॉप के माध्यम से हो रहा था वहीं कोरोना लॉक डाउन के चलते यह अब हाई टेक हो चुका है. जी हाँ आपको कुछ नही चाहिए बस एक एंड्राइड मोबाइल चाहिए जो एक विशेष ज़ूम क्लाउड मीटिंग एप्प सपोर्ट करता हो और बस सोचना क्या हर रविवार सुबह 11 से 12 बजे के बीच में छुट्टी के दिनों में अपने घर से ही जुड़ जाईये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में और पूँछिये वह सब सवाल जो अब तक आपके जेहन में उठ रहे थे लेकिन एक्सपर्ट एडवाइस की कमी के कारण आप उसे पूंछ नही पा रहे थे.

   यह सब संभव हो पा रहा है मप्र में और सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह आपको आपके आरटीआई से जुड़े प्रश्नों के जबाब दे रहे हैं. तो यदि आप पिछली मीटिंग नही अटेंड कर पाए तो कोई समस्या नही और जुड़ जाईये अगली मीटिंग में.

   रविवार 21 जून को विषय रहा आरटीआई में प्रश्न सूचक शब्द कैसे करें आवेदन और  किन बातों का रखें खयाल
     जहां पिछले रविवार को आरटीआई से जुड़े बेसिक मुद्दों पर चर्चना हुई थी वहीं 21 जून को आरटीआई में प्रश्न सूचक शब्दों के इस्तेमाल और कैसे इनसे बचा जाय और कहां इन्हें लगाना आवश्यक है उन विषयों पर चर्चा हुई.

     ज़ूम मीटिंग के दौरान लगभग 100 के आसपास पार्टिसिपेंट्स मौजूद रहे जिन्होंने अपने अपने प्रश्न रखे. 

  यहां यहां से यह यह लोग हुए सम्मिलित

   अमूमन ज़ूम मीटिंग के माध्यम से होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में पूरे विश्व के कहीं से भी लोग जुड़ सकते हैं. पर फिर भी चूंकि मामला मप्र से संबंधित है तो जहां ज्यादातर लोग मप्र से जुड़े हुए रहते हैं वहीं लगभग 20 से 25 प्रतिशत तक लोग अन्य राज्यों जैसे झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तरांचल, ओडिशा,  विहार आदि प्रदेशों से जुड़े हुए थे. 

   मुख्य रूप से जिन लोगों ने प्रश्न पूँछे वह सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, बीके माला, मदन गोपाल तिवारी, सुरेश उपाध्याय, सत्येंद्र शिकरवार, भोपाल से गोविंद देशवाही, इंदौर से अंकुर मिश्रा, राजस्थान से आरके मीणा, भोपाल से प्रदीप उपाध्याय, रीवा से स्वतंत्र शुक्ला आदि सम्मिलित रहे.
    जस्टिस बोवड़े के 2008 के बॉम्बे हाइकोर्ट के निर्णय से हुई सुरुआत

   इस बीच ज़ूम मीटिंग की सुरुआत करते हुए मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने जस्टिस बोवड़े के 2008 के बॉम्बे हाइकोर्ट के एक फैसले पिंटो बनाम महाराष्ट्र सूचना आयोग का हवाला दिया जिंसमे बताया गया की इस निर्णय में जस्टिस बोवड़े द्वारा पूरे मामले की समीक्षा करते हुए आरटीआई दायर करने में प्रश्न सूचक शब्दों के इस्तेमाल के विषय में रोक सी लगा दी थी जो की अपीलार्थी के विरुद्ध निर्णय साबित हुआ था. वास्तव में हुआ यूं था की महाराष्ट सूचना आयोग ने जहां अपने आदेश में श्री पिंटो को जानकारी मुहैया कराए जाने के लिए आदेशित किया था वहीं लोक सूचना अधिकारी द्वारा यह कहकर बॉम्बे हाइकोर्ट में अपील की गयी की जो जानकारी आपिलार्थी द्वारा चाही गयी है उसमे कई प्रश्न सूचक शब्द हैं इसलिए हायपोथेटिकल ग्राउंड पर ऐसी जानकारी पीआईओ के पास उपलब्ध नही है. जिस पर जस्टिस बोवड़े ने पीआईओ का पक्ष लेते हुए अपीलार्थी के विरुद्ध निर्णय दिया था. इसके बाद से आरटीआई दायर करते समय इन बातों का विशेष खयाल रखा जाने लगा की प्रश्न सूचक शब्द और मार्क न हों. 
   मात्र हाइपोथेटिकल प्रश्न न पूँछें बांकी प्रश्न में कोई परेशानी नही - सूचना आयुक्त राहुल सिंह

    ज़ूम मीटिंग के दौरान मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कई उदाहरणों से समझाने का प्रयास किया की आरटीआई दायर करते समय हाइपोथेटिकल प्रश्न नही पूँछे जाने चाहिए जैसे अमुक योजना कब संचालित होगा? अमुक कार्य कब होगा फला फला क्योंकि यह हाइपोथेटिकल प्रश्न होते हैं क्योंकि ऐसे प्रश्नों के जबाब लोक सूचना अधिकारी के पास जरूरी नही की हों. अतः इस प्रकार के हाइपोथेटिकल प्रश्नों से बचना चाहिए. लेकिन जहां तक संख्या वाचक प्रश्न हैं और जो संख्या से जुड़े हुए हैं जैसे किन किन लोगों के ऊपर फला कार्यवाही हुई? किस किस अधिकारी फला कार्य में अथवा फला दोष में संलिप्त है? यदि किन्ही योजना विशेष का लाभ किसी हितग्राही को मिला है तो वह किन किन हितग्राहियों को मिला है आदि यह प्रश्न हाइपोथेटिकल प्रश्न नही हैं और यह सूची अथवा जानकारी किसी संबंधित विभाग में रहनी चाहिए जो पीआईओ का कर्तव्य होता है की वह आरटीआइ की धारा 5(3) के तहत भी अपीलार्थी के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए उसका सहयोग करे और जानकारी देवे. 
  सतना में खनिज विभाग के मामले में लगाया एक लाख रुपये का भारी भरकम जुर्माना

  इस बीच प्रश्न वाचक शब्दों के विषय में जिक्र करते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा बताया गया की अभी हाल ही के एक निर्णय में सतना जिले से किसी अपीलार्थी द्वारा कुछ जानकारी लगभग 2 वर्ष पूर्व सतना जिले के खनिज विभाग से चाही गयी थी लेकिन खनिज विभाग द्वारा वह जानकारी आवेदक को उपलब्ध नही कराई गयी थी. जिसके चलते मामले की द्वितीय अपील मप्र राज्य सूचना आयोग में पेंडिंग पड़ी हुई थी. जिस पर अभी हाल ही में आयुक्त द्वारा निर्णय पारित किया गया और कुल 4 आरटीआई के इन मामलों में अधिकतम 25 हजार रुपये के हिसाब से कुल एक लाख रुपये की फाइन लोक सूचना अधिकारी दीपमाला तिवारी को लगा दी गयी. 

   इस मामले में आयुक्त द्वारा बताया गया की यद्यपि अपीलार्थी द्वारा कुछ प्रश्न सूचक शब्दों का प्रयोग किया गया था लेकिन यह शब्द हाइपोथेटिकल नही होने से अपील स्वीकार की गयी. इसलिए आवेदक को हर भरसक प्रयास करना चाहिए की वह प्रश्न सूचक शब्दों से बचें और साथ में हाइपोथेटिकल किश्म के प्रश्न सूचक शब्द तो बिल्कुल ही न पूँछे अन्यथा अपील ख़रीजी किये जाने के चांस बने रहते हैं.
    इन इन पार्टिसिपेंट्स ने पूँछे यह सवाल 

    जूम मीटिंग रविवार सुबह 11 बजे से प्रारम्भ होकर 12:30 बजे दोपहर तक चलती रही. यद्यपि समय 1 घंटे का ही सुनिश्चित किया गया था लेकिन मीटिंग डेढ़ घंटे चली. लोगों की उत्सुकता को देखते हुए मीटिंग का समय बढ़ाये जाने का विचार भी किया जा रहा है.

  प्रबल प्रजापति शहडोल से आल आउट की संख्यात्मक जानकारी मागी 
  
 वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में सुरुआत के प्रश्न में प्रबल प्रजापति शहडोल से रहे जिन्होंने बताया की वह रेलवे में नौकरी करते हैं और उन्होंने रेलवे विभाग में ही आरटीआई दायर कर आलआउट की संख्या के विषय में जानकारी चाही थी जिस पर लोक सूचना अधिकारी द्वारा उन्होंने प्रश्न वाचक शब्द होने के चलते घुमा दिया और जानकारी देने से मना कर दिया. इस पर आयुक्त राहुल सिंह द्वारा कहा गया की वह इसकी अपील करें. क्योंकि संख्यात्मक प्रश्न तो पूँछे जाएंगे और मात्र हाइपोथेटिकल प्रश्नों से आवेदकों को बचना चाहिए.
सुरेंद्र तिवारी रिपोर्टर ने अधिकारी के टूर डायरी की जानकारी मागी

   रीवा से पत्रकार सुरेंद्र तिवारी ने एक अधिकारी के आफिस टूर डायरी की जानकारी मागी इस पर विभाग ने उन्हें टूर डायरी देने से मना कर दिया और बोला की टूर डायरी की जानकारी संधारित्र नही रहती. इस पर सूचना आयुक्त श्री सिंह ने जबाब दिया की किसी अधिकारी की सरकारी टूर डायरी संधारित्र होनी चाहिए और वह जानकारी पब्लिक डोमेन में आनी चाहिए. यह जानकारी देने योग्य होती है और दी जानी चाहिए. जानकारी यदि नही दी गयी तो अपीलार्थी को अपील करनी चाहिए.

  कृष्ण प्रताप सिंह इंदौर ने मागा 4 वर्ष की जानकारी

  इंदौर से ज़ूम मीटिंग में सम्मिलित हुए कृष्ण प्रताप सिंह ने कहा की उन्होंने एक विभाग में आरटीआई दायर की थी और जानकारी चाही थी इस पर उस विभाग द्वारा कहा गया की चूंकि जानकारी 3 या 4 वर्ष की है और वृहद है इसलिए आवेदक को जानकारी नही दी जा सकती. इस पर आयुक्त श्री सिंह ने जबाब दिया की यदि जानकारी उजागर होने से भ्रष्ट्राचार की पुष्टि होती है तो जानकारी देने योग्य है. यदि लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी नही दी तो अपीलार्थी को उसकी अपील करनी चाहिए.
  गिरीश रामचंद्र का प्रकरण - सरकारी कार्य प्रभावित होने सम्बन्धी तर्क

   इस बीच सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने गिरीश रामचंद्र के एक प्रकरण का हवाला दिया और बताया की इस मामले में कोर्ट ने यह तर्क दिया था की यदि 75 प्रतिशत से अधिक वर्कफोर्स आरटीआई की जानकारी बनाने के लिए लगा दिया जाता है तो इससे सरकारी कार्य प्रभावित होते हैं. अतः जानकारी इस प्रकार मागी जानी चाहिए जिससे सरकारी कार्य लोकसेवा के कार्य प्रभावित न हों और आवेदक को जानकारी भी मिल जाए. लेकिन फिर भी श्री सिंह ने बताया की यदि जानकारी से किसी भ्रष्ट्राचार की पुष्टि होती है इस परिस्थिति में चाहे जानकारी कितनी भी बड़ी क्यों न हो लोकहित में वह दी जानी चाहिए.

 मदन गोपाल तिवारी की संबल योजना के एक हितग्राही की जानकारी बताई व्यक्तिगत

   भोपाल से मदन गोपाल तिवारी ने बताया की उन्होंने एक मृतक हितग्राही को मिलने वाले संबल योजना ले लाभ के विषय में जानकारी चाही थी जिस पर विभाग ने बताया की वह जानकारी नही दे सकते क्योंकि यह थर्ड पार्टी से संबंधित है. इस पर आयोग ने कहा की यदि धारा 8(1)(जे) का उल्लंघन हो रहा है और जानकारी थर्ड पार्टी से संबंधित है भी तो यह बात विभाग के पीआईओ को 10 दिवस के भीतर हितग्राही को सूचित किया जाना चाहिए. पर सरकारी योजना से संबंधित कोई भी जानकारी किसी की व्यक्तिगत जानकारी नही होनी चाहिए क्योंकि यह योजना विशेष की जानकारी है जो पब्लिक डोमेन में साझा की जानी चाहिए.
   भिंड से सत्येंद्र सिंह शिकरवार ने पूंछा की बीपीएल कार्डधारक को अधिकतम कितने पेज की जानकारी फ्री ऑफ कॉस्ट मिलनी चाहिए इस पर आयुक्त श्री सिंह ने बताया की इसकी सीमा 50 पेज की है लेकिन यदि जानकारी 30 दिन के भीतर उपलब्ध नही कराई गयी है तो सम्पूर्ण जानकारी फ्री ऑफ कॉस्ट दी जानी चाहिए.

  जिला शिक्षा अधिकारी रीवा के एक मामले में प्रश्न करने हुए सामाजिक कार्यकर्ता बीके माला ने कहा की एक जानकारी 20 हजार रुपये बताकर विभाग ने आवेदक को गुमराह किया इस पर आयुक्त श्री सिंह ने कहा की आवेदक को पुनः एक पत्र लिखकर पीआईओ को दस्तावेजों के अवलोकन के लिए लिखना चाहिए और जाकर देखना चाहिए की जो जानकारी आवेदक के लिए आवश्यक हो वही जानकारी आवेदक प्राप्त करे. इस मामले में भी आवेदकों को अपील करनी चाहिए.

  अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने रीवा पुलिश अधिकारियों के विरुद्ध चल रहे प्रकरणों की मागी थी जानकारी

  इस बीच रीवा से हाइकोर्ट जबलपुर में अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता नित्यानंद मिश्रा ने बताया की उन्होंने आरटीआइ दायर कर एसपी आफिस से जानकारी चाही थी की ऐसे कौन कौन से अधिकारी हैं जिनके विरुद्ध लोकायुक्त, मानवाधिकार आदि द्वारा जांच चल रही है और कार्यवाही की क्या अद्यतन स्थिति है इस पर एसपी आफिस द्वारा प्रशवचक शब्द बोलकर जानकारी देने से मना कर दिया गया जिसके विषय में आयुक्त श्री सिंह द्वारा कहा गया की यह यद्यपि प्रश्न सूचक शब्द है लेकिन यहहाइपोथेटिकल नही है बल्कि स्पष्ट है इसलिए एसपी आफिस से यह जानकारी दी जानी चाहिए. क्योंकि "किन किन अधिकारी" यह वाक्य संख्यात्मक और स्पष्ट है इसलिए इसमे जानकारी छुपाए जाने का सवाल ही नही उठता और आवेदक को इसकी अपील करनी चाहिए.
  गोविंद देशवाही भोपाल ने न्यायालयीन प्रकरणों की मागी जानकारी

  इस बीच गोविंद देशवाही ने बताया की उन्होंने पुलिश द्वारा पंजीबद्ध किये गए अपराधों के विषय में और न्यायालयीन प्रकरणों की जानकारी चाही थी लेकिन पुलिश विभाग ने वह जानकारी देने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह विवेचना और जांच को प्रभावित कर सकता था. इस पर आयूक्त ने एक बार फिर सतना के एक पत्रकार के मामले का हवाला देकर बताया की यह सही है की कुछ मामलों में जांच और विवेचना प्रभावित हो सकती है लेकिन यदि प्रकरण न्यायालय में पहुंच चुका है और चलानी कार्यवाही हो चुकी है तब वह जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही यदि किसी जानकारी को पुलिश यह कहती है की विवेचना प्रभावित कर सकती है तो पुलिश को आयोग के समक्ष उपस्थित होकर यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह कैसे जांच प्रभावित करेगी. आयुक्त श्री सिंह ने 8(1)(एच) एवं 8(1)(जे) का जिक्र किया लेकिन बताया की यह पीआईओ द्वारा स्पष्ट करना चाहिए.

इंदौर से अंकुर मिश्रा ने एक ट्रस्ट के बिजली कनेक्शन से जुड़े दस्तावेजों की जानकारी चाही तो विभाग ने बताया की यह काफी पुरानी है और जानकारी नही दी. अंकुर मिश्रा ने यह भी कहा की यद्यपि वह ट्रस्ट आरटीआई के दायरे में आना चाहिए क्योंकि ट्रस्ट सरकार द्वारा दान दी गयी भूमि पर बना है. बता दें कि यदि किसी एनजीओ अथवा ट्रस्ट पर एक वर्ष के भीतर 50 रुपये और उससे अधिक इन्वेस्ट हुआ है तो वह आरटीआइ के दायरे में आता है। इस पर आयुक्त ने बताया की बिजली बिल सम्बन्धी दस्तावेज साझा करने में कोई आपत्ति नही होनी चाहिए क्योंकि यह कोई प्राइवेट दस्तावेज नही है.

  आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर एक बार फिर सवाल

    इस बीच सबसे महत्वपूर्ण बात जो सामने अयी वह आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं की सुरक्षा से संबंधित थी जिस पर राजस्थान से आरटीआई कार्यकर्ता आरके मीणा ने पूंछा की आरटीआई लगाने वाले और अपनी जान को जोखिम में डालकर समाज और सरकार के भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध लड़ने वाले कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के विषय में सरकार की क्या मंशा और नियमावली है. इस पर आयुक्त राहुल सिंह द्वारा मप्र और रीवा के आरटीआइ एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी का हवाला देकर बताया गया की अभी हाल ही में उनके ऊपर भी इस प्रकार से एक हमला किया गया था जिस पर आयोग ने 20 मार्च 2020 की रीवा में आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान अधिकारियों को बड़े ही स्पष्ट तौर पर आदेशित किया था की यदि आरटीआइ से जुड़ा कोई मामला है अथवा कोई जांच है वहां आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होती है. इस पर श्री सिंह ने 2013 के होम मिनिस्ट्री के एक सर्कुलर का भी हवाला दिया था और विभागों को आगाह किया था.
 क्या पीएम केअर फण्ड आरटीआई के दायरे में आना चाहिए

  इस बीच कुछ पार्टिसिपेंट्स ने पीएम केअर फण्ड को आरटीआई के दायरे में लाये जाने की बात कही और आयुक्त श्री सिंह से जानकारी और उनका मंतव्य जानना चाहा तो श्री सिंह ने बताया की जहां तक व्यक्तिगत तौर पर और देश के नागरिक होने के नाते उनका मानना है की कोई भी एजेंसी जो की पब्लिक फण्ड अथवा कंपनियों के द्वारा पोषित हुई है अथवा जनता का पैसा उसमे इन्वेस्ट किया गया है अथवा डोनेट किया गया है वह समस्त फण्ड आरटीआई के दायरे में आने चाहिए क्योंकि जनता को उसके दिए गए पैसे को जानने का पूरा अधिकार है अतः वही बात हर फण्ड पर लागू होती है. 
कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रचार प्रसार

   इस ऐतिहासिक पहल जिसमे मोबाइल एप्प के माध्यम से ज़ूम मीटिंग आयोजित की जा रही है इसका संयोजन और समन्वयन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा किया गया जबकि प्रचार प्रसार और  मीडिया का प्रभार का दायित्व देवी अहिल्या के मास्टर ऑफ जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन के छात्र स्वतंत्र शुक्ला द्वारा पूरा किया गया.
संलग्न - कृपया ज़ूम मीटिंग के दौरान उपस्थित सदस्यों आदि की स्क्रीनशॉट फ़ोटो देखने का कष्ट करें.

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शिवानन्द द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

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