Thursday, September 29, 2016

(Rewa, MP) गंगेव ब्लाक के हिनौती, अमिलिया, गढ़ शंकुल केन्द्रों की कैथा सहित पचासों स्कूलों की बदहाल स्थिति - छात्रों के शिक्षा और मानव के अधिकार का हनन



स्थान – कैथा-गढ़ (रीवा, म.प्र.), दिनांक: 29.09.2016, दिन गुरुवार,

हिनौती और अमिलिया संकुल केंद्र स्थित कैथा शा. पूर्व माध्यमिक शाला का भवन वर्षों से क्षतिग्रस्त है, फर्श उखड़ी, माल मवेशी बैठते हैं, बच्चों के शिक्षा के अधिकार और मानवाधिकार का हनन   

 (कैथा-गढ़, रीवा) आज भारत के संविधान में मानवाधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीने का अधिकार, मूलभूत अधिकार, बाल अधिकार, महिलाओं का अधिकार, वृद्ध जनों का अधिकार,  आदि ऐसे कितने अधिकार हैं पर क्या इन अधिकारों का भारत गणराज्य में सही क्रियान्वयन हो पा रहा है, आज यह बहुत बड़ा प्रश्न है? इन सबकी वास्तविक स्थिति देखनी है तो आप चले जाएँ किसी भी सरकारी संस्था में और स्वयं देख लें कि वहां पर क्या कुछ व्यवस्थाएं हैं और कोई भी कानून का कितना पालन हो पा रहा है.

कैथा स्कूल का भवन परिसर वर्षों से क्षतिग्रस्त – आइये आपको कैथा स्कूल में छात्रो की व्यवस्था पर गौर फरमाते हैं और कुछ ऐसी प्रशासनिक स्थिति पर नज़र डालते हैं जिसे देख आज मंत्रालय और कानून की उच्च सीढ़ियों में बैठे हुए नीति निर्माता भी चकित रह जायेंगे और शर्म से मुह फेर लेंगे. इन तस्वीरों को देख यह सहज ही समझ आएगा की देश की ग्रामीण विद्यालयों में पता नहीं कितने ऐसे सुमार होंगे जिनमे आज मूलभूत ढांचा का आभाव और उसके रख-रखाव की समस्या बनी हुई है. आज विकासवाद की अवधारणा के साथ सरकारें मूलभूत ढांचों के वास्ते पैसा तो खूब बहा रही है पर वह सब विकराल भ्रस्ट्राचार रुपी दानव की भेंट चढ़ रहा है जिसकी निगरानी करने वाला कोई नहीं है. प्रश्न उठता है क्या लोकपाल जैसी संस्थाएं होती तो इन शासकीय कार्यों की निगरानी नहीं करती? प्रश्न यह भी है की क्या अभी भी हर एक सरकारी विभाग में निगरानी और जाँच टीमें नहीं हैं? अब कैथा स्कूल का ही प्रकरण ले लें, इस सन्दर्भ में बहुत पहले भी मप्र. शासन की तथाकथित जन शिकायत निवारण हेतु चलायी गयी सीएम हेल्पलाइन में भी प्रकरण पूर्व में रखे गए थे परन्तु कोई सार्थक समाधान नहीं निकला. देखें सीएम हेल्पलाइन क्र. 328521. जाँच कर्ताओं द्वारा तो यह स्वीकार किया गया था की स्कूल परिसर क्षतिग्रस्त है पर इसकी भरपाई हेतु राशि डीपीसी से ही आएगी ऐसा बताया गया था. बहरहाल जाँच दल जिसमे गंगेव के एक इंजिनियर श्री द्विवेदी भी सम्मिल्लित थे, ने डीपीसी को प्रोजेक्ट बनाकर तो दे दिया था परन्तु आज तक उसका क्या हुआ इसकी कोई खबर नहीं है. संलग्न तस्वीरों में देखें की कैसे जर्जर स्कूल भवन के अन्दर फ़र्स उखाड़कर रेत बाहर निकल आई है और माल मवेशी के बैठने के कारण वहां गोबर भी भरा पड़ा है. लगभग एक वर्ष पूर्व जब यह प्रकरण सामाजिक कार्यकर्ता की नजर में आया तो यह प्रशासन की नजर में भी रखा गया और जाँच भी की गयी परन्तु अव्यवस्था ज्यों की त्यों बनी हुई है. शायद शासन प्रशासन की नजर में संविधान में ही ग्राम और शहरों की कानून में अंतर होगा? जो मीडिया की नजर में जल्दी आ जाये या फिर जिले में बैठे उच्चाधिकारियों के ऊपर शहरी क्षेत्र में दबाब बनाकर रखा जाये तो उस पर तत्काल कार्यवाही होती है पर वही प्रकरण यदि शहरी क्षेत्र से दूर कहीं ग्रामों का है तो भला शासन-प्रशासन का उससे क्या लेना है क्योंकि वह तो ग्राम हैं वहां पशुओं जैसे जीवन यापन करने वाले ग्रामीण रहते हैं जिनकी धान, गेंहू, शब्जी-भाजी ही शासन प्रशासन के कर्मचारियों और मीडिया को चाहिए इसके अतिरिक्त भला गाँव की समस्याओं को मीडिया में भी स्थान देने से टीआरपी थोड़ी बढ़ने वाली है. ग्राम के लोगों को जीवन यापन करने के लिए उत्पादन तो करना ही पड़ेगा. जो उत्पादित होगा उसे बेंचना भी पड़ेगा. सरकारी और शहरी पैसे वाले रसूखदार और ज्यादातर दो नंबर की की कमाई करने वालों के लिए एक ग्राम के किसान और मजदूर की सालभर की उपज मात्र रोज दो रोज की दो नंबर की कमाई से खरीद लेने का अहंकार तो रहेगा ही. इतनी तो समझ और शक्ति ग्रामीण किसान मजदूर में हो ही नहीं सकती वह अपनी उपज और डेरी उत्पादन को मात्र अपने उपयोग के अतिरिक्त सब कूड़े गर्त में डाल दे फिर देखें कैसे सरकार और प्रशासन में बैठे और पूंजीपति लोग अन्न खाते हैं? अन्नदाता और मजदूरों का शोषण तो अन्नदाताओं और मजदूरों की एकता से ही बंद होगा पर वह हमारे भारत वर्ष में कभी आ ही नहीं सकती क्योंकि फूट डालो और शासन करो अंग्रेजों ने भारत को पहले ही सिखा दिया है. आज यदि पत्रकारिता की तरफ ध्यान दें तो भला ग्रामीण पत्रकारिता में रखा ही क्या है? न पैसा न सोहरत और न ही कोई राजनीतिक लाभ. टीआरपी पॉपुलैरिटी तो सेलेब्रिटी की छींक और जमुहाई कब हुई और वह कब उठे और कब टॉयलेट करने के लिए गए यह सब ब्रेकिंग न्यूज़ और लाइव दिखाने से मिलती है. भला गाँव की स्कूल भवन में क्या व्यवस्था है? गाँव का मजदूर और किसान किस स्थिति में है? ग्रामीण महिलाओं और बच्चों की क्या स्थिति है? ग्राम सडकों की क्या स्थिति है? हैंडपंप और पानी नाहर की व्यवस्था की क्या स्थिति है? ग्राम के बच्चों और लोगों का जीवन यापन कैसे हो पा रहा है, शिक्षा में सुधार के लिए क्या किया जाए? कैसे बच्चों को अपने गाँव में ही अच्छी शिक्षा मिले? यह सब न्यूज़ तो मात्र अखबार और मीडिया की फ़ालतू की जगह ही घेर सकती हैं इनसे मीडिया को तो लाभ कुछ नहीं होगा.

   शा. स्कूल कैथा के सामने खुली नाली छोटे बच्चों के मौत का आमंत्रण – वर्ष 2013-14 में उस समय के कैथा पंचायत द्वारा हरिजन-आदिवासी बस्ती और शा. पू. मा. वि. कैथा के सामने एक सरकारी नाली बनाई गई थी जिसका कि औचित्य आज तक नहीं समझ आया. पहली बात तो वह नाली तब अवश्यक थी जब वहां सामने से पीसीसी अथवा आरसीसी रोड होती. पर कच्ची सड़क के बाजू में हरिजन-आदिवासी बस्ती और कैथा स्कूल से जुडी हुई इस नाली में बनने से लेकर आज तक लगभग दर्ज़नों बच्चे गिर चुके हैं. कुछ के हाँथ पैर भी टूट चुके हैं और कुछ पांच वर्ष तक के बच्चे तो मरते मरते बचे थे. बनायी जा रही नाली के गुणवत्ता के विषय में भी तब सीएम हेल्पलाइन में प्रकरण क्र. 328789 रखा गया था तब थोडा इसमें सुधार हुआ था परन्तु अभी भी खर्च के मुताबिक नाली की गुणवत्ता निम्न दर्जे की है. साथ ही नाली के ऊपर कवर या ढक्कन होना चाहिए जिससे उसमे अनायास कोई फिसल कर गिरे नहीं परन्तु यह नाली आज भी बिलकुल खुली हुई है और खुली होने के कारण काफी हद तक भठ भी चुकी है. स्कूल प्रांगण के ठीक सामने होने से बच्चे खेलते हुए इसमें अक्सर गिर जाते हैं और हादसे होते रहते हैं लेकिन इसको देखने वाला न ही कैथा स्कूल विभाग ही है और न ही शासन प्रशासन.

कैथा स्कूल में शौचालय की बदहाल स्थिति – कैथा स्कूल परिसर दो भवनों में विभक्त है. एक पंचायत भवन कैथा के पास जहाँ पर कक्षा पांचवीं तक की कक्षाएं लगती है और एक हरिजन-आदिवासी बस्ती कैथा के पास जहाँ कक्षा छः से आठ तक की कक्षाएं लगती है. दोनों ही स्कूल भवनों में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है. दशकों पुराने और नाम मात्र के लिए बनाये गए शौचालय पूरी तरह से समाप्त हो चुके हैं. यह बात कई बार सीएम हेल्पलाइन और फ़ोन मोबाइल के माध्यम सहित लिखित भी जिला रीवा के शिक्षाधिकारी सहित डीपीसी को दी गयी है पर अब तक शौचालय की कोई उचित व्यवस्था नहीं हुई है. देखें संलग्न तस्वीरें जिसमे खंड-विखंड शौचालय भी दिखाए गए हैं. शौचालय की व्यवस्था न होने से अक्सर स्कूल के लड़के लड़कियां शौच के लिए बाहर गांववालों के खेतों में जाते हैं जिससे उन्हें खरी खोटी भी सुननी भी पड़ती है साथ ही बच्चों के लिए भी खतरा बना रहता है.
अभी हाल ही में पिछले ग्रामोदय से भारत उदय अभियान 2016 के अंतर्गत जब गंगेव ब्लाक के सीईओ प्रदीप पॉल और अन्य नायब तहसीलदार शर्मा आदि उपस्थित थे तो उनके भी समक्ष यह मुद्दा उठाया गया और लिखित भी दिया गया परन्तु गाँव के कमज़ोर मजदूर और किसान वर्ग को शौचालय बनवाने, और न बनवाने पर गरीबों के खाद्यान बंद करवाने और कानूनी कार्यवाही की धमकी देने वाले इन अधिकारियो ने यह नहीं बताया की सरकारी भवनों में में जर्ज़र और समाप्त पड़े शौचालयों की व्यवस्था के लिए इन्होने क्या ठोस कदम उठाये हैं? कितना बड़ा मजाक है यह सब? दूसरों को नसीहत से बेहतर होता यदि देश के कलेक्टर, कमिश्नर, सीईओ, तहसीलदार आदि स्वयं यह देखने के प्रयास करते की इनके कार्यालयों के पास स्वयं भी कोई उचित शौचालयों की न तो व्यवस्था है और यदि थोड़ी बहुत है भी तो उसमे इतनी गन्दगी रहती है की शौचालय में जाना तो दूर वहां उसके पास खड़ा होना भी मुस्किल होता है.

हिनौती और गढ़ संकुल केन्द्रों अंतर्गत 70 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में बदहाल शौचालय – शा. उच्च. वि. हिनौती और गढ़ दोनों शंकुल केन्द्रों अंतर्गत लगभग साठ से अधिक स्कूल आते हैं परन्तु सभी स्कूलों में शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं है. लगभग 70 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है और शेष 30 प्रतिशत स्कूलों में यदि शौचालय हैं भी तो उनकी भी उचित देख रेख साफ सफाई न होने से बदतर स्थिति में रहते हैं. किसी भी शौचालय के पास पानी की टंकी की व्यवस्था नहीं है. पानी न होने से बच्चे शौच के लिए बाहर जाते हैं. जो पहले शौच के लिए शौचालय में जाते हैं पानी न होने से गन्दगी वहीँ छोंड जाते हैं और उसकी कभी भी सफाई नहीं होती.
सबसे पहले तो जो शौचालय पहले से निर्मित हैं उन सभी के ऊपर पानी की टंकी बनाई  जाएँ और उन टंकियों को चाहे बाहर के पानी के टैंकर से प्रतिदिन भरा जाये अथवा प्रत्येक स्कूल परिसर में अपने बोरिंग-वेल की व्यवस्था और मोटर-पंप लगाये जाएँ. क्योंकि जब तक स्कूलों के शौचालय के पास पानी की उचित व्यवस्था और साफ़ सफाई कर्मी नहीं हैं तो शौचालय जैसी जगह का कोई औचित्य नहीं है. यह सब अव्यवस्थाएं कोई भी कभी भी जाकर देख सकता है. देखें सीएम हेल्पलाइन प्रकरण क्र. 1357580 जो की हिनौती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अंतर्गत आने वाली स्कूलों में शौचालय की बदहाल स्थिति के विषय में दर्ज करवाई गयी थी.  

हिनौती और गढ़ शंकुल केंद्र अंतर्गत आने वाले सभी स्कूलों में शिक्षा की निम्न गुणवत्ता – आज सबसे ज्यादा चिंतनीय विषय है सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गिरती गुणवत्ता. शहरी स्कूल तो अपेक्षाकृत थोडा ठीक स्थिति में हैं परन्तु सबसे बड़ी दुर्दशा ग्रामीण स्कूलों की है. आज भारत और प्रदेश सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान से लेकर शिक्षा का अधिकार जैसे महत्वपूर्ण बिल तो पास कर दिया है पर सरकारों को देखना यह होगा की क्या बिल पास कर देने मात्र और संविधान की किताब में दर्ज़ कर देने मात्र से काम थोड़े ही पूरा हो जाता है. कोई भी नियम कायदा का तब तक कोई औचित्य नहीं जब तक उसका अक्षरसः पालन सभी के लिए समान रूप से न हो, और वह हमारे भारत देश में तो ऐसा लगता है कि कभी भी संभव होना नहीं दीखता.
शा. स्कूल हिनौती और गढ़ शंकुल केंद्र के अंतर्गत आने वाली स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो रहा है. ज्यादातर स्कूलों में नियमित सरकारी शिक्षक नदारद रहते हैं और स्कूलें मात्र अतिथि शिक्षकों के बल बूते ही चल रही है. अतिथि शिक्षकों के विहित कार्यों में से चपरासी, रजिस्टर मेन्टेन करने, बाबूगिरी के कार्यों से लेकर पढ़ाने तक के कार्य सौंप कर नियमित शिक्षक अपने घर-परिवार खेती-किसानी के कार्यों में व्यस्त रहते हैं और यदि कभी भूल से घंटे दो घंटे के लिए यह सरकारी शिक्षक स्कूल आ भी जांयें तो मात्र कुर्सी तोड़ते बैठे रहते हैं. यह हाल है सरकारी स्कूलों और और वहां की शिक्षा व्यवस्था का. भला ऐसे में क्या ख़ाक देश और इसके बच्चे आगे बढ़ेगें चाहे कितने भी नियम कानून बना दो पर यदि उनका पालन ही नहीं हुआ तो किसी का कोई औचित्य नहीं है.

हिनौती और गढ़ शंकुल केंद्र अंतर्गत आने वाली स्कूलों और साझा चूल्हा अंतर्गत आंगनवाडी केन्द्रों में मध्यान भोजन की बदहाल स्थिति - वैसे तो सम्पूर्ण रीवा जिले की ही ग्रामीण स्कूलों और साझा चूल्हा अंतर्गत आंगनवाडी केन्द्रों में मध्यान्न भोजन की स्थिति दयनीय है पर गंगेव ब्लाक अतर्गत हिनौती और गढ़ स्कूल शंकुल केन्द्र अंतर्गत आने वाली स्कूलों और आंगनवाडी केन्द्रों पर गौर फरमाना ज्यादा उचित होगा क्योंकि हमारे पास इनमे मध्यान्न भोजन सम्बन्धी अनियमितता के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं. मध्यान्न भोजन सम्बन्धी अनियमितता के प्रकरण मप्र शासन की सीएम हेल्पलाइन में भी रखे गए जिनके प्रकरण क्र. क्रमशः 314048, 313903, 377313, 404165, 379147, 405255, 379224, 1442109, 1467059, 1405660, 1403600 आदि हैं पर दुर्भाग्य इस देश का और यहाँ की सड़ांध ले चुकी शासन-प्रशासन का कि यहाँ सब कुछ लीपापोती कर दी जाती है. थोड़ी बहुत जांच होती है है. जांचकर्ता आते हैं शिक्षकों और दोषियों से पैसे ले लेते हैं झूंठा पंचनामा बनवा लेते हैं और सब कुछ ठीक बताकर चले जाते हैं.
शा. पू. मा. वि. और शा. प्राथमिक शाला कैथा, शा. उच्च. मा. वि., कन्या शाला हिनौती, अमिलिया, गढ़ और यहाँ तक की इसके अंतर्गत आने वाली सभी स्कूलों में कभी भी मध्यान भोजन सही तरीके से नहीं बनता. आंगनवाडी केद्रों की तो बात ही क्या करना वहां तो भोजन तब परोसा जायेगा जब स्कूलों में बनेगा क्योंकि आंगनवाडी तो स्कूलों के साथ चूल्हा साझा कर रहे हैं. जब स्कुल का चूल्हा ही जलेगा तो आंगनवाडी का कैसे जलेगा? जहाँ तक सवाल है मेनू के आधार पर भोजन का तो वह तो कभी भी नहीं बनता. कई बार मध्यान्न भोजन अनियमितता सम्बन्धी प्रकरण सीएम हेल्पलाइन में रखा गया परन्तु इसका कोई भी सार्थक समाधान नहीं निकला. सभी स्व. सहायता समूह मौज कर रहे हैं और स्कूलों आंगनवाडी केन्द्रों का पूरा-पूरा माल चट कर रहे हैं. इसमें ब्लाक के बी.आर.सी.सी. से लेकर शिक्षा विभाग के नीचे से लेकर उच्चाधिकारियों तक का परसेंट बंटा रहता है. स्व.-सहायता समूह का अध्यक्ष ले दे कर सब मामला सही कर लेते हैं और जहाँ तक सवाल है जांच और कार्यवाही की तो उनका कहना है की “चाहे शिकायत कहीं भी करो उससे क्या फर्क पड़ेगा. जांच करने के लिए तो सरकारी कर्मचारी ही आंएगे न. सभी को पैसा चाहिए होता है और इसी लालच में तो सब जांच करने आते हैं. जितना कुछ खाया है उसका कुछ हजार जाँच कर्ताओं को भी दे देंगे और अब मामला रफा दफा हो जायेगा.” बस अनुभव भी यही बताता है की सब कुछ बिलकुल ऐसे ही चल रहा है. शिकायतकर्ता अंत में मूर्ख साबित होता है और मात्र सुधार के नाम पर समाज और प्रशासन से अपने सम्बन्ध विगाड़ता है और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं होता है. मृतक पशुओं पर टूट पड़ने वाले चील्ह, कौवे, बाज की तरह यह सरकारी कर्मचारी इस पैठ में बैठे रहते हैं की कहीं कोई शिकायत कर दे और हम बस शिकायत की जांच करने के लिए वहां पहुचेंगे और अच्छा माल मिलेगा. और बस क्या कहना जांचकर्ता निरीक्षण स्थल पर पंहुचा और बिना शिकायतकर्ता को बुलाये ले दे कर मामला का सफाया कर दिया. अब शिकायतकर्ता मूर्ख की तरह पड़ा रहे लेवल के गेम और अपना समय और पैसा फूंकता रहे समाजसेवा के नाम पर. न जाने कितनी हज़ार शिकायतें सीएम हेल्पलाइन और चौथे लेवल के ऊपर होंगी पर होना कहीं कुछ नहीं सब समय और ऊर्जा की बर्वादी सिद्ध होती है.   


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शिवानन्द द्विवेदी
(सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता)
ग्राम कैथा, पोस्ट अमिलिया, थाना गढ़,
जिला रीवा  (म.प्र.) पिन ४८६११७

मोबाइल नंबर – 07869992139


















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