सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को जन जन तक पहुचाने के लिए और सर्व सुलभ बनाने के लिए मप्र सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा इस मानसून सत्र की पांचवीं वेबीनार मीटिंग का आयोजन किया गया जिसमें आरटीआई की धारा 2(जे) से जुड़ी उपधाराओं पर विस्तृत चर्चा की गई।
कार्यक्रम में लगभग 50 पार्टिसिपेंट्स ने भाग लिया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी एवं महाराष्ट्र महिती अधिकार मंच के संस्थापक भास्कर प्रभु रहे जिन्होंने आरटीआई कार्यकर्ताओं के विभिन्न प्रश्नों एवं कौतूहल का जबाब दिया।
कार्यक्रम का संयोजन एवं समन्वयन आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी द्वारा किया गया।
देशभर से यह यह एक्टिविस्ट हुए सम्मिलित
वेबिनार मीटिंग में सम्मिलित होने वाले सदस्यों में दिल्ली से अक्षय गोस्वामी, राजस्थान से आरके मीणा, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, छत्तीसगढ़ से विनोद दास, नागपुर से वीरेंद्र द्विवेदी, मदन गोपाल तिवारी, सत्येंद्र शिकरवार, इंदौर से अंकुर मिश्रा, दिल्ली-हरियाणा से निखिल खुराना, हिमांशु पण्डेय, ग्वालियर से आशीष राय, रीवा से प्रदीप उपाध्याय, राजू तिवारी, कृष्ण नारायण दुबे, स्वतंत्र शुक्ला, मेघना गटिया, शैलेन्द्र प्रताप सिंह, आदि प्रमुख रहे जिन्होंने अपने प्रश्नों के समाधान प्राप्त किये।
क्या निरीक्षण अथवा सैम्पल लेने के लिए अलग से आरटीआई लगाना होता है?
इस बीच दिल्ली से अक्षय गोस्वामी और अन्य के द्वारा इंस्पेक्शन और सैंपलिंग लेने के संदर्भ में प्रश्न किये गए और जानने के प्रयास किये गए कि निरीक्षण और सैंपलिंग की प्रक्रिया क्या है? क्या इसके लिए अलग से आरटीआई लगाना पड़ता है तो इसके जबाब में मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व सीआईसी शैलेश गांधी ने बताया कि धारा 6(1) के तहत ही आवेदन दिया जाता है और कागज़ दस्तावेज के स्थान पर कार्य के निरीक्षण, किसी स्थल के निरीक्षण और सैंपल लेना है इस प्रकार लिखा जाता है। इस प्रक्रिया में भी लोक सूचना अधिकारी को समयसीमा पर जानकारी उपलब्ध करानी होती है और यदि पीआईओ समय पर जानकारी नही देता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाता है।
महाराष्ट्र में अस्पताल और दिल्ली में स्कूल के निरीक्षण का दिया था आदेश - पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी
चर्चा के दौरान मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि उनके बीच पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में काफी महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। आरटीआई की धारा 2(जे) पर ही चर्चा करते हुए बात आई कि श्री गांधी ने कई ऐसे निर्णय दिए हैं जिनमे किसी कार्य स्थल का निरीक्षण और सैंपल लेने सम्बन्धी आवेदनों पर अच्छी कार्यवाहियां की हैं। दिल्ली की स्कूलों के इंस्पेक्शन से जुड़े मामले में भी श्री गांधी द्वारा आदेशित किया गया था कि अपीलार्थी स्कूलों का इंस्पेक्शन कर सकते हैं और पीआईओ को इस पर कोआपरेट करना चाहिए। इसी प्रकार पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री गांधी द्वारा बताया गया कि ऐसे ही एक आरटीआई में मुम्बई भयंदर के कृष्णा गुप्ता द्वारा आरटीआई लगाकर अस्पतालों के निरीक्षण की बात कही गयी थी जिस पर श्री गांधी द्वारा अनुमति प्रदान की गई थी जब अपीलार्थी कृष्णा गुप्ता द्वारा हॉस्पिटल का इंस्पेक्शन किया गया तो अस्पताल प्रबंधन में कई कमियां पाई गईं थीं। इसी मामले में 50 हज़ार रुपये कीमत से अधिक के सामान खरीदी का भी इन्सपेक्शन हुआ तो पाया गया कि अस्पताल में कई सामानों की खरीदी भी नही की गई थी। इस प्रकार आरटीआई की धारा 2(जे)(आई) के तहत निरीक्षण मात्र से ही काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिल गयी और काफी भ्रष्टाचार सामने आ गया।
कार्यों के निरीक्षण के बाद करें जनसुनवाई, उसमें बुलाएं अधिकारी - भास्कर प्रभु
महिती अधिकार मंच महाराष्ट्र के अध्यक्ष भास्कर प्रभु ने कहा कि उन्होंने कई ऐसे मामलों में धारा 2(जे)(आई) का प्रयोग कर समाज मे बदलाव और सकारात्मक दिशा में प्रयाश किये हैं। ऐसे ही एक मामले का उदाहरण देते हुए श्री प्रभु ने बताया कि उन्होंने अपने कम्युनिटी के लोगों के सहयोग से एक बार 4 गार्डन के निरीक्षण के लिए आरटीआई लगाई थी जिसमे उन्होंने निरीक्षण में क्रमवार कई कमियां पाई थीं एवं लगभग 80 लाख का भ्रष्टाचार पकड़ा था। उन्होंने आगे कहा कि एजेंसी से बच कर रहना चाहिए और सिर्फ अधिकारियों से ही संपर्क में रहना चाहिए क्योंकि कई बार एजेंसियों द्वारा नुकसान पहुचाया जा सकता है और अपीलार्थी पर दबाब बनाया जा सकता है।
श्री प्रभु ने कहा कि निरीक्षण करने में पूरी कम्युनिटी के लोगों को आगे आना चाहिए और यह निरीक्षण मिलकर करना चाहिए फिर सबके साथ बैठकर जनसुनवाई के दौरान कमियों पर चर्चा कर कार्यवाही करना चाहिए। इस बीच उस विभाग से जुड़े किसी अधिकारी को भी जनसुनवाई में लेटर लिखकर बुलाना चाहिए।
श्री प्रभु ने कहा कि निरीक्षण और सैंपलिंग एक काफी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमे सिस्टम में काफी सुधार किया जा सकता है। हॉस्पिटल में दवा का और कोटे अथवा स्टोर हाउस में अनाज का निरीक्षण और सैंपलिंग से काफी परिवर्तन देखने को मिल सकता है। इससे कालाबाजारी और भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है।
95 प्रतिशत जानकारी धारा 4 के तहत आयोग करवाये सार्वजनिक
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कई आवेदकों द्वारा प्रश्न किये गए कि आखिर धारा 4 के तहत जानकारी कैसे सार्वजनिक होती है और कैसे मिलती है क्योंकि कई बार पीआईओ द्वारा जानकारी साझा करने और उपलब्ध कराने में जानकारी की अधिकता की बातें सामने आती हैं। इसी विषय में मप्र सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के भी एक निर्णय का हवाला दिया जिसमें 75 प्रतिशत वर्क फ़ोर्स को ऐसे आरटीआई दस्तावेज कलेक्ट करने में न लगाए जाने की बात कही गयी थी और फिर उसी आदेश का हवाला देकर सभी लोक सूचना अधिकारी जानकारी देने से बच जाते हैं। इस पर श्री प्रभु का स्पष्ट कहना था कि वास्तव में देखा जाय तो मामले को सही ढंग से सुप्रीम कोर्ट में प्रजेंट न करने से ऐसी स्थिति बनी होगी।
धारा 4(1)(a) एवं धारा 4(4) का पालन होना अनिवार्य
भास्कर प्रभु द्वारा आगे कहा गया कि 95 प्रतिशत जानकारी धारा 4 की विभिन्न उपधाराओं के तहत स्वयमेव ही साझा होनी चाहिए और वह बिल्कुल ही आवश्यक नही की ऑनलाइन और वेबसाइट के माध्यम से ही हो। यह जानकारी लोकल स्तर पर हार्ड कॉपी के रूप में अथवा नोटिस बोर्ड में भी साझा होनी चाहिए।
श्री प्रभु ने कहा कि धारा 4(1)(आई) में जानकारी को ऑर्गनाइज करने और कम्प्यूटरीकृत करने के स्पष्ट निर्देश हैं। लेकिन आयोग इस बात पर कोई एक्शन नहीं लेता की आखिर यह सभी विभाग जानकारी को आर्गनाइज्ड तरीके से क्यों नही रखते। यदि विभाग जानकारियां ऑर्गनाइज तरीके से रखेंगे तो निश्चित ही ज्यादातर जानकारी को रेडी टू यूज़ स्थिति में प्राप्त किया जा सकता है और वह जानकारी कोई भी कभी भी प्राप्त कर सकता है और इसमे लेबर भी नहीं लगेगा ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की 75 प्रतिशत वर्क फ़ोर्स की बात भी नही आएगी। इसी प्रकार धारा 4(4) का जिक्र करते हुए बताया गया कि इसमे पीआईओ और उस विभाग को सभी जानकारी नंबरिंग करते हुए क्रमवार और कैटलॉग के रूप में रखनी चाहिए जिससे जानकारी को ढूंढने अथवा संकलित करने में श्रम और धन का अपव्यय भी न हो और जानकारी भी अपीलार्थी को आसानी पूर्वक मिल जाय।
महाराष्ट्र में सूचना आयुक्त श्री सारकुंडे ने 436 प्रकरणों में पीआईओ को करवाया दंडित
वेबिनार में चर्चा के दौरान लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों द्वारा जुर्माना राशि के न भरने की भी बात आई जिसमे भास्कर प्रभु द्वारा बताया गया कि महाराष्ट्र में सूचना आयुक्त श्री सारकुंडे द्वारा काफी सराहनीय कार्य किये गए हैं। श्री सारकुंडे ने कुल 436 मामलों में जुर्माने की कार्यवाहियां की हैं जिसमे कुल एक करोड़ 8 लाख रुपये का फाइन लगाया हुआ है। श्री सारकुंडे ने 49 मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही करवाई है, और लगभग 39 प्रकरणों में अपीलार्थी को सरकारी बाबुओं द्वारा 1 हजार से 5 हज़ार के बीच हर्जाना भी भरवाया गया है।
मप्र सूचना आयोग में पीआईओ/एफएओ समय पर नही भर रहे जुर्माना राशि
मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा बताया गया कि सूचना के अधिकार को और अधिक मजबूत बनाने के लिए मप्र में अभी काफी कार्य किया जाना है और इस मामले को सामान्य प्रशासन विभाग को भी लिखा जा चुका है। बता दें कि सूचना आयुक्त श्री सिंह द्वारा मप्र में काफी ताबड़तोड़ कार्यवाहियां चल रही हैं लेकिन लोक सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों द्वारा जुर्माने की राशि समय पर नही भरी जा रही हैं जिससे उनके विभाग प्रमुखों को इसके बारे में लगातार लिखा जा रहा है। जब विभाग प्रमुख भी कंप्लायंस नही करवाते हैं तो डीएम कलेक्टर को कुर्की के लिए लिखा जाता है।
हालांकि इस मामले में उपस्थित सभी विशेषज्ञों द्वारा यह कहा गया कि इस पर सभी आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर सरकार पर दबाब बनाना चाहिए और कार्यवाही के लिए लिखना चाहिए।
हम चाहते हैं द्वितीय अपील प्राप्त होने के तीन दिन के भीतर जारी करें नोटिस - मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह
देश के कई सूचना आयोगो की ही तरह मप्र सूचना आयोग में भी पेंडेंसी एक बहुत बड़ा इशू बनकर सामने आया है। जानकारी के अनुसार आयोग में लगभग 7000 प्रकरण लंबित होने से नए मामलों पर कार्यवाही में देरी होना स्वाभाविक बात है। बताया गया कि औसतन 500 मामले हर महीने पंजीकृत किये जाते हैं।
हालांकि इस विषय को गंभीरता से लेते हुए मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा इंटर्न की अपील की गई है जिनका कार्य आयोग के कार्यों में सहयोग देना होगा। इंटर्न को सेवा समाप्ति पर उनके उत्कृष्ट सहयोग के लिए सर्टिफिकेट भी वितरित की जाएगी।
इस बीच श्री सिंह ने कहा कि पेंडेंसी कम होने पर हम चाहते हैं कि अपीलार्थी को न्याय के लिए ज्यादा समय तक इन्तेजार न करना पड़े और द्वितीय अपील प्रस्तुति के तीन दिन के भीतर ही संबधित लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी कर दी जाय और मामले की प्रोसीडिंग प्रारंभ कर दी जाय।
इस प्रकार वेबीनार कार्यक्रम लगभग 2 घण्टे तक चला जिसमे एक्टिविस्टों ने उपस्थित विशेषज्ञों से अपने अपने प्रश्नों से संदेहों को दूर किया। वेबीनार मीटिंग हर रविवार सुबह 11 बजे से 01 बजे तक आयोजित की जाती है।
संलग्न - कृपया संलग्न कार्यक्रम की फ़ोटो देखने का कष्ट करें।
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शिवानन्द द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, जिला रीवा मप्र। मोबाइल 9589152587