: | PMOPG/E/2016/0372558 | |
Name Of Complainant | : | Shivanand Dwivedi Social Activists |
Date of Receipt | : | 01 Oct 2016 |
Received by | : | Prime Ministers Office |
Officer name | : | Shri Ambuj Sharma |
Officer Designation | : | Under Secretary (Public) |
Contact Address | : | Public Wing |
5th Floor, Rail Bhawan | ||
New Delhi110011 | ||
Contact Number | : | 011-23386447 |
: | ambuj.sharma38@nic.in | |
Grievance Description | : | Mr. Prime Minister, I would like to bring in your kind attention that in Madhya Pradesh Rewa district, Janpad Panchayat Gangev CEO Mr. Pradeep Paul and SDM Mangawan KP Pandey Not taking actions over the complaints and issues of public importance submitted by me through CM helpline, Written and through PG Portal. I demand for the immediate action against the CEO Janpad Pradeep Paul and Mangawan Tehsil SDM KP Pandey. Pradeep Paul and KP Pandey MUST be terminated for NOT taking actions over above issues and also for Not taking actions on issues of social and public importance. There are high level of corruptions in Janpad and Tehsil level in GANGEV and MANGAWAN. The MGNREGA and PANCHAYATI work are not done by the labors and fraud muster roll are made. Please see the PMOPG Complaints No: PMOPG/E/2016/0358291 registered by applicant Shivanand Dwivedi in your pgportal webpage. ------- Sincerely, SHIVANAND DWIVEDI (Social and Human Rights Activists) Village Kaitha, Post Amiliya, Tehsil Mangawan, District Rewa, MP Mobile 07869992139 |
Current Status | : | RECEIVED THE GRIEVANCE |
"One who is unattached to the fruits of his work and who works as he is obligated is in the renounced order of life, and he is the true mystic: not he who lights no fire and performs no work". - |||श्रीमद भगवद गीता, अध्याय 6, Verse 1|||
Friday, September 30, 2016
REWA/BHOPAL - SDM Mangawan KP Pandey and CEO Janpad Gangev Pradeep Paul must be removed and Suspended for Not taking lawful actions
Thursday, September 29, 2016
(Rewa, MP) गंगेव ब्लाक के हिनौती, अमिलिया, गढ़ शंकुल केन्द्रों की कैथा सहित पचासों स्कूलों की बदहाल स्थिति - छात्रों के शिक्षा और मानव के अधिकार का हनन
स्थान – कैथा-गढ़ (रीवा, म.प्र.), दिनांक: 29.09.2016, दिन गुरुवार,
हिनौती और अमिलिया
संकुल केंद्र स्थित कैथा शा. पूर्व माध्यमिक शाला का भवन वर्षों से क्षतिग्रस्त
है, फर्श उखड़ी, माल मवेशी बैठते हैं, बच्चों के शिक्षा के अधिकार और मानवाधिकार का
हनन
(कैथा-गढ़,
रीवा) आज भारत के संविधान
में मानवाधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीने का अधिकार, मूलभूत अधिकार, बाल अधिकार,
महिलाओं का अधिकार, वृद्ध जनों का अधिकार,
आदि ऐसे कितने अधिकार हैं पर क्या इन अधिकारों का भारत गणराज्य में सही
क्रियान्वयन हो पा रहा है, आज यह बहुत बड़ा प्रश्न है? इन सबकी वास्तविक स्थिति
देखनी है तो आप चले जाएँ किसी भी सरकारी संस्था में और स्वयं देख लें कि वहां पर
क्या कुछ व्यवस्थाएं हैं और कोई भी कानून का कितना पालन हो पा रहा है.
कैथा स्कूल का भवन परिसर वर्षों से क्षतिग्रस्त – आइये आपको कैथा स्कूल में छात्रो की व्यवस्था
पर गौर फरमाते हैं और कुछ ऐसी प्रशासनिक स्थिति पर नज़र डालते हैं जिसे देख आज
मंत्रालय और कानून की उच्च सीढ़ियों में बैठे हुए नीति निर्माता भी चकित रह जायेंगे
और शर्म से मुह फेर लेंगे. इन तस्वीरों को देख यह सहज ही समझ आएगा की देश की
ग्रामीण विद्यालयों में पता नहीं कितने ऐसे सुमार होंगे जिनमे आज मूलभूत ढांचा का
आभाव और उसके रख-रखाव की समस्या बनी हुई है. आज विकासवाद की अवधारणा के साथ
सरकारें मूलभूत ढांचों के वास्ते पैसा तो खूब बहा रही है पर वह सब विकराल
भ्रस्ट्राचार रुपी दानव की भेंट चढ़ रहा है जिसकी निगरानी करने वाला कोई नहीं है.
प्रश्न उठता है क्या लोकपाल जैसी संस्थाएं होती तो इन शासकीय कार्यों की निगरानी
नहीं करती? प्रश्न यह भी है की क्या अभी भी हर एक सरकारी विभाग में निगरानी और
जाँच टीमें नहीं हैं? अब कैथा स्कूल का ही प्रकरण ले लें, इस सन्दर्भ में बहुत
पहले भी मप्र. शासन की तथाकथित जन शिकायत निवारण हेतु चलायी गयी सीएम हेल्पलाइन
में भी प्रकरण पूर्व में रखे गए थे परन्तु कोई सार्थक समाधान नहीं निकला. देखें
सीएम हेल्पलाइन क्र. 328521. जाँच कर्ताओं द्वारा
तो यह स्वीकार किया गया था की स्कूल परिसर क्षतिग्रस्त है पर इसकी भरपाई हेतु राशि
डीपीसी से ही आएगी ऐसा बताया गया था. बहरहाल जाँच दल जिसमे गंगेव के एक इंजिनियर
श्री द्विवेदी भी सम्मिल्लित थे, ने डीपीसी को प्रोजेक्ट बनाकर तो दे दिया था
परन्तु आज तक उसका क्या हुआ इसकी कोई खबर नहीं है. संलग्न तस्वीरों में देखें की
कैसे जर्जर स्कूल भवन के अन्दर फ़र्स उखाड़कर रेत बाहर निकल आई है और माल मवेशी के
बैठने के कारण वहां गोबर भी भरा पड़ा है. लगभग एक वर्ष पूर्व जब यह प्रकरण सामाजिक
कार्यकर्ता की नजर में आया तो यह प्रशासन की नजर में भी रखा गया और जाँच भी की गयी
परन्तु अव्यवस्था ज्यों की त्यों बनी हुई है. शायद शासन प्रशासन की नजर में
संविधान में ही ग्राम और शहरों की कानून में अंतर होगा? जो मीडिया की नजर में
जल्दी आ जाये या फिर जिले में बैठे उच्चाधिकारियों के ऊपर शहरी क्षेत्र में दबाब
बनाकर रखा जाये तो उस पर तत्काल कार्यवाही होती है पर वही प्रकरण यदि शहरी क्षेत्र
से दूर कहीं ग्रामों का है तो भला शासन-प्रशासन का उससे क्या लेना है क्योंकि वह
तो ग्राम हैं वहां पशुओं जैसे जीवन यापन करने वाले ग्रामीण रहते हैं जिनकी धान, गेंहू,
शब्जी-भाजी ही शासन प्रशासन के कर्मचारियों और मीडिया को चाहिए इसके अतिरिक्त भला
गाँव की समस्याओं को मीडिया में भी स्थान देने से टीआरपी थोड़ी बढ़ने वाली है. ग्राम
के लोगों को जीवन यापन करने के लिए उत्पादन तो करना ही पड़ेगा. जो उत्पादित होगा
उसे बेंचना भी पड़ेगा. सरकारी और शहरी पैसे वाले रसूखदार और ज्यादातर दो नंबर की की
कमाई करने वालों के लिए एक ग्राम के किसान और मजदूर की सालभर की उपज मात्र रोज दो
रोज की दो नंबर की कमाई से खरीद लेने का अहंकार तो रहेगा ही. इतनी तो समझ और शक्ति
ग्रामीण किसान मजदूर में हो ही नहीं सकती वह अपनी उपज और डेरी उत्पादन को मात्र
अपने उपयोग के अतिरिक्त सब कूड़े गर्त में डाल दे फिर देखें कैसे सरकार और प्रशासन
में बैठे और पूंजीपति लोग अन्न खाते हैं? अन्नदाता और मजदूरों का शोषण तो
अन्नदाताओं और मजदूरों की एकता से ही बंद होगा पर वह हमारे भारत वर्ष में कभी आ ही
नहीं सकती क्योंकि फूट डालो और शासन करो अंग्रेजों ने भारत को पहले ही सिखा दिया
है. आज यदि पत्रकारिता की तरफ ध्यान दें तो भला ग्रामीण पत्रकारिता में रखा ही
क्या है? न पैसा न सोहरत और न ही कोई राजनीतिक लाभ. टीआरपी पॉपुलैरिटी तो
सेलेब्रिटी की छींक और जमुहाई कब हुई और वह कब उठे और कब टॉयलेट करने के लिए गए यह
सब ब्रेकिंग न्यूज़ और लाइव दिखाने से मिलती है. भला गाँव की स्कूल भवन में क्या
व्यवस्था है? गाँव का मजदूर और किसान किस स्थिति में है? ग्रामीण महिलाओं और
बच्चों की क्या स्थिति है? ग्राम सडकों की क्या स्थिति है? हैंडपंप और पानी नाहर
की व्यवस्था की क्या स्थिति है? ग्राम के बच्चों और लोगों का जीवन यापन कैसे हो पा
रहा है, शिक्षा में सुधार के लिए क्या किया जाए? कैसे बच्चों को अपने गाँव में ही
अच्छी शिक्षा मिले? यह सब न्यूज़ तो मात्र अखबार और मीडिया की फ़ालतू की जगह ही घेर
सकती हैं इनसे मीडिया को तो लाभ कुछ नहीं होगा.
शा. स्कूल कैथा के सामने खुली नाली छोटे बच्चों
के मौत का आमंत्रण – वर्ष 2013-14 में उस समय के कैथा पंचायत द्वारा हरिजन-आदिवासी
बस्ती और शा. पू. मा. वि. कैथा के सामने एक सरकारी नाली बनाई गई थी जिसका कि औचित्य
आज तक नहीं समझ आया. पहली बात तो वह नाली तब अवश्यक थी जब वहां सामने से पीसीसी
अथवा आरसीसी रोड होती. पर कच्ची सड़क के बाजू में हरिजन-आदिवासी बस्ती और कैथा
स्कूल से जुडी हुई इस नाली में बनने से लेकर आज तक लगभग दर्ज़नों बच्चे गिर चुके
हैं. कुछ के हाँथ पैर भी टूट चुके हैं और कुछ पांच वर्ष तक के बच्चे तो मरते मरते
बचे थे. बनायी जा रही नाली के गुणवत्ता के विषय में भी तब सीएम हेल्पलाइन में
प्रकरण क्र. 328789 रखा गया था तब थोडा इसमें सुधार हुआ था परन्तु
अभी भी खर्च के मुताबिक नाली की गुणवत्ता निम्न दर्जे की है. साथ ही नाली के ऊपर
कवर या ढक्कन होना चाहिए जिससे उसमे अनायास कोई फिसल कर गिरे नहीं परन्तु यह नाली
आज भी बिलकुल खुली हुई है और खुली होने के कारण काफी हद तक भठ भी चुकी है. स्कूल
प्रांगण के ठीक सामने होने से बच्चे खेलते हुए इसमें अक्सर गिर जाते हैं और हादसे
होते रहते हैं लेकिन इसको देखने वाला न ही कैथा स्कूल विभाग ही है और न ही शासन
प्रशासन.
कैथा स्कूल में शौचालय की बदहाल स्थिति – कैथा स्कूल परिसर दो भवनों में विभक्त है. एक
पंचायत भवन कैथा के पास जहाँ पर कक्षा पांचवीं तक की कक्षाएं लगती है और एक
हरिजन-आदिवासी बस्ती कैथा के पास जहाँ कक्षा छः से आठ तक की कक्षाएं लगती है.
दोनों ही स्कूल भवनों में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है. दशकों पुराने और नाम
मात्र के लिए बनाये गए शौचालय पूरी तरह से समाप्त हो चुके हैं. यह बात कई बार सीएम
हेल्पलाइन और फ़ोन मोबाइल के माध्यम सहित लिखित भी जिला रीवा के शिक्षाधिकारी सहित
डीपीसी को दी गयी है पर अब तक शौचालय की कोई उचित व्यवस्था नहीं हुई है. देखें
संलग्न तस्वीरें जिसमे खंड-विखंड शौचालय भी दिखाए गए हैं. शौचालय की व्यवस्था न
होने से अक्सर स्कूल के लड़के लड़कियां शौच के लिए बाहर गांववालों के खेतों में जाते
हैं जिससे उन्हें खरी खोटी भी सुननी भी पड़ती है साथ ही बच्चों के लिए भी खतरा बना
रहता है.
अभी हाल ही में पिछले ग्रामोदय से भारत उदय
अभियान 2016 के अंतर्गत जब गंगेव ब्लाक के सीईओ प्रदीप पॉल और
अन्य नायब तहसीलदार शर्मा आदि उपस्थित थे तो उनके भी समक्ष यह मुद्दा उठाया गया और
लिखित भी दिया गया परन्तु गाँव के कमज़ोर मजदूर और किसान वर्ग को शौचालय बनवाने, और
न बनवाने पर गरीबों के खाद्यान बंद करवाने और कानूनी कार्यवाही की धमकी देने वाले
इन अधिकारियो ने यह नहीं बताया की सरकारी भवनों में में जर्ज़र और समाप्त पड़े
शौचालयों की व्यवस्था के लिए इन्होने क्या ठोस कदम उठाये हैं? कितना बड़ा मजाक है
यह सब? दूसरों को नसीहत से बेहतर होता यदि देश के कलेक्टर, कमिश्नर, सीईओ,
तहसीलदार आदि स्वयं यह देखने के प्रयास करते की इनके कार्यालयों के पास स्वयं भी
कोई उचित शौचालयों की न तो व्यवस्था है और यदि थोड़ी बहुत है भी तो उसमे इतनी
गन्दगी रहती है की शौचालय में जाना तो दूर वहां उसके पास खड़ा होना भी मुस्किल होता
है.
हिनौती और गढ़ संकुल केन्द्रों अंतर्गत 70 प्रतिशत
से अधिक स्कूलों में बदहाल शौचालय – शा. उच्च. वि. हिनौती और गढ़ दोनों शंकुल केन्द्रों
अंतर्गत लगभग साठ से अधिक स्कूल आते हैं परन्तु सभी स्कूलों में शौचालय की उचित
व्यवस्था नहीं है. लगभग 70 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में शौचालय की कोई व्यवस्था
नहीं है और शेष 30 प्रतिशत स्कूलों में यदि शौचालय हैं भी तो उनकी भी उचित देख रेख
साफ सफाई न होने से बदतर स्थिति में रहते हैं. किसी भी शौचालय के पास पानी की टंकी
की व्यवस्था नहीं है. पानी न होने से बच्चे शौच के लिए बाहर जाते हैं. जो पहले शौच
के लिए शौचालय में जाते हैं पानी न होने से गन्दगी वहीँ छोंड जाते हैं और उसकी कभी
भी सफाई नहीं होती.
सबसे पहले तो जो शौचालय पहले से निर्मित हैं उन
सभी के ऊपर पानी की टंकी बनाई जाएँ और उन
टंकियों को चाहे बाहर के पानी के टैंकर से प्रतिदिन भरा जाये अथवा प्रत्येक स्कूल
परिसर में अपने बोरिंग-वेल की व्यवस्था और मोटर-पंप लगाये जाएँ. क्योंकि जब तक
स्कूलों के शौचालय के पास पानी की उचित व्यवस्था और साफ़ सफाई कर्मी नहीं हैं तो
शौचालय जैसी जगह का कोई औचित्य नहीं है. यह सब अव्यवस्थाएं कोई भी कभी भी जाकर देख
सकता है. देखें सीएम हेल्पलाइन प्रकरण क्र. 1357580 जो की हिनौती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अंतर्गत
आने वाली स्कूलों में शौचालय की बदहाल स्थिति के विषय में दर्ज करवाई गयी थी.
हिनौती और गढ़ शंकुल केंद्र अंतर्गत आने वाले सभी
स्कूलों में शिक्षा की निम्न गुणवत्ता – आज सबसे ज्यादा चिंतनीय विषय है सरकारी स्कूलों
में शिक्षा की गिरती गुणवत्ता. शहरी स्कूल तो अपेक्षाकृत थोडा ठीक स्थिति में हैं
परन्तु सबसे बड़ी दुर्दशा ग्रामीण स्कूलों की है. आज भारत और प्रदेश सरकार ने सर्वशिक्षा
अभियान से लेकर शिक्षा का अधिकार जैसे महत्वपूर्ण बिल तो पास कर दिया है पर सरकारों
को देखना यह होगा की क्या बिल पास कर देने मात्र और संविधान की किताब में दर्ज़ कर
देने मात्र से काम थोड़े ही पूरा हो जाता है. कोई भी नियम कायदा का तब तक कोई औचित्य
नहीं जब तक उसका अक्षरसः पालन सभी के लिए समान रूप से न हो, और वह हमारे भारत देश
में तो ऐसा लगता है कि कभी भी संभव होना नहीं दीखता.
शा. स्कूल हिनौती और गढ़ शंकुल केंद्र के अंतर्गत
आने वाली स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो रहा है. ज्यादातर
स्कूलों में नियमित सरकारी शिक्षक नदारद रहते हैं और स्कूलें मात्र अतिथि शिक्षकों
के बल बूते ही चल रही है. अतिथि शिक्षकों के विहित कार्यों में से चपरासी, रजिस्टर
मेन्टेन करने, बाबूगिरी के कार्यों से लेकर पढ़ाने तक के कार्य सौंप कर नियमित
शिक्षक अपने घर-परिवार खेती-किसानी के कार्यों में व्यस्त रहते हैं और यदि कभी भूल
से घंटे दो घंटे के लिए यह सरकारी शिक्षक स्कूल आ भी जांयें तो मात्र कुर्सी तोड़ते
बैठे रहते हैं. यह हाल है सरकारी स्कूलों और और वहां की शिक्षा व्यवस्था का. भला
ऐसे में क्या ख़ाक देश और इसके बच्चे आगे बढ़ेगें चाहे कितने भी नियम कानून बना दो
पर यदि उनका पालन ही नहीं हुआ तो किसी का कोई औचित्य नहीं है.
हिनौती और गढ़ शंकुल केंद्र अंतर्गत आने वाली
स्कूलों और साझा चूल्हा अंतर्गत आंगनवाडी केन्द्रों में मध्यान भोजन की बदहाल
स्थिति - वैसे तो सम्पूर्ण
रीवा जिले की ही ग्रामीण स्कूलों और साझा चूल्हा अंतर्गत आंगनवाडी केन्द्रों में
मध्यान्न भोजन की स्थिति दयनीय है पर गंगेव ब्लाक अतर्गत हिनौती और गढ़ स्कूल शंकुल
केन्द्र अंतर्गत आने वाली स्कूलों और आंगनवाडी केन्द्रों पर गौर फरमाना ज्यादा
उचित होगा क्योंकि हमारे पास इनमे मध्यान्न भोजन सम्बन्धी अनियमितता के पर्याप्त
सबूत मौजूद हैं. मध्यान्न भोजन सम्बन्धी अनियमितता के प्रकरण मप्र शासन की सीएम हेल्पलाइन
में भी रखे गए जिनके प्रकरण क्र. क्रमशः 314048, 313903, 377313, 404165, 379147, 405255, 379224,
1442109, 1467059, 1405660, 1403600 आदि हैं
पर दुर्भाग्य इस देश का और यहाँ की सड़ांध ले चुकी शासन-प्रशासन का कि यहाँ सब कुछ
लीपापोती कर दी जाती है. थोड़ी बहुत जांच होती है है. जांचकर्ता आते हैं शिक्षकों
और दोषियों से पैसे ले लेते हैं झूंठा पंचनामा बनवा लेते हैं और सब कुछ ठीक बताकर चले
जाते हैं.
शा. पू. मा. वि. और शा. प्राथमिक शाला कैथा, शा.
उच्च. मा. वि., कन्या शाला हिनौती, अमिलिया, गढ़ और यहाँ तक की इसके अंतर्गत आने
वाली सभी स्कूलों में कभी भी मध्यान भोजन सही तरीके से नहीं बनता. आंगनवाडी
केद्रों की तो बात ही क्या करना वहां तो भोजन तब परोसा जायेगा जब स्कूलों में
बनेगा क्योंकि आंगनवाडी तो स्कूलों के साथ चूल्हा साझा कर रहे हैं. जब स्कुल का
चूल्हा ही जलेगा तो आंगनवाडी का कैसे जलेगा? जहाँ तक सवाल है मेनू के आधार पर भोजन
का तो वह तो कभी भी नहीं बनता. कई बार मध्यान्न भोजन अनियमितता सम्बन्धी प्रकरण
सीएम हेल्पलाइन में रखा गया परन्तु इसका कोई भी सार्थक समाधान नहीं निकला. सभी स्व.
सहायता समूह मौज कर रहे हैं और स्कूलों आंगनवाडी केन्द्रों का पूरा-पूरा माल चट कर
रहे हैं. इसमें ब्लाक के बी.आर.सी.सी. से लेकर शिक्षा विभाग के नीचे से लेकर
उच्चाधिकारियों तक का परसेंट बंटा रहता है. स्व.-सहायता समूह का अध्यक्ष ले दे कर
सब मामला सही कर लेते हैं और जहाँ तक सवाल है जांच और कार्यवाही की तो उनका कहना
है की “चाहे शिकायत कहीं भी करो उससे क्या फर्क पड़ेगा. जांच करने के लिए तो सरकारी
कर्मचारी ही आंएगे न. सभी को पैसा चाहिए होता है और इसी लालच में तो सब जांच करने
आते हैं. जितना कुछ खाया है उसका कुछ हजार जाँच कर्ताओं को भी दे देंगे और अब
मामला रफा दफा हो जायेगा.” बस अनुभव भी यही बताता है की सब कुछ बिलकुल ऐसे ही चल
रहा है. शिकायतकर्ता अंत में मूर्ख साबित होता है और मात्र सुधार के नाम पर समाज
और प्रशासन से अपने सम्बन्ध विगाड़ता है और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं होता है. मृतक
पशुओं पर टूट पड़ने वाले चील्ह, कौवे, बाज की तरह यह सरकारी कर्मचारी इस पैठ में
बैठे रहते हैं की कहीं कोई शिकायत कर दे और हम बस शिकायत की जांच करने के लिए वहां
पहुचेंगे और अच्छा माल मिलेगा. और बस क्या कहना जांचकर्ता निरीक्षण स्थल पर पंहुचा
और बिना शिकायतकर्ता को बुलाये ले दे कर मामला का सफाया कर दिया. अब शिकायतकर्ता
मूर्ख की तरह पड़ा रहे लेवल के गेम और अपना समय और पैसा फूंकता रहे समाजसेवा के नाम
पर. न जाने कितनी हज़ार शिकायतें सीएम हेल्पलाइन और चौथे लेवल के ऊपर होंगी पर होना
कहीं कुछ नहीं सब समय और ऊर्जा की बर्वादी सिद्ध होती है.
-----------------
शिवानन्द द्विवेदी
(सामाजिक एवं
मानवाधिकार कार्यकर्ता)
ग्राम कैथा, पोस्ट
अमिलिया, थाना गढ़,
जिला रीवा (म.प्र.) पिन ४८६११७
मोबाइल नंबर – 07869992139
Sunday, September 25, 2016
(Rewa, MP) रीवा अंतर्गत कटरा डीसी में बिजली व्यवस्था 15 दिवस बाद भी नहीं सुधरी, मनमाना बिलिंग, इटहा का जला ट्रांसफार्मर महीनों बाद भी नहीं बदला
स्थान – कैथा, गढ़ (रीवा, म.प्र.), दिनांक: 25.09.2016, दिन रविवार,
अभी भी रीवा के कटरा
डीसी में विद्युत् की बदहाल स्थिति- लाइन का फाल्ट विभाग आज तक नहीं ठीक कर पाया,
सोरहवा-हिनौती के लाइनमैन सुधाकर मिश्रा पैसा लेकर सुधारते हैं बिजली
(कैथा-गढ़,
रीवा) रीवा के कटरा डीसी
में बिजली व्यवस्था बदहाल स्थिति में बनी हुई है. आज दो सप्ताह का समय बीत चुका है
और कटरा और त्योंथर का बिजली विभाग आज फाल्ट तक नहीं ढूंढ पाया. बिजली विभाग कल
फाल्ट ठीक करता है तो आज फिर लग जाता है. समझ नहीं आता की यह फाल्ट अपने आप लग रहा
है अथवा जानबूझकर लगाया जा रहा है. जनता के लिए तो यह सब रात्रि के किसी बहुत भयानक
सपने की तरह है. सपना इतना भयावह की जनता रात्रि में न तो सो पा रही और न जाग पा
रही. आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है की क्या बिजली विभाग को विद्युत् समस्या का बरसात
में ही ध्यान आना था? आखिर क्यों मेंटेनेंस और केबलीकरण का कार्य समय पर नहीं किया
गया? लाइन मेंटेनेंस का काम तो गर्मियों में किया जाना चाहिए था. क्या हुआ उस
मेंटेनेंस और केबलीकरण की राशि का? उस राशि की बलि कहीं भ्रष्ट्राचार रुपी भयानक
राक्षस को तो नहीं चढ़ा दी गयी? इस प्रकार के दर्ज़नों प्रश्न हैं जिनको आज बिजली
विभाग के किसी भी कर्मचारी-अधिकारी में जबाब देने की क्षमता नहीं समझ आती.
गढ़ फीडर अंतर्गत इटहा ग्राम का ट्रांसफार्मर
पिछले एक माह से जला – कैथा पंचायत
अंतर्गत आने वाले इटहा ग्राम में लालजी पटेल के घर के पास का एक ट्रांसफार्मर
पिछले एक माह से जला हुआ है जिसकी कोई सुनवाई नहीं हुई. यह बात कटरा डीसी के
कनिष्ठ यंत्री सोनी, गढ़ के लाइनमैन राजकुमार मिश्रा, प्रभाकर सिंह को बताई गयी, पर
अब तक तो ट्रांसफार्मर नहीं लगा है जबकि ग्रामीणों से पता चला की इटहा ग्राम के
उपभोक्ताओं ने पूरा बिजली का बिल भी भरा हुआ है. अमूमन होता यूँ है की यदि 50
प्रतिशत से कम बिजली का बिल शेष रहता है तो बिजली विभाग ट्रांसफार्मर लगाने में
आनाकानी करता है परन्तु इटहा ग्राम के सन्दर्भ में ऐसी कोई स्थिति नहीं है जिससे
वहां पर तत्काल ट्रांसफार्मर न लगाया जाये.
हिनौती-सोरहवा के लाइनमैन सुधाकर मिश्रा कार्य
में अनुपस्थित – सोरहवा-हिनौती
क्षेत्र में कार्यरत लाइनमैन सुधाकर मिश्रा पैसे लेकर उपभोक्ताओं का बिल बनाते
हैं. यहाँ बिल वितरण छः महीने में मात्र एक बार होता है. जब बिजली बिल पेनाल्टी
सहित हजारों रुपये बन जाता है तब ग्रामीणों को उनका बिल मिलता है. इस प्रकार जिन
उपभोक्ताओं का बिल 450 अथवा 500 रुपये देने होते हैं उन्हें 600 अथवा 700 देना पड़
जाता है. लाइनमैन सुधाकर मिश्रा से शिकायत पर यह व्यक्ति उपभोक्ताओं को पेनाल्टी
लगाने और बिजली काटने की धमकी देता है. सोरहवा निवासी हरिबंस पटेल के पुत्र
अरुणेन्द्र पटेल द्वारा दिनांक 24 सितम्बर को सोरहवा की बिजली सप्लाई बाधित होने
पर पूंछने पर सुधाकर मिश्रा ने बिजली बंद कर देने की धमकी दे दी और कहा की “लाइनमैन
का चार्ज होता है जो उपभोक्ताओं को देना पड़ेगा. 200 रुपये देने पर ही लाइनमैन एक
बार आएगा”. सुधाकर मिश्रा का कहना था की “हम 50 हज़ार की तनख्वाह उठाते हैं और काम
नहीं करते बल्कि हम कार्य करने के लिए अपने साथ प्राइवेट लाइनमैन रखते हैं जिसे
प्रति विजिट उपभोक्ताओं को पैसे देने पड़ेंगे तभी बाधित लाइन बन पायेगी नहीं तो
नहीं बनेगी. जहाँ तक शिकायत की बात है तो जिसको जहाँ शिकायत करनी है वहां करो
क्योंकि सीएम हेल्पलाइन में हमारे कंप्यूटर ऑपरेटर जो निराकरण लिख देते हैं वही
होता है चाहे जितनी और जिस लेवल में शिकायत पंहुच जाये. बिजली विभाग का कुछ नहीं
होता. ज्यादा से ज्यादा हमारा ट्रान्सफर करेंगे और क्या करेंगे.” इस प्रकार से इन
बिजली कर्मचारियों की स्थिति बनी हुई है.
कैथा की हरिजन आदिवासी बस्ती में वर्षों से कटी
केबल नहीं लगी - मीटर रीडिंग और केबलीकरण के विषय में सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों
में हुई लीपापोती
तो यह स्थिति है इन बिजली कर्मचारियों की. अब
जहाँ तक सवाल है उपभोक्ताओं का उनका तो मरना तय है क्योंकि इन गाँव के गरीबों का
जिनका की खेती किसानी के अतिरिक्त कोई अन्य आधार नहीं उन्हें औसत 150 रीडिंग का
बिल थमा दी गयी. इनमे से तो कैथा के हरिजन और आदिवासी बस्ती के ऐसे लोग हैं जिनके
घरों में बिजली सप्लाई पिछले एक वर्ष से नहीं दी गयी है. इसके विषय में सीएम
हेल्पलाइन में भी शिकायत क्र.2056670, 2056711 और 2065662 दर्ज करवाई गयी थी परन्तु कोई समाधान नहीं दिया
गया. उल्टा सीधा समाधान देकर सब कुछ ठंडा कर दिया गया, यह स्थिति है सीएम
हेल्पलाइन की. इसी प्रकार पिछले वर्ष सोरहवा ग्राम निवासी वृजवासी पटेल ने मीटर
रीडिंग के अनुसार और सही बिल भेजे जाने के विषय में सीएम हेल्पलाइन और रीवा बिजली
विभाग के समक्ष प्रकरण रखा था परन्तु उस पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई. वृजवाशी पटेल
के घर में तो बहुत पहले से ही मीटर लगा हुआ है परन्तु मीटर रीडिंग लेने कोई
कर्मचारी नहीं आता. बिजली विभाग यह समझता है की यदि औसत बिलिंग से ही काम चल जाता
है तो क्यों फालतू में मीटर रीडर रखा जाये. वास्तविक तौर पर देखा जाये तो लाइनमैन
का ही काम है की वह अपने सम्बंधित क्षेत्र में मीटर रीडर का भी काम करे और लाइन सुधारने
का, परन्तु सुधाकर मिश्रा, राजकुमार मिश्रा और प्रभाकर सिंह जैसे ऐसे लाइनमैन कटरा
डीसी में हैं जिनको जनता की परेशानी से कोई लेना देना नहीं है. संविदा और
कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर कार्य करने वाले मीटर रीडर और प्राइवेट वर्कर हैं जो ले दे
कर काम चला लेते हैं. जो व्यक्ति समझदार है वह इन मीटर रीडर को कुछ अधिभार दे कर
मीटर रीडिंग एडजस्ट करवा लेता है. इसी कारण जिन व्यक्तियों के घरों में बिजली की
सबसे ज्यादा खपत होती है उनका बिल सबसे कम और जिनके घरों में एक या दो सीएफएल बल्ब
लगे हैं उनको हजारों भरने पड़ते हैं यह किस्सा है बिजली कर्मचारियों और समझदार
उपभोक्ताओं के सांठ गांठ का.
कटरा डीसी अंतर्गत गढ़ के पास फीडर सेपरेसन अति आवश्यक – वर्षों से पड़ा हुआ बिजली विभाग का फीडर
सेपरेसन का लंबित काम अब बहुत ही आवश्यक हो चुका है. ज्ञातव्य हो की गढ़ आज इस क्षेत्र
के बहुत महत्वपूर्ण व्यावसायिक स्थलों में से एक है जो राष्ट्रीय राजमार्ग से भी
सम्बन्ध रखता है. राष्ट्रीय राजमार्ग के मध्य में स्थित होने से इसका महत्व और भी
बढ़ जाता है. परन्तु फिर भी बिजली विभाग के लिए इस स्थल का कोई विशेष महत्व नहीं है
तभी तो पुलिस थाना, मध्यांचल बैंक, इलाहाबाद बैंक, सहित सहकारी बैंक आदि जैसी
महत्वपूर्ण बैंकिंग और सरकारी संस्थाओं के बाद भी यहाँ पर लाइन दिन में लगभग
पूर्णतया अवरुद्ध रहती है. इस पर बिजली विभाग की कोई रूचि नहीं है. शायद इन्ही सभी
समस्याओं के मद्देनज़र कभी बिजली विभाग के उच्चधिकारियों ने गढ़ के पास स्थित 150
किमी लाइन का फीडर सेपरेसन के बारे में विचार कर प्रोजेक्ट लांच किया था परन्तु आज
तक पता नहीं यह क्यों पूरा नहीं हो पाया है. आज के वर्तमान समय में जब आम जनता की
डिमांड बहुत बढ़ गयी हैं और जबकि जनता से मनमाना बिल की वसूली की जा रही है यह बहुत
आवश्यक है की वर्षों पुराना पड़ा फीडर सेपरेसन का कार्य पूर्ण कर लाइन मेंटेनेंस,
और केबलीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाये. जनता से उचित बिल तो लिया जाये पर उसको बिल
के अनुरूप बिजली भी मुहैया कराई जाये.
गढ़ स्थित बैंकों में आम जनता बिजली न होने से
रहती है परेशान –
जैसा की बताया गया की गढ़ आज इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण व्यावसायिक केन्द्र
के रूप में उभरा है पर लगता है बिजली विभाग इसका पलीता बना कर ही दम लेगा.
वैकल्पिक तौर पर आज बैंकों के पास जनरेटर की व्यवस्था तो होती है पर उसका उपयोग
ज्यादातर बैंक नहीं करते. जैसे केंद्रीय जिला सहकारी बैंक मर्यादित शाखा गढ़ में
जनरेटर की कोई व्यवस्था नहीं है इसी प्रकार मध्यांचल ग्रामीण बैंक में भी लाइन
सप्लाई अवरुद्ध होने पर कार्य भी अवरुद्ध कर दिया जाता है. वैसे भी बैंक कर्मचारी
आज बहुत ही कम काम करना चाहते हैं और उस पर यदि बिजली नहीं है तो उसका हवाला देकर
ग्राहकों और बेचारे ग्रामीणों को वापस घर लौटा देते हैं. इस प्रकार ग्रामीण
क्षेत्र से 10 किमी और उससे ऊपर से पैदल चलकर आने वाला बुजुर्ग जिसकी की वृद्ध,
अथवा अन्य सामाजिक सुरक्षा पेंशन दी जानी थी वह भी न मिले तो कितने बड़े शर्म और
दुर्भाग्य की बात है. न तो शर्म उन बैंक कर्मचारियों को लगती जो काम नहीं करते और
भला बिजली विभाग ने तो पहले ही शर्म को धो कर पी लिया है.
-----------------
शिवानन्द द्विवेदी
(सामाजिक एवं
मानवाधिकार कार्यकर्ता)
ग्राम कैथा, पोस्ट
अमिलिया, थाना गढ़,
जिला रीवा (म.प्र.) पिन ४८६११७
मोबाइल नंबर – 07869992139
Wednesday, September 21, 2016
(Rewa, MP) जिला रीवा के कटरा डी.सी में बदहाल बिजली व्यवस्था, लाइन मेंटेनेंस और केबलीकरण की पूरी राशि भ्रष्ट्राचार की बलि चढ़ी.
स्थान – कैथा, गढ़ (रीवा, म.प्र.), दिनांक: 20.09.2016, दिन मंगलवार,
त्योंथर डी.ई.
अंतर्गत कटरा विद्युत् वितरण केंद्र में गढ़ फीडर की बदहाल स्थिति. लाइनमैन
राजकुमार मिश्रा और प्रभाकर सिंह मात्र तनख्वाह उठाते हैं. कनिष्ठ यंत्री सोनी
अपनी रीवा की सुनार वाली दुकान में बैठते हैं. बिजली 24 घंटे में बमुश्किल से 6
घंटे.
(कैथा-गढ़,
रीवा) कटरा विद्युत्
वितरण केंद्र अंतर्गत आने वाले गढ़ फीडर में बिजली सप्लाई की स्थिति दयनीय बनी हुई
है. यहाँ लगभग 150 किमी दूरी में एकमात्र फ़ीडर होने से कहीं भी फाल्ट की स्थिति
में 24 घंटे में दर्जनों बार लाइन सप्लाई अवरुद्ध करनी पड़ती है और कई बार तो
मनमाना भी लाइन कटौती मेंटेनेंस के नाम पर कर लेते हैं. यहाँ पर सीएम हेल्पलाइन और
सामान्य शिकायतों का कोई प्रभाव नहीं होता.
दर्जनों सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों का गलत और
भ्रामक निराकरण –
गढ़ फीडर से दी जाने वाली अगडाल-कैथा लाइन के विषय में कई बार सीएम
हेल्पलाइन में भी प्रकरण रखा गया परन्तु कोई सही निराकरण नहीं दिया जाता. मोबाइल
फ़ोन आदि से दिए जाने वाले संदेशों का कोई प्रभाव नहीं होता. लाइनमैन का सीधा जबाब
रहता है की मैं कुछ नहीं करूँगा जे.ई. से बात कर लो. और जे.ई. सोनी को तो कभी फ़ोन
ही नहीं लगता. यही हाल ए.ई. और डी.ई. का भी है. अब जनता बिजली की समस्या की शिकायत
आखिर किससे करे? कई बार तो समस्या से अधीक्षण यंत्री वर्मा को भी अवगत कराया गया
परन्तु वहां से भी कोई विशेष समाधान नहीं निकला.
कटरा वितरण केंद्र में मेंटेनेंस और केबलीकरण की
पूरी राशि अधिकारियों और ठेकेदारों द्वारा हज़म –
कम से कम कटरा विद्युत् वितरण केंद्र की स्थिति यह है की यहाँ पर
पिछले 20 वर्ष से ऊपर से आज तक कभी भी मेंटेनेंस का काम नहीं हुआ. गढ़ फीडर सहित
सम्पूर्ण कटरा वितरण केंद्र में ग्रामीण इलाकों में केबलीकरण का कार्य किया जाता
था पर वह भी भ्रष्ट्राचार की बलि चढ़ गया. कागजों में तो केबलीकरण हुआ है परन्तु
वास्तविक धरातल पर कहीं कुछ नहीं हुआ.
सूचना के अधिकार की जानकारी को छुपाने और न देने
का प्रयास –
इसके पूर्व जब कटरा डी.सी. में कनिष्ठ यंत्री एस.के. गुप्ता और रीवा
संभाग में अधीक्षण यंत्री जैन थे तब सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा सूचना के अधिकार के
माध्यम से कटरा डी.सी. में मेंटेनेंस और ठेकेदारों द्वारा कार्य, केबलीकरण, और
पिछले 25 वर्ष में जले और बदले गए ट्रांसफार्मर की जानकारी सहित अन्य महत्वपूर्ण
और जनहित सम्बन्धी जानकारी चाही गयी थी परन्तु इन उक्त अधिकारियों द्वारा
भ्रष्ट्राचार में संलिप्त होने के कारण और राशि का गबन करने के कारण उक्त जानकारी
छुपाने का प्रयास किया गया था. तब आवेदक कतिपय कारणों से अपीलिंग प्रक्रिया में
नहीं जा पाया था. उक्त जानकारी न देने और छुपाने का तात्पर्य ही था की चूंकि कभी
भी मेंटेनेंस और केबलीकरण का कार्य कटरा डी.सी. में नहीं हुआ था और पूरी राशि का
गबन ठेकेदारों की मिली भगत से कर लिया गया था तो यह जानकारी कैसे साझा की जा सकती
थी?
गरीब जनता से मनमाने बिलिंग – यहाँ की गरीब जनता और यहाँ तक की जो बीपीएल और
अति गरीबी में शामिल हैं उनके हजारों के बिल आते हैं. सोरहवा ग्राम के राम नरेश
पटेल, कशी पटेल, ब्रिजवासी पटेल, हरिबंस पटेल, सुरेश पटेल, राज बहोर पटेल, कैथा से
भद्रिका प्रसाद द्विवेदी, भैयालाल द्विवेदी, बनस्पति द्विवेदी, भैयालाल पाण्डेय,
रावेन्द्र केवट, सतानंद केवट, सोमधर मिश्रा, अम्बिका प्रसाद मिश्रा, और इसी प्रकार
पडुआ, मिसिरा, इटहा, अमिलिया, बडोखर, हिनौती आदि कई ग्रामों में उपभोक्ताओं से
बिना मीटर रीडिंग के मनमाने तरीके से बिलिंग ली जाती है. उक्त सभी उपभोक्ताओं की
मीटर रीडिंग 150 और उससे ऊपर बताई जाती है है जबकि सभी बमुश्किल दो या तीन LED
अथवा CFL बल्ब जला पाते हैं. साथ ही कभी भी गढ़ फीडर और अगडाल-कैथा की लाइन कुल छः
घंटे से अधिक नहीं दी जाती है. कई बार गरीब लोग अपने बिजली के बिल लेकर सामाजिक
कार्यकताओं के पास आते हैं परन्तु इतनी शिकायतों और न्यायालयीन प्रकरणों के बाद भी
कोई सुनवाई नहीं होती. बिजली विभाग का कहना होता है की चोरी के कारण पेनाल्टी और उच्च
बिलिंग होती है. परन्तु कई गरीब परिवार मात्र एक या दो एलईडी अथवा सीएफएल बल्ब जलाते हैं. यही हाल
सामान्य उपभोक्ताओं का भी है. उनकी भी मनमाने और औसत बिलिंग की जाती है जिसकी कहीं
कोई सुनवाई नहीं है. बिजली विभाग का स्वयं का न्यायलय होने से वहां भी बिजली विभाग
के कर्मचारी अधिकारी जो लिख कर देते हैं जज भी उसी को मानता है. त्योंथर के बिजली
न्यायलय में कई ऐसे प्रकरण हुए हैं जिनमे उपभोक्ता से मनमाने पैसे और पेनाल्टी ले
ली गयी और उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई ऐसे में सामान्य उपभोक्ताओं को चोरी करने पर
मजबूर होना पड़ता है और इस न्यायालयीन प्रक्रिया से विश्वास भी उठ जाता है. कई
उपभोक्ता लाइनमैन को कुछ ले दे कर औसत बिलिंग को ठीक करवा लेते हैं. उनको लगता है
की ऊपर चिल्लाने और हल्लागुल्ला से तो बेहतर है की लाइनमैन को ही ले दे कर मामला सलटा
लो जिससे लाइनमैन ज्यादा रीडिंग ही न भेजे. जनता चोरी नहीं करती बल्कि उसे चोरी
करने के लिए इन कर्मचारियों द्वारा मजबूर होना पड़ता है.
-----------------
शिवानन्द द्विवेदी
(सामाजिक एवं
मानवाधिकार कार्यकर्ता)
ग्राम कैथा, पोस्ट
अमिलिया, थाना गढ़,
जिला रीवा (म.प्र.) पिन ४८६११७
मोबाइल नंबर – 07869992139
Subscribe to:
Posts (Atom)