Saturday, December 29, 2018

छुहिया घाटी, देवलोंद, व्योहारी, जयसिंह नगर, जैतपुर, कोतमा के रास्ते बांग्लादेश तक पशु तस्करी का चल रहा खेल, कोतमा और जैतपुर का पशु मेला है पशु तस्करी और पशु अपराध की मुख्य जड़ (मामला देश में चल रहे पशु तस्करी के खेल का जिसमे पशु तस्करों द्वारा पैदल मवेशियों को ले जाया जा रहा छत्तीशगढ़ के रास्ते बंगाल और बांग्लादेश, शासन प्रशासन सब जानते हुए भी लगाम लगाने में विफल)

दिनांक 29/12/2018, स्थान - शहडोल-कोतमा, मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी)

    देश प्रदेश में पशु तस्करी का खेल किस कदर बढ़ गया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की रीवा जिले में आवारा छोड़े गए पशुओं को समूहों में इकट्ठा कर गांव गांव में रखा जाता है फिर उन्हें पैदल चलकर छुहिया घाटी, मोहनिया घाटी के रास्ते सीधी और शहडोल के रास्ते छतीसगढ़, विहार, आंध्रा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश तक भेज दिया जाता है. 

    आये दिन बांग्लादेश बॉर्डर में बीएसएफ द्वारा हज़ारों की संख्या में ट्रकों से लदे हुए मवेशियों के जत्थे पकड़े जाते हैं. 

   कैसा है यह पशु तस्करी का पूरा खेल

   यह पूरा खेल काफी टेढ़ा मेढ़ा है जिसमे सम्मिलित पशु तस्कर गांव से लेकर हाई प्रोफाइल तक के लोग हैं जिनके पास पैसा और पावर दोनो है. जहां मवेशियों को हांकने के लिए छोटे गरीब किश्म के लेबर लगाए जाते हैं जिन्हें कुछ पैसे देकर मवेशियों को हांका जाता है वहीं इन्हें मॉनिटर करने के लिए कारों, और बाइक में इनके बड़े दलाल पूरे रास्ते भर लगे होते हैं.

   पुलिस के सह से चलता है काला धंधा

  यह पूरा धंधा पुलिश प्रशासन के सह से चलता है. पुलिश प्रशासन की मिलीभगत के चलते आम शिकायतों पर कोई कार्यवाही नही होती. पशु तस्कर सीधे पुलिश से मिले होते हैं जिससे उन्हें इसका शेयर मिल जाता है. इसका खुलासा भी तब हुआ जब रीवा जिले के थाना गढ़ एवं लालगांव चौकी अन्तर्गत पिपरहा एवं क्योटी ग्राम के पास एक इसी तरह से पशु तस्करी का गिरोह पकड़ा गया था जिसमे इस बात का खुलासा हुआ.

  पैदल मार्च से संदेह की कम है गुंजाइश

   इस काले धंधे में सबसे बड़ा पॉइंट यह रहता है की यदि पशु तस्कर ट्रक और वाहनों का इस्तेमाल करते हैं तो मोटर व्हीकल एक्ट, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, मप्र गोवंश वध प्रतिशेष अधिनियम सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज होने का डर रहता है इसलिए ज्यादातर पशु तस्कर लेबरों के सहयोग से गांव गांव अपनी सेटिंग बनाये रहते हैं और इन पशुओं को पैदल मार्च करवाते हैं जिससे आम नागरिकों को इस बात का संदेह नही होता की पशु काटने के लिए ले जाए जा रहे हैं. पर वास्तव में सच्चाई यही है की पशुओं को काटने के लिए भेजा जाता है.

  पूँछने पर बताते हैं कृषि और जुताई के लिए

   जब कोई पूंछता है की यह पैदल मवेशियों को कहां ले जाया जा रहा है तो बताया जाता है की यह सब कृषि कार्य हेतु ले जाए जा रहे हैं जहां शहडोल कोतमा अनूपपुर में इनसे खेती की जाती है लेकिन सवाल यह उठता है की हर रोज हज़ारों की संख्या में जाने वाले बैल आखिर किस खेती के लिए जाते हैं? आखिर इनकी खेती में कितनी डिमांड है? क्या अनूपपुर, शहडोल और कोतमा में मवेशी पैदा नही होते की इनको रीवा सतना के तराई इलाकों से पैदल होते हुए सीधी शहडोल और अनूपपुर से छत्तीशगढ़ रोज ले जाया जाता है? यदि बैलों की कृषि कार्य में आवश्यकता है तो क्या छत्तीशगढ़ में बैल उत्पन्न नही होते? 

   स्टिंग आपरेशन में सच्चाई आई सामने

   इसी बात की पड़ताल करने के लिए एक टीम गठित कर एक स्टिंग आपरेशन के वास्ते और सबूत इकठ्ठा करने के लिए रीवा की छुहिया घाटी से होते हुए सीधी शहडोल, कोतमा अनूपपुर, मलगा-छत्तीसगढ़ तक पहुचा गया. रास्ते में आने वाले ऐसे दर्जनों समूहों को देखा गया जिसमे ज्यादातर समूह रोड में रास्ते में ही मिल गए जो धड़ल्ले से बिना किसी डर के सैकड़ों की संख्या में मवेशियों को हांकते हुए ले जा रहे थे. इनमे से कुछ से पूंछा भी गया तो उन लेबरों ने बताया की कोतमा में बैलों की मंडी लगती है जहां पर इनका व्यापार होता है. इसी प्रकार जैतपुर आदि कुछ अन्य जगहों का भी जिक्र किया गया जहां पर पशु मेला की बात सामने आयी.

    हाई प्रोफाइल लोगों के जुड़े होने के संदेह

   जिस प्रकार से बेरोकटोक यह पशुओं के तथाकथित व्यापार का खेल एक अरसे से चल रहा है इससे साफ पता चलता है की इसमे सम्मिलित लोग कोई छोटे मोटे कैलिबर के नही हो सकते. इसमे ऐसे लोग सम्मिलित हैं जिनकी पंहुच काफी ऊपर तक है. यहां तक की कुछ सूत्रों से यहां तक जानकारी मिली की इसमे कुछ नेता भी सम्मिलित हैं जो कुछ तथाकथित हिंदूवादी पार्टियों से भी तालुक रखते हैं. कई बार जब इस अवैध काले धंधे पर कुछ पशु अधिकारों के लिए और अवैध कार्यों के विरोध में लड़ने वाले लोगों ने आवाज उठाई तो इन नेताओं और संगठनों के लोगों के नाम भी सामने आये जिहोने धमकियां भी दीं. अतः यह कहना बिल्कुल ही अतिशयोक्ति नही है की हाई प्रोफाइल संगठनों और पार्टियों के नेताओं के हाँथ और मिलीभगत से ऐसे धंधे फुल फ्लेज में चल रहे हैं वरना आज इतने ज्यादा हिंदूवादी संगठन सक्रिय हैं तो क्या इस काले धंधे को रोंका नही जा सकता था? 

  कोतमा सरस्वती स्कूल परिसर में लगता है पशु मेला

   रीवा और तराई क्षेत्रों से समेटे गए हज़ारों की संख्या में मवेशियों को रविवार के दिन हांक कर कोतमा की ब्वॉयज सरस्वती स्कूल के परिसर में लेजाकर रखा जाता है जहां से प्रत्येक रविवार के दिन पशुओं की मंडी लगती है और वहीं से इन्हें फिर इधर उधर किया जाता है. रातोंरात यहीं से लोडिंग भी हो जाती है इस वास्ते स्कूल ग्राउंड परिसर में कई संदिग्ध ट्रक भी खड़े देखे जा सकते हैं. बताया तो यह जाता है की यह बैलों की मंडी जुताई और कृषि कार्य के लिए लगती है लेकिन सच्चाई यह है की यह स्कूल परिसर में एक दो दिन पहले से ही मवेशी इकठ्ठे कर लिए जाते हैं और अगले सोमवार मंगलवार तक बाहर ले जाए जाते हैं. यह कहना की मात्र रविवार को ही मंडी लगती है सही नही है क्योंकि ब्यॉयज सरस्वती स्कूल कोतमा के शिक्षकों से बात करने पर बताया की यह जबरन और स्कूल के उच्च प्रबंधन की सांठगांठ से लगभग 15 एकड़ में मंडी लगती है जिसका स्कूल के शिक्षकों ने विरोध भी किया है लेकिन कोई सुनवाई नही हो रही है. स्कूल का कहना है की वह इस मंडी को बन्द करवाना चाहते हैं लेकिन सफलता नही मिली है. बताया गया की नगर पालिका/नगर निगम कोतमा द्वारा किसी बरगाही को इसका ठेका दिया जाता है और उनके स्कूल ग्राउंड का दुरुपयोग किया जा रहा है.

 पशु मेला ही है पशु अपराध की जड़

  जो जानकारी मिली इससे पता चला की आज भी जब पशुओं की उपयोगिता लगभग समाप्त हो चुकी है ऐसे में कोई भी व्यक्ति विश्वास नही करना चाहता की इतनी बड़ी तादाद में पशुओं को मात्र कृषि कार्य के लिए ले जाया जाता है. मानाकि छत्तीशगढ़ एरिया में कुछ हद तक पिछड़े जंगली इलाकों में अभी भी पशुओं से खेती होती है लेकिन फिर भी रोज हज़ारों की संख्या में छुहिया घाटी, मोहनिया घाटी, देवलोंद, बाणसागर, व्योहारी, जयसिंह नगर के रास्ते कोतमा और मलगा आखिर कैसे जा रहे हैं? मानाकि कृषि के लिए कुछ मात्रा में बैलों की आवश्यकता है लेकिन क्या छत्तीशगढ़ के किसानो के घरों में गायें नही हैं? क्या छत्तीशगढ़ में इतने बैल पैदा नही होते की उन लोगों की कृषि सबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हो पाए? क्या इतने बड़े पैमाने में रोज बैलों की आवश्यकता मात्र कृषि और जुताई के लिए है? क्या छत्तीसगढ़ आज इतना पिछड़ा है की वहां ट्रेक्टर बिल्कुल है ही नही? क्या छत्तीसगढ़ में मॉडर्न आधुनिक यंत्रों से खेती-किसानी नही होती? 

    इन प्रश्नों के स्वयमेव जबाब ढूंढने चलें तो पता चलता है की खेती-किसानी के नाम पर कोतमा और जैतपुर के आसपास चलने वाला पशु व्यापार मेला मात्र दिखावा और भ्रम पैदा करने के लिए है. वास्तव में वहां के सैकड़ों लोगों ने ही बताया की यहां यह बात सबको पता है की यह सभी पशु मात्र कटने के लिए जाते हैं., शासन प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है. सबकी रोटी ही पशुओं के कत्लेआम से चल रही है तो भला इसमे कार्यवाही करने की हिम्मत कौन जुटाएगा? सबसे बड़े दुख की बात तो यह है मानाकि पिछले पंद्रह वर्ष पहले सरकार ने गोवंशों की हत्या के संदर्भ में कोई विशेष अधिनियम पारित नही किया था लेकिन कम से कम हिंदूवादी सरकार के मप्र के पंद्रह वर्ष के कार्यकाल में जबकि मप्र गोवंश वध प्रतिषेध अधिनियम पारित हो गया था तब भी इस बात की जांच और इसमे रोकथाम की किसी नेता और हिंदूवादी संगठन को यह बात समझ नही आई. कितना बड़ा दुर्भाग्य है की जिस प्रदेश में गोवंशों के वध और उनके विरुद्ध हो रही क्रूरता को लेकर बड़े बड़े अधिनियम बने हैं फिर भी इतने बड़े और व्यापक पैमाने पर गोवंशों/पशुओं की तस्करी हो रही है.

  अब सवाल यह उठता है की आने वाले समय में इस प्रकार के अवैध अथवा वैध तरीके से संचालित पशुओं के मेले और उनके व्यापार की सही तरीके से पड़ताल और जांच हो पाएगी और क्या शासन प्रशासन और पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाएं इस बात की निगरानी और कार्यवाही करवा पाएंगी की आखिर किस बाबत इतनी बड़ी तादाद में पशुओं को ले जाया जाता है और यह पशु वास्तव में जाते कहां हैं?

संलग्न - रीवा की छुहिया घाटी से होते हुए सीधी, शहडोल, देवलोंद, बाणसागर, जयसिंह नगर, व्योहारी, कोतमा, मलगा, छत्तीशगढ़ तक के रास्ते पशुओं को ले जाते हुए बड़ी संख्या में लोग. आखिर कहां जा रहे हैं इतने पशु? साथ ही कोतमा सरस्वती ब्यॉयज स्कूल का 15 एकड़ का वह परिसर जिसका दुरुपयोग पशुओं की तस्करी के लिए पशु मेले के रूप में हो रहा है.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

Monday, December 10, 2018

MP - गोवंशों को चचाई जलप्रपात से बचाने मानवता की पेश की मिशाल - हिंदुओ ने मौत के घाट धकेला तो मुस्लिमों ने जीवित बचाया

दिनांक 10 दिसंबर 2018, स्थान - चचाई जलप्रपात, रीवा मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र) 

    संभाग के अब तक के सबसे भीषण पशु क्रूरता के मामले में चचाई जलप्रपात की हजारों फीट गहरी घाटियों के नीचे धकेले गए सैकड़ों गोवंशों को अभी भी रेस्क्यू किये जाने का कार्य चल रहा है और अभी भी सैकड़ों गोवंशों का 20 किमी की हजारों फीट गहरी घाटी में फंसे होने की संभावना बनी हुई है. यद्यपि ध्यान फाउंडेशन ने तो पूरे मामले में पूरा सहयोग दिया लेकिन आइए इस बीच पिछले दो सप्ताह से अधिक के रेस्क्यू आपरेशन में कुछ मानवीय पहलुओं पर चर्चा करते हैं जहां भारतीय संस्कृति की माता गोमाता को बचाने के लिए मात्र हिन्दू ही नही बल्कि मुस्लिमों ने भी कोई कोर कसर नही छोड़ी.  

 संकल्प फाउंडेशन - द एनिमल रेस्क्यू टीम का सराहनीय कार्य

    रीवा ज़िले में कार्य करने वाले एवं श्रीमती नजमा बेगम के द्वारा आधारित संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों द्वारा चचाई की हजारों फीट गहरी घाटियों से गोवंशों को जीवित सुरक्षित निकालने में अतुलनीय योगदान रहा है. श्रीमती मेनका गांधी की एनजीओ संस्था पीपल फ़ॉर एनिमल की मप्र टीम द्वारा एक रीवा जिले का भी व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाया हुआ है जिंसमे इस प्रकार पशुओं से प्रेम रखने वाले और उनके रेस्क्यू के लिए कार्य करने वाले युवाओं को जोड़कर रखा हुआ है. उसी ग्रुप में प्रियांशु जैन, रूपा द्विवेदी, विनय श्रीवास्तव, असद उल्लाह उर्फ आरिफ आदि कई सदस्य जुड़े हुए हैं. जब भी मवेशियों और पशुओं के पीड़ा और कष्ट में होने की कोई सूचना आती है तो यह सभी सदस्य अपने स्तर से एक दूसरे को सूचित करते हुए उन्हें रेस्क्यू किये जाने के प्रयास करते हैं.

मोहम्मद असद उल्लाह उर्फ आरिफ की टीम का महत्वपूर्ण योगदान

   इस बीच जब पिछले सप्ताह चचाई की हजारों फीट गहरी घाटियों में हजारों गोवंशों को घाट के नीचे जबरन धकेल दिए जाने की खबर अखबारों और सोशल मीडिया में आई तो सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी की अगुआई में सभी टीम मेंम्बर को सूचना दी गई जिस पर संकल्प फाउंडेशन के आरिफ ने अपने टीम के सदस्यों समीर अंसारी, पारस सोंधिया, फैजल खान, विक्की शर्मा, जीशान राईन, सूर्य रॉय एवं मोहम्मद असद उल्लाह ने अगले दिन मोर्चा संभाला और न केवल रीवा से बाइकिंग करते हुए पूरे टीम मेंबर के साथ उपस्थित हुए बल्कि आवश्यकता अनुरूप घायल और बीमार गोवंशों के लिए दवाईयां भी खरीद कर लाये.

  लड़कों ने हजारों फीट गहरे चचाई घाट के नीचे उतरकर गाय को पानी से निकाला

    दिनाँक 30 नवंबर का दिन था जब संकल्प फाउंडेशन के यह सभी सदस्य दोपहर तक चचाई घाट के नीचे उतर चुके थे जहां इन्हें प्रपात के पानी में गिरी हुई एक गाय मिली जिसे सभी ने मिलकर बाहर निकाला और वहीं जंगल से खर पतवार निकालकर आग लगाकर गाय को ऊष्मा दिया. इतने में ध्यान फाउंडेशन नई दिल्ली से आये गोशेवक विनोद सिंह उपस्थित हुए जो पहले से सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य साथियों के साथ चचाई घाट के नीचे थे, इस प्रकार विनोद सिंह ने गाय को एंटीबायोटिक, दर्द बुखार के इंजेक्शन और साथ में डी-टेन का बॉटल चढ़ाया. चूंकि गाय उठ पाने और चल पाने में पूरी तरह से असमर्थ थी अतः उसका जीवन मुश्किल समझ आया. 

 मोहम्मद असद उल्लाह की टीम ने पूरा दिन रेस्क्यू में किया सहयोग

   इस बीच दिनाँक 30 नवंबर को चचाई घाट की हजारों फीट गहरी घाटी में चले सबसे महत्वपूर्ण रेस्क्यू आपरेशन में मोहम्मद असद उल्लाह और उनके संकल्प फाउंडेशन के साथियों द्वारा अभूतपूर्व योगदान देते हुए पूरे दिन भर रेस्क्यू आपरेशन में सहयोग प्रदान किया. जहां मरैला, कुइयां-मटीमा और अन्य आसपास के आये ग्रामवाशियों और वन विभाग के कर्मचारी मात्र तमाशबीन बने रहे वहीं लगभग 130 गोवंशों को हजारों फीट गहरी चचाई की घाटी से बाहर निकालने में मोहम्मद असद उल्लाह की टीम ने एड़ी चोटी की ताकत लगा दी और तब तक शांत नही हुए जब तक 130 गोवंश सुरक्षित घाट के ऊपर निकाल नही दिए गए.

   दया और मानवता का नही कोई जाति-धर्म 

   इस प्रकार इन दो सप्ताह अर्थात 15 दिन के लगभग किये गए रेस्क्यू आपरेशन के कई मानवीय पहलू सामने आये हैं जिनसे जाति, धर्म और आस्था के आधार पर यह बिल्कुल नही कहा जा सकता मानवीयता और दया धर्म अथवा जाति देखकर आती है.

   देखा जाय तो जिस चचाई और पुरवा जलप्रपात क्षेत्र में पशुओं और विशेषतौर पर गोवंशों के साथ क्रूरता बढ़ी है वह कोई अन्य धर्म सम्प्रदाय का क्षेत्र नही है बल्कि उच्चवर्गीय हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र है जिंसमे उच्चवर्गीय हिंदुओं के सहयोग से ऐसी भीषण पशु क्रूरता और विशेषतौर पर गोवंशों के साथ प्रताड़ना और हत्या हुई है. तो क्या यह कहा जाय की आज हिंदुओं का वह समूह जो गोवंशों और गोमाता को पूजता था आज स्वयं ही पथभ्रष्ट्र हो कर अपने धर्म और कर्तव्य को भूल चुका है? क्या यह माना जाए की इन तथाकथित उच्चवर्गीय हिंदुओं से श्रेष्ठ तो हमारे वह मुस्लिम भाई हैं जिनके ऊपर गोहत्या के आरोप लगते रहे हैं? मानाकि की हर धर्म में हर व्यक्ति एक जैसा नही होता उसमे अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं. अतः यह बिल्कुल कहना उचित नही की मानवीयता और दया कोई धर्म और जाति देखकर आती है. यदि ऐसा होता तो चचाई और रीवा में होने वाले ज्यादातर गोवंशों के साथ क्रूरता के मामलों में हिन्दू सम्मिलित नही होते क्योंकि धर्म से तो गोमाता और गोवंश हिंदुओ के पूज्य हैं और गाय में तो 84 करोड़ देवी देवताओं का निवास माना गया है.

   समय था जब 1857 की क्रांति का आधार ही गोमाता थीं 

  इस प्रकार यदि इतिहास को उठाकर देखा जाए तो लगता नही की यह वही भारत देश है जिंसमे 1857 का स्वतंत्रता संग्राम मात्र गाय और सुअर की चर्बी लगी कारतूस के कारण हुआ था. तो फिर ऐसे में भारत जैसे देश के इतिहास और वर्तमान के लिए क्यों किसी धर्म और क्यों किसी विदेशी शक्ति अथवा अंग्रेजों को दोषी ठहराया जाय. वास्तव में अब देखकर और अनुभव करके तो यही लगता है की बाप बड़ा न मैया सबसे बड़ा रुपैया. पेट और रुपये की अंधी दौड़ के पीछे धर्म, मानवता और इंसानियत तुच्छ साबित हो रही है. 

    वरना यदि ऐसा नही होता तो भारत का हिन्दू किसान भूंखों मरना उचित समझता लेकिन कभी भी अपनी गोमाता को आंच नही आने देता लेकिन क्या समय आ चुका है की आवश्यकता और भौतिकतावादी दौड़ के चलते कहीं कुछ नही बचा है मात्र पेट और पेट बचा है जिसका पोषण पहले होना चाहिए बांकी दया, मानवता रहे अथवा न रहे, इसे किसी को फिक्र नही.

संलग्न - संलग्न तस्वीरों में कुछ वह तस्वीरें हैं जिनमे संकल्प फाउंडेशन के लड़के जिनमे मोहम्मद असद उल्लाह उर्फ आरिफ की टीम सामिल हैं और उन लड़कों ने गोवंशों को बचाकर जीता जागता नमूना प्रस्तुत कर रीवा जिला क्या देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

Thursday, December 6, 2018

चचाई कालापानी में नौ गायों का फिर हुआ इलाज, पहुचाया चारा-भूषा (मामला ज़िले के अब तक के सबसे भीषण गो प्रताड़ना के किस्से का जिंसमे डेढ़ सौ से अधिक गोवंशों के रेस्क्यू के बाद अभी भी हजारों फीट गहरी घाटी में फंसी है गायें)

दिनाँक 06 दिसंबर 2018, स्थान - चचाई जलप्रपात रीवा मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)

    ज़िले के चचाई जलप्रपात की हजारों फीट गहरी घाटी में हुए अब तक से सबसे भीषण गोहत्या और गोप्रताड़ना के बारदात में अब तक लगभग डेढ़ सैकड़ा गायों को घाट के ऊपर निकाला गया है. अभी भी कई सैकड़ा गोवंशों के घाटी में फंसे होने की सूचना है लेकिन घाटी इतनी गहरी और विस्तृत है की वहां तक पहुच पाना असंभव सा प्रतीत होता है. यह काम रेस्क्यू आपरेशन में ट्रेनिंग प्राप्त प्रोफेशनल के सहयोग एवं जंगली इलाकों में रहने वाले लोगों के सहयोग से ही पूरी तरह संभव है.

 दिनाँक 06 दिसंबर को वेटेरिनरी कर्मचारियों ने किया इलाज, फंसी गायों के लिए पहुचा भूषा

    दिनाँक 06 दिसंबर को एक बार फिर सामाजिक कार्यकर्ता एवं एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी के डायरेक्शन में चचाई की गहरी घाटियों में फंसे गोवंशों के लिए भूषा पहुचाया गया साथ ही वेटेरिनरी विभाग सिरमौर के प्रशिक्षु सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्राधिकारी रमेश सिंह, प्रतिबंधक संत कुमार साकेत एवं राष्ट्रीय किसान संगठन के मप्र मंत्री वंश गोपाल सिंह, कठमना निवासी विजय सिंह के सहयोग से हजारों फीट की चचाई जलप्रपात की गहरी घाटी में पहुचा गया जहां पर प्रारंभिक स्थल पर मात्र 10 गोवंश ही मिले. उम्मीद की गई की यह वही गोवंश थे जो रेस्क्यू के दौरान उसी स्थान पर छूट गए थे. साथ ही इनमे से वह गाय भी सम्मिलित थी जिसके पैर में चोट की वजह से कीड़े पड़ गए थे. पशु चिकित्सक के रूप में गए रमेश सिंह एवं संत कुमार साकेत ने गोवंशों का स्वास्थ्य चेक किया और आवश्यकतानुसार कमजोर गोवंशों को क्रमसः 9 एंटीबायोटिक, 9 मल्टी विटामिन इंजेक्शन लगाया. साथ ही 3 गायों को दर्द बुखार के इंजेक्शन लगाए, घाव वाली गाय के घाव को धोकर एकबार फिर मलहम पट्टी की गई. इनमे से एक बैल था जो स्वस्थ्य था जिसको कोई उपचार नही किया गया. 

   बांस के पत्ते तोड़कर खिलाये और भूसा डाला

  इस बीच ऊपर चचाई रेस्ट हाउस के पास स्टोर किया गया एक बोरी भूषा ले जाया गया और सभी गोवंशों को थोड़ा थोड़ा दिया गया साथ ही वहां पर बांस के पत्ते भी तोड़कर खिलाये गए जिससे पशुओं के स्वास्थ में सुधार हो सके और उन्हें भी किसी प्रकार से चढ़ाकर घाट के ऊपर तक लाया जा सके.

   गहरी घाटी में पहुचना था काफी मुश्किल

   इस बीच दिनाँक 06 दिसंबर को शाम 5 बजने को थे और चचाई एवं पुरवा की गहरी और लगभग 20 किमी के विस्तार में फैली घाटी में पहुच पाना काफी मुश्किल था. पूरी घाटी में घुसने के लिए शुबह सूर्योदय से ही प्रवेश करते हुए दिन भर का समय देना पड़ेगा तभी जाकर कुछ सार्थक कार्य किया जा सकेगा.

   सबसे बड़ी चुनौती रेस्क्यू किये गए पशुओं का रिहैबिलिटेशन

     आज रीवा ज़िले में पशुओं के रखने के लिए कोई समुचित गोशाला नही है जहां इन्हें रखा जा सके. सबसे बड़ी चुनौती आज यह है की कैसे अधिक से अधिक गोशालाओं की व्यवस्था की जाए और कैसे इन गोवंशों का पुनर्वाश और पोषण किया जा सके. ज्ञातव्य है की रीवा में लक्ष्मण बाग गोशाला पहले से ही भस्ट्राचार की बलि चढ़ चुकी है जहां पर गोवंशों का पूरा खाना पशुओं को न दिया जाकर गोशाला प्रबंधन समिति के लोग खाये जा रहे हैं और गोवंश भूंखों मर रहे हैं.

  बसामन मामा गोवंश वन्य विहार केंद्र में भी अनियमिता

    अभी अभी खोली गई बसामन मामा गोवंश वन्य विहार केंद्र में भी अनियमितता देखने को मिल रही है. जब चचाई घाट से रेस्क्यू किये गए मवेशियों को बसामन मामा गोवंश वन्य विहार केंद्र में डालने की बात आई तो वहां का प्रबंधन संभाल रहे अरुण गौतम का कहना था की मीडिया में बात मत रखिये तो जितने चाहिए उतने लाकर डाल दीजिए. कुछ चचाई के लोगों द्वारा बताया गया की प्रति मवेशी 500 रुपये फिक्स किया हुआ है जो पैसा देता है उसके मवेशी डाल लेता है और जो नही देता उसे वापस कर देता है.

   300 की क्षमता पर कैसे पहुच गए ढाई हजार?

   सबसे बड़ी बात यह है जब मंत्री के पिए राजेश पांडेय से बात की गई तो उसका कहना था की हमारे पास बसामन मामा में जगह नही बची है और हमारी क्षमता मात्र 300 की है तब सवाल यह उठता है की गोवंशों की संख्या वन्य विहार केंद्र में ढाई हजार कैसे पहुच गई? निश्चित तौर पर जिस प्रकार लक्षमण बाग में इनकी दलाली और गोवंशों के नाम पर भ्रष्टाचार चल रहा था ठीक वही इन्होंने बसामन मामा गोवंश वन्य विहार केंद्र में भी प्रारम्भ कर दिया है. 

  घायल रेस्क्यू किये गए गोवंशों तक के लिए मना कर दिया 

    जब चचाई से रेस्क्यू किये गए गोवंशों को बसामन मामा में रखने की बात अरुण गौतम और मंत्री के पीए राजेश पांडेय के समक्ष रखी गई तो इनके लिए जगह नही थी लेकिन ढाई हजार के लिए जगह कहां से निकल आई? 500 रुपये प्रति मवेशी लेकर घुसेड़ने का धंधा इनका काफी पुराना है जो लक्षमण बाग में भी चलता था.

  संलग्न - दिनाँक 06 दिसंबर 2018 को चचाई घाट के नीचे जाकर गोवंशों का इलाज किया गया एवं साथ ही उनके लिए भूसे चारे की भी व्यवस्था की गई. घाटी के नीचे पहुचे कार्यकर्ता की तस्वीर.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, 9589152587, 78699992139